क�?दरत का तोहफा

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 हम अभूतपूर�?व दौर में जी रहे हैं, क�?छ लोग इसे कठिन समय भी कह रहे हैं। कई लोगों की जिंदगी, जीवनशैली और जीवनयापन के रास�?ते अचानक बदल ग�? हैं। हजारों लोग बेरोजगार हो ग�? हैं और वैश�?विक आपदा ने कई लोगों का जीवन तक लील लिया। �?ेसे दौर में अगर किसी ने ख�?द को अधिक चेतनामय, जीवंत नहीं रखा तो उसका अपने से �?करूप रह पाना बह�?त म�?श�?किल हो जा�?गा। हालांकि अभी भी बह�?त क�?छ �?सा घटित हो सकता है, जिससे हम पूरी तरह अनजान हैं।

लेकिन इससे खौफ खाने के बजाय ध�?यान रखने की जरूरत है कि अनजाना क�?छ चमत�?कारों से भरा भी हो सकता है और कहीं उससे हम केवल इस वजह से अनजान न रह जा�?ं कि हम पूरी तरह तैयार नहीं। हम अपने भीतर अपने लि�? जैसा विश�?व रच लेते हैं, वैसे ही वह हमको बाहर नजर आता है। अगर हमें पूरा यकीन हो जा�?गा कि हमारी हर जरूरत पूरी हो सकती है, तो वह हो भी जा�?गी।

जब हम भरोसा रखते हैं तो सकारात�?मक दृष�?टि से विचार करने लगते हैं। जब आश�?वस�?त हो जाते हैं कि हमें जो चाहि�?, वह मिलेगा, तब उसे पाने के रास�?ते खोजने लगते हैं, क�?योंकि हमें इस पर विश�?वास होता है कि वह मिलेगा। बस अपनी ओर से तैयारी पूरी करनी है। संघर�?षों पर विराम लगाने का समय आ गया है। अब यह समय है कि हम चीजों को म�?श�?किल करने के बजाय उन�?हें आसान बना�?।

अवसाद में जीने के बजाय, जीवन प�?रवाह में बहने लगें। अवसर किसी भी क�?षण द�?वार खटखटा सकता है, इसलि�? सतर�?क-सजग रहना होगा। थोड़े सब�?र की जरूरत है। अब तक जीवन में जो मिला, उसके प�?रति आभार व�?यक�?त किया जा�?। वर�?तमान में जीना सीखना होगा। देखा जा�? तो हमारे आसपास कितनी ख�?शियां बिखरी पड़ी हैं। ख�?शियां ढूं�?ने लगेंगे तो हम अपने आप विश�?व से संरेखण में आ जा�?ंगे। अपने हिस�?से का काम किया जा�? और शेष प�?रकृति पर छोड़ दिया जा�?।

जल�?दी उठना, अपना समय अपने कार�?य में अच�?छी तरह से लगाना उसके लि�? नव वर�?ष के मौके पर संकल�?प करने की जरूरत नहीं है। ख�?द से ज�?ड़ जा�?ं इसी पल से। आभार व�?यक�?त करना सीखें, स�?व-विकास की प�?स�?तकें प�?ना श�?रू करें, बेहतर स�?वास�?थ�?य और अच�?छी जिंदगी की ओर कदम ब�?ा�?ं। अपने वलय को सकारात�?मक बना लिया जा�?। हमारे मित�?र-परिजन, घर-परिवार के लोग, नाते-रिश�?तेदार, प�?रखे हम पर गर�?व कर सकें, �?से क�?षण के लि�? पहले अपने आप पर गर�?व करना सीखना होगा। अपने भीतरी विकास पर जोर दें, क�?योंकि हमारी द�?नियावी सच�?चाई बह�?त क�?छ इस पर निर�?भर करती है कि हम अपने भीतर कितना स�?कून और शांति महसूस करते हैं।

हम अभी जहां, जिस परिस�?थिति में हैं, वह बेहतर है। हमें इससे बेहतर की ओर ब�?ना है। जब हम हर हाल में शांत महसूस करने लगेंगे तो अपने रिश�?तों में भी शांति स�?थापित कर पा�?ंगे। यहां तक कि अपने घर का माहौल भी अधिक स�?खमय और संत�?लित बना पा�?ंगे। हमें लगेगा कि �?सा तो बह�?त पहले भी हो सकता था। हो सकता था, अगर हम बह�?त पहले ही अपने आपसे प�?यार करने लगते और दूसरों के लि�? क�?छ सीमा�?ं तय कर देते। वर�?तमान वक�?त पिछले दिनों को देखने-परखने का �?कदम सही मौका है।

अब हमारा काम यह है कि इस क�?षण में जीना है। अपनी पीठ थपथपाकर हमने जो महसूस किया कि हम पर ईश�?वर-अल�?लाह, प�?रकृति या क�?दरत का हाथ है, उस नेमत को हमेशा अपने साथ पाते रहना है। इस ख�?शी को उन लोगों के साथ भी बांटना है, जिन�?हें हम अपना करीबी मानते हैं। किसी दिन हम पाते हैं कि हमारे आभूषणों में कोई �?सा जेवर भी है, जिस पर अब तक हमारी निगाह नहीं पड़ी थी, तो हम क�?या करते हैं? उसे पहन कर देखते हैं और दूसरों को भी दिखाते हैं। उसे देख हमारी आंखें चौंधिया जाती हैं और देखने वालों की आंखों में भी हम उस चमक को देखते हैं! सच यह है कि क�?दरत का उपहार हमारे पास हमेशा से था, उसे स�?वीकार करने की जरूरत है।

जब पूरा विश�?व नकारात�?मक भावनाओं से अटा पड़ा है, हम जहां जाते हैं, वहां लोगों को उदास पाते हैं। उदासी से ख�?द को बचा�? रखने के लि�? नितांत जरूरी है कि हम अपने उपहारों की कीमत आंकने लगें। ख�?द के क�?दरती जेवरातों को स�?रक�?षित रखें। थोड़ा संत�?लित रहें, थोड़ा दिल से और थोड़ा दिमाग से काम करें। भावनाओं और तर�?कों के मोती-मूंगों से जड़ित अपने कीमती जेवर को अपने गले में किसी तमगे की तरह पहनें। वह हमारे गले को खूबसूरती देगा, गोकि वह हमारे खूबसूरत गले के लि�? ही बना है। नया साल तो आ गया, लेकिन क�?दरत का हर पल �?क आभूषण ही है।

क�?रेडिट: जनसत�?ता


R.O. No.12702/2
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