नहीं रोकना चाहिए छींक, होते है खतरनाक

मुंबई:सर्दी जुकाम में छींक आना आम बात है यह ना तो अपने कोई रोग है और ना ही रोग का लक्षण है। यह एक शरीर की सुरक्षा के लिए एक रिफ्लेक्स एक्शन या प्रतिवर्ती प्रक्रिया है जो कि हमारे चैतन्य नियंत्रण के बाहर होता है और यह हमारी नाक के अंदर के गैर जरूरी पदार्थों को निकालने की प्रक्रिया होती है।

कसरत करते समय ली जाने वाली गहरी और तेज सांस की तुलना में छींक के दौरान हवा का दबाव 30 गुना अधिक होता है. कई बार नाक को दबा कर छींक रोकी जा सकती है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। जब हमारी नाक में एलर्जी पैदा करने वाले कण, वायरस बैक्टीरिया या द्रव जैसे कुछ अवांछनीय तत्व के आने से नाक में की संवेदी तंत्रिका में उत्तेजन होता है तब छींक की प्रक्रिया शुरू होती है।

संवेदी तंत्रिका इन गैर जरूरी तत्वों की जानकारी को दिमाग तक ले जाती है जिससे छींक की प्रतिवर्ती प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसमें सबसे पहले शरीर गहरी सांस लेता है और अंदर के वायुमार्गों में एक दबाव बनता है। छींक कैसे रोकी जाए. इस पर कई तरह के सुझाव दिए जाते है।

इनमें कान खींचने से लेकर जीभ को दांतों के बीच रखने, या नाक को छूने जैसे उपाय बताए जाते हैं. ये सभी तरह के उपाय वास्तव में ट्राइगेमिनल स्पर्श तंत्रिका को उत्तेजन देते हैं जिनका मकसद अंतरतंत्रिकाओं को यह बताना है कि गेट को बंद कर दें। इससे असहजता या बेचैनी पैदा करने वाले संकेत दिमाग तक जाने से रुक जाएंगे और छींक की प्रक्रिया ही रुक जाएगी।


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