बिसात पर युवा

Written by जनसत्ता: अगर किसी देश को स्वावलंबन, आत्मनिर्भर बनना है तो बहुत जरूरी है कि उस देश में मानव संसाधन का सर्वोत्तम प्रयोग हो और उसमें भी युवा आबादी इसमें सबसे निर्णायक भूमिका निभा सकती है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए युवाओं के महत्त्व को एक बार फिर दोहराया। लेकिन हम बीते कुछ सालों से देख रहे हैं कि किस तरीके से हमारे देश के युवाओं के साथ उनके सपनों की उपेक्षा की जा रही है।

जब भी युवाओं की बात होती है तो उन्हें सबसे पहले जो सुविधा उपलब्ध कराने की चुनौती होती है, वह है रोजगार। लेकिन केंद्र और राज्य स्तर, दोनों स्तर पर ही नौकरियों की भर्ती को लेकर उदासीनता ही एक लंबे वक्त से देखी जा रही है। केंद्र और राज्य सरकार के तहत, दोनों में ही परीक्षाएं साल दर साल लंबित होती जा रही हैं। प्रश्नपत्र लीक होते हैं, परीक्षाएं समय से नहीं हो रही हैं। मसलन, उत्तराखंड वन दरोगा की परीक्षा रद्द कर दी गई। राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सरकारी भर्ती को लेकर सरकारों द्वारा बरती जाने वाली लापरवाही बहुत हैरान करने वाली है।
सरकारों ने अब नौकरियों को केवल चुनावी उपकरण के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया है। मध्य प्रदेश पर ही नजर डालें तो यहां ठीक-ठाक भर्ती 2018 के आसपास हुई थी, जो एक चुनावी साल था। इसके बाद ही शायद ही इस राज्य के युवाओं ने इस राज्य में कोई सफल, सुलभ भ्रष्टाचार मुक्त परीक्षा देखी हो। चूंकि इस साल 2023 में मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं तो अब फिर से सरकारी सेवाओं के विज्ञापन आने शुरू हो गए हैं। इस प्रवृत्ति की वजह से कहीं न कहीं युवाओं का हक मारा जा रहा है। हम देश में अमृत काल मना रहे हैं और युवाओं को प्रधानमंत्री ने अमृत काल की पीढ़ी कहा है।
इसके लिए जरूरी है कि इस ओर सभी राज्यों का ध्यान आकर्षित किया जाए और इस विषय को गंभीरता से लिया जाए, क्योंकि सरकारी सेवाओं में चयनित होकर राष्ट्र की सेवा करने के लिए जो विद्यार्थी इस अभियान में रहते हैं, उनमें से अधिकतर की पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्थिक रूप से इतनी सक्षम नहीं होती कि वे सरकार की लापरवाही, भ्रष्टाचार और गैरजिम्मेदारी ढो सकें। फिर इस प्रकार की व्यवस्था से कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, जिसमें अर्थ से लेकर अंतरराष्ट्रीय सूचकांक तक शामिल होते हैं।
क्रेडिट : jansatta.com