जानिए छठ पूजा की पौराणिक कथा के बारे में

छठ पूजा की पौराणिक कथा – छठ पूजा कैसे शुरु हुई इसकी ये पौराणिक कथा बेहद प्रचलित है. आइए आपको बताते हैं कि इस पर्व का आरंभ कैसे हुआ था. यह कथा मुख्यतः महाभारत के एक अंश पर आधारित है, जिसमें द्रौपदी जो पांडवों की रानी थी उसने सबसे पहले ये व्रत रखा था. कथा के अनुसार, द्रौपदी अपने युवाकाल से ही सूर्य देवता की भक्त बन गई थीं और उनकी आराधना में बहुत मन लगाती थी. महाभारत के एक अंश में यह वर्णित है कि वो ब्राह्मणों को दान देती रही और विशेषकर सूर्य देवता की पूजा करती रही.

महाभारत के युद्ध के बाद, जब पांडव और कौरवों का संघर्ष समाप्त हुआ और धृतराष्ट्र ने समझौता करने का निर्णय लिया, तो उस समय धृतराष्ट्र ने भगवान श्रीकृष्ण से उपदेश प्राप्त किया. श्रीकृष्ण ने उन्हें ब्राह्मणों की सेवा और विभिन्न पूजाओं के लाभ के बारे में बताया जिसमे से छठ पूजा भी थी.
उस समय, धृतराष्ट्र ने छठ पूजा का वर्णन सुना और उसे आपने परिवार के साथ मनाने का निर्णय लिया. धृतराष्ट्र और गांधारी, जो उनकी पत्नी थी उनके साथ मिलकर इस व्रत का आयोजन किया और सूर्य देवता की पूजा करने के लिए छठ पूजा का आयोजन किया. अपने परिवार के साथ उन्होंने ये व्रत किया जिसके बाद से ये परंपरा बन गयी.
अन्य छठ पर्व की पौराणिक कथा
द्रौपदी ने पहली बार छठ पूजा अपने पति युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण के साथ महाभारत युद्ध के पहले दिनों में की थी. यह घटना द्रौपदी की बड़ी भक्ति, साहस, और धैर्य का प्रतीक है.
महाभारत युद्ध के पहले दिन, जिसे “दीपत्युद्धारनी पर्व” कहा जाता है, द्रोपदी ने दुखभरे हृदय से भगवान सूर्य देव की पूजा की. उन्होंने बिना खाए-पीए सूर्योदय के समय पूजा करना शुरू किया और उनकी अपेक्षा में व्रत रखा.
द्रोपदी ने अनुष्ठान में ध्यान, भक्ति, और त्याग के साथ सूर्य देवता का पूजन किया. उन्होंने पूजा में विशेष रूप से सूर्य देवता की आराधना की, उनके लिए अर्घ्य, सूर्यास्त के समय नमस्कार, और धूप चढ़ाया. उन्होंने सूर्य देवता से अपने पति और पंडव सम्राटों की सुरक्षा और विजय की प्रार्थना की.
इस पूजा के बाद, द्रोपदी ने बिना खाए-पीए सूर्योदय के समय तीन दिनों तक व्रत रखा और अपनी भक्ति, त्याग, और समर्पण से सूर्य देवता को प्रसन्न किया. इस पूजा ने उन्हें सूर्य देवता के आशीर्वाद से युक्त किया और महाभारत युद्ध में उनकी पति की रक्षा के लिए बड़ी साहस और शक्ति प्रदान की.
यह कथा दिखाती है कि छठ पूजा एक महत्वपूर्ण पर्व है जो भक्ति, समर्पण, और त्याग की भावना को साझा करता है.
इसके अलावा एक पौराणिक कहानी ये भी है
कहानी यहां से शुरू होती है कि राजा पांडु की पत्नी, रानी कुंती, ने महाभारत के युद्ध से पहले लौटे योद्धाओं की सुरक्षा के लिए सूर्य देवता की पूजा करते समय एक विशेष प्रकार की पूजा की थी. वह उन्हें पांच दिन तक बिना खाए-पिए दीपावली के दिनों में पूजा करती थीं और उनकी प्रार्थना करती थीं कि उनके पुत्रों की रक्षा हो.
इस पूजा के बाद, पांडवों की शक्ति बढ़ी और उन्हें महाभारत युद्ध में विजय मिली. इसके बाद, द्रोपदी ने छठ पूजा की थी, जिसमें वह सूर्य देवता का पूजन विशेष रूप से करती थी. उसकी भक्ति और तपस्या ने छठ पूजा को महत्वपूर्ण बना दिया. सूर्य देवता ने द्रोपदी की प्रार्थना सुनी और उन्हें अद्भुत आशीर्वाद दिया.
इसके बाद, छठ पूजा का आयोजन लोगों ने अपने गांवों और समुदायों में किया, और वह आज भी एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है जो सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा के माध्यम से मनाया जाता है.