केरल में ‘कट्टरवादी’ धमाके

By: divyahimachal

केरल के एर्नाकुलम जिले के एक सभा-कक्ष में जो धमाके किए गए हैं, वे कमोबेश आतंकी हमले तो नहीं लगते, लेकिन उससे कमतर भी नहीं हैं। एक सभा-कक्ष में करीब 2300 लोग प्रार्थना में लीन थे। वे ‘येहोवा समुदाय’ के बताए जाते हैं, जो बुनियादी तौर पर ईसाई हैं, लेकिन मानसिक रूप से यहूदी-समर्थक भी हैं। उन्होंने एक दिन पहले इजरायल के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया था। यह ऐसा ईसाई धार्मिक समुदाय है, जिसकी उत्पत्ति 19वीं सदी में अमरीका में हुई थी। सिलसिलेवार तीन धमाकों में 2 महिलाओं की मौत हो गई, जबकि 51 लोग झुलसे और घायल बताए गए हैं। आधा दर्जन की हालत गंभीर बताई गई थी और 18 लोगों को आईसीयू में भर्ती करना पड़ा है। बेशक धमाके ‘आतंकी’ नहीं थे, लेकिन धार्मिक कट्टरवाद से प्रेरित जरूर थे। केरल में विभिन्न समूहों के बीच हिंसा का इतिहास रहा है। इन समूहों में धर्म और राजनीति का खतरनाक मिश्रण भी रहा है। हालांकि प्रभाव इजरायल-हमास युद्ध का भी रहा होगा, क्योंकि केरल ही नहीं, देश के अलग-अलग हिस्सों में भी मुस्लिम संगठन फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन कर रहे हैं। हमास को ही फिलिस्तीन के तौर पर पेश किया जा रहा है, लिहाजा आंकड़े और तथ्य गलत हैं। केरल में हाल ही में जो फिलिस्तीन समर्थक रैली का आयोजन किया गया था, उसे हमास के संस्थापक नेता खालिद मशेल ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया था। देश में यह कैसे हो सकता है कि आतंकी समूह का सरगना रैली को संबोधित करे और राज्य सरकार से स्पष्टीकरण तक न मांगा जाए? केरल में 27 फीसदी मुसलमान और 18 फीसदी ईसाई हैं। दोनों ही समुदाय वाममोर्चा और कांग्रेस नेतृत्व वाले मोर्चे के साथ सत्ता और सियासत में ताकतवर मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं। अब इन धमाकों की गहन जांच से निष्कर्ष सामने आएंगे कि इजरायल-हमास युद्ध से प्रभावित कट्टरवाद कितना जिम्मेदार है?
धमाकों के लिए आईईडी का इस्तेमाल किया गया, तो उसे कहां से हासिल किया गया? विस्फोटक पदार्थ कहां से आए? हालांकि एक शख्स ने धमाकों की जिम्मेदारी ली है। डोमिनिक मॉर्टिन नाम के इस व्यक्ति ने केरल पुलिस को बताया है कि वह 16 साल से ‘येहोवा विटनेस समुदाय’ का सदस्य रहा है, लेकिन करीब 6 साल पहले उसे एहसास हुआ कि यह अच्छा संगठन नहीं है और इसकी शिक्षाएं ‘देशद्रोही’ हैं। हालांकि येहोवा समुदाय ने इस शख्स की सदस्यता से इंकार किया है, लेकिन ‘देशद्रोही’ शब्द में कट्टरवाद और साजिश के मायने निहित हैं। बहरहाल राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) समेत सभी एजेंसियां केरल में पहुंच चुकी हैं। वे जांच के हर पहलू की गहराई तक जाएंगी। यह भी जांच का सरोकार होगा कि हमास वाली रैली के आयोजन में किसकी कारगर भूमिका थी? कांग्रेस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसी परंपरागत पार्टियों के अलावा प्रतिबंधित पीएफआई और एसडीपीआई सरीखे दलों की सियासत किस हद तक असरदार है और उनकी बुनियादी सोच क्या है? इन धमाकों के संदर्भ में देश की सकल सुरक्षा का आयाम भी संवेदनशील है। राजधानी दिल्ली समेत उप्र और मुंबई में भी हाई अलर्ट लागू कर दिया गया है। सोशल मीडिया पर अनाप-शनाप पोस्ट लिखी जा रही हैं। धमाकों को इजरायल-हमास युद्ध से जोड़ कर व्याख्याएं की जा रही हैं। हालांकि केरल पुलिस ने आगाह किया है कि सोशल मीडिया पर फर्जी और भडक़ाऊ पोस्ट लिखने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। संभावनाएं हैं कि पश्चिम एशिया का टकराव भारत और उसके हितों को परोक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है। हमारे देश को ‘विदेशी टकरावों’ की रणभूमि नहीं बनना चाहिए।