सिविल सेवक बनने का लालच देश के लिए आवश्यक अन्य व्यवसायों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता

सद की एक समिति ने बृहस्पतिवार को कहा कि सिविल सेवाओं में 70 प्रतिशत से अधिक भर्तियां तकनीकी विषयों से होती हैं और सिविल सेवक बनने का लालच संभवत: उन अन्य पेशों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है जो देश के लिए जरूरी हैं। विभाग से संबंधित कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी संसद की स्थायी समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि सिविल सेवाओं के लिए पूरी भर्ती प्रक्रिया पर पुनर्विचार करने का यह सही समय है। समिति ने कहा कि एक सिविल सेवक सरकार और आम लोगों के बीच एक कड़ी होता है और वह जमीनी स्तर पर काम करता है, जिसके लिए काफी मानवीय और संवेदनशील दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। समिति ने यह भी कहा कि एक सिविल सेवक को इस तरह से प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि वह किसी भी मुद्दे के प्रति अधिक मानवीय और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण विकसित करे।

इसने बृहस्पतिवार को संसद में पेश भारत सरकार के भर्ती संगठनों के कामकाज की समीक्षा पर अपनी 131वीं रिपोर्ट में कहा कि भर्ती किए गए अधिकारियों की अधिकतम संख्या तकनीकी और चिकित्सा पृष्ठभूमि की है। भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा सिविल सेवा में की जाने वाली 70 प्रतिशत से अधिक भर्तियां आजकल तकनीकी विषयों से होती हैं। हर साल हम उन सैकड़ों टेक्नोक्रेट को खो रहे हैं, जो अन्य विशिष्ट क्षेत्रों में काम करने की संभावना रखते हैं। राष्ट्र के लिए वे भी एक आवश्यकता हैं। समिति ने कहा कि इस तरह डॉक्टरों और शीर्ष टेक्नोक्रेट्स को खो दिया जा रहा है जो बहुत अच्छे डॉक्टर और इंजीनियर के रूप में काम कर सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया, सिविल सेवक बनने का लालच शायद काम के अन्य क्षेत्रों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इसलिए, समिति का मानना है कि सिविल सेवा के लिए भर्ती की पूरी प्रक्रिया के बारे में पुनर्विचार करने का यह सही समय है।

समिति ने कहा कि यूपीएससी और कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) प्रत्येक वर्ष विभिन्न परीक्षाएं आयोजित करते हैं और विभिन्न पदों पर अनुशंसित अभ्यर्थी प्रदान करते हैं। इसने कहा कि उदाहरण के लिए, सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से, यूपीएससी हर साल लगभग 1,000 अभ्यर्थियों का चयन करता है और इन अभ्यर्थियों को 19 विभिन्न सेवाओं में तैनात किया जाता है। पिछले 10 वर्षों के आंकड़ों का हवाला देते हुए इसमें कहा गया कि सिविल सेवा परीक्षा-2020 के माध्यम से चुने गए 833 अभ्यर्थियों में से 541 अभ्यर्थी (65 प्रतिशत) इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि, 33 (चार प्रतिशत) चिकित्सा पृष्ठभूमि, 193 (23 प्रतिशत) मानविकी पृष्ठभूमि और 66 (आठ प्रतिशत) अन्य पृष्ठभूमि वाले थे। सिविल सेवा परीक्षा-2019 के माध्यम से चुने गए 922 अभ्यथिर्यों में से 582 (63 प्रतिशत) इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि, 56 (छह प्रतिशत) चिकित्सा पृष्ठभूमि, 223 (25 प्रतिशत) मानविकी पृष्ठभूमि और 61 (छह प्रतिशत) अन्य पृष्ठभूमि वाले थे। समिति ने यह भी जानना चाहा कि क्या यूपीएससी परीक्षा चक्र की अवधि को कम करने के लिए सिविल सेवा परीक्षा के पैटर्न में कोई बदलाव करने पर विचार कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया कि यूपीएससी द्वारा आयोजित प्रत्येक भर्ती परीक्षा को पूरा होने में छह महीने से एक साल तक का समय लगता है।


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