तारे कब मिले यहाँ ?

राजनांदगांव। जनता से रिश्ता के मोखला निवासी पाठक रोशन साहू ने एक कविता ई-मेल किया है।

खुद से ज्यादा खुद को समझे,कोई भी नही मिले यहाँ।
मतलब से ही बस बात करते,होंठ सभी के सिले यहॉं।।
तेरी खैरियत खैर खबर की, लोगों को फुर्सत ही नहीं।
जिनसे उम्मीद लगाए बैठे,बस शिकवे गिले मिले यहाँ।।

खुद से दो पल बातें कर लो,बाकी चेहरे कब खिले यहाँ।
चारदीवारी में कैद सभी  ,”मैं” के अभेद किले यहाँ।।
सबकी अपनी-अपनी धरती,आसमाँ को जरा मुश्किल।
उम्मीदों की सांसें शेष पर,तारे सबको कब मिले यहाँ।।

जिस जिसने पाया सागर,लगता गागर ही मिले यहाँ।
बूंद की चाहत के राही को,भोर सपन ही मिले यहाँ।।
हे दाता! हे सर्वेश्वर! दयानिधान! सुन आर्त हे पालनहार!
उस पार नही इस पार सही,सबको सहारे मिले यहाँ।।


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