शिक्षा मंत्रालय की यह पहल स्वागतयोग्य है

नजरिया : शिक्षा मंत्रालय की यह पहल स्वागतयोग्य है कि नई शिक्षा नीति के तहत राज्य सरकारों को इसकी गारंटी देनी होगी कि वे शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाएंगी। यह संभव है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के आग्रह-आदेश पर राज्य सरकारें इसके लिए हामी भर दें कि शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाएंगी, लेकिन वे इसकी गारंटी देने में तभी समर्थ होंगी, जब उन कार्यों के लिए अन्य विभागों की मदद लेंगी, जो अभी तक शिक्षकों को सौंप दिए जाते हैं।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय, विभिन्न उच्च न्यायालयों, शिक्षा बोर्डों और शिक्षकों के संगठनों की ओर से एक लंबे अर्से से यह कहा जा रहा है कि शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में न खपाया जाए, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही है। सच्चाई यह है कि जैसे-जैसे इस पर जोर दिया जाता रहा कि शिक्षकों को अन्य कामों में न लगाया जाए, वैसे-वैसे उन्हें शिक्षण से इतर कार्यों में खपाने का सिलसिला कायम होता गया। यह स्थिति करीब-करीब देश के लगभग सभी राज्यों में बनी। इसका कारण यह है कि शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य सौंपना एक परिपाटी बन गया है।

क्या यह आशा की जाए कि शिक्षा मंत्रालय की पहल पर राज्य सरकारें यह गारंटी देने के लिए आगे आएंगी कि शिक्षकों को पठन-पाठन के अतिरिक्त अन्य कोई दायित्व नहीं सौंपेंगी? यह फिलहाल एक अनुत्तरित प्रश्न है, लेकिन इसका सकारात्मक उत्तर राज्य सरकारों को देना ही होगा।


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