इस्राइल में एकता सरकार !


इस्राइल व हमास : इस्राइल व हमास (फलीस्तीन) के बीच युद्ध का आज छठा दिन है। युद्ध के कारणों व हार-जीत पर हमें कुछ नहीं कहना। वहां से विश्व का हर टी.वी. चैनल क्षण-क्षण का आंखों देखा हाल सुना रहा है अतः इस पर चर्चा अभी बेमानी है।
अब तो यरुशलम से आई यह खबर महत्वपूर्ण है कि इस्राइल क़े प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और विपक्षी नेता बेनी गैंट्ज के बीच हुई वार्ता के बाद युद्धरत इस्राइल में एकता सरकार बन गई है। यानी इस्राइल का सत्ता दल और विपक्ष हमास के बर्बर हमले के बाद एकजुट होकर संकट से जूझ रहे हैं।
इस्राइल की भांति भारत में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था है। भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पाकिस्तान तथा चीन की ओर से किये गए कई हमलों को झेलना पड़ा है। 1948 में पाकिस्तानी सैनिक कबालियों के वेश में श्रीनगर तक घुस आये थे, तब भारत का विपक्ष कमजोर अवश्य था किन्तु उसने तत्कालीन नेहरु सरकार का साथ दिया, हालांकि भारतीय सेना जीत रही थी और नेहरु जी ने लड़ाई जीतते हुए भी युद्ध विराम की एकतरफा घोषणा कर दी और मूर्खतापूर्ण ढंग से संयुक्त राष्ट्र में मामला उलझा दिया।1962 के चीनी हमले में भारत ने अपनी गलतियों से नेफा का बड़ा भू-भाग खोया। 1972 के बंगलादेश के युद्ध में विपक्ष के लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्काल प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी का खुलकर साथ दिया था।
अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस्राइल का समर्थन किया है। यह उनका व्यक्तिगत समर्थन नहीं, एक बड़े और प्रभावशाली राष्ट्र का समर्थन है। अभी तमाशा है कि आगामी प्रधानमंत्री पद के दावेदार राहुल गांधी की पार्टी क्या प्रस्ताव पास कर रही है? राहुल ने ही भारत की भूमि कब्जाने वाले चीन के राजदूत के यहां जाकर दावत खाई थी और चीन जाकर वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ दोस्ती के समझौते पर हस्ताक्षर कर आए थे। बालाकोट के सर्जिकल स्ट्राइक पर इन्होंने ने ही सबूत मांगे थे। इनके ही सिपहसालार सलमान खुर्शीद पाकिस्तान जाकर कह आये थे कि मोदी के प्रधानमंत्री रहते दोनों देशों में दोस्ती नहीं हो सकती। राहुल ने ही जवानों के खून की दलाली का बेहूदा आरोप थोपने की कोशिश की थी।
देश के समक्ष आसन्न संकटों के समय ये दुश्मन के पाले में क्यूं खड़े हो जाते हैं? राष्ट्रीय आपदा के मौके पर राष्ट्रीय सरकार बनाने में सहयोग करना ये स्वप्न में भी नहीं सोच सकते।
गोविन्द वर्मा
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