विनायक चतुर्थी पर करें ये उपाय ,गणेश जी का मिलेगा आशीर्वाद

ज्योतिष न्यूज़: हिंदू धर्म में त्योहारों को बहुत ही खास माना जाता है अभी कार्तिक मास चल रहा है और इस माह की विनायक चतुर्थी 16 नवंबर दिन गुरुवार यानि की आज मनाई जा रही है यह पर्व इस दिन श्री गणेश को मनाया जाता है भक्त गणपति की मनाई जाती है पूजा और व्रत भी होते हैं।

माना जाता है कि ऐसा करने से श्री गणेश की कृपा प्राप्त होती है लेकिन ऐसा ही साथ अगर विनायक चतुर्थी के शुभ दिन गणपति स्तोत्र का पाठ मन से किया जाए तो भगवान भक्तों के हर संकट को दूर कर देते हैं और जीवन को खुशहाल बनाते हैं हैं, तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री गणेश स्तोत्र पाठ।
श्री गणेश स्तोत्र—
प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथ बंधुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्ड युग्मम्।
उद्दण्डविघ्नपरिखंडनचण्डदण्ड – माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम्।।
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमान – मिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम्।
तं तुण्डिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो: शिवाय।।
प्रातर्भाजाम्यभयदं खलु भक्तशोकदावानलं गणविभुं वरकुंजरस्यम्।
अज्ञानकानविनाशनहव्यवाह-मुत्सहवर्धनमहं सुतमेश्वरस्य।।
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं सदा सम्पादकम्।।
प्रातरुत्थाय सततं य: पठेत्प्रयत: पुमान्।।
वन्दे गजेन्द्रवदनं वामाङकारूढावल्लभश्लिष्टम्।
कुङ्कुमारराघशोणं कुवलयनिजारकोराकापीडम् ॥
विघ्नन्धकारमित्रं शंकरपुत्रं सरोजलनेत्रम्।
सिन्दूरारुंगात्रं सिन्धुर्वक्त्रं नामम्यहोरात्रम् ॥
गलद्दनगंडं मिल्द्भृङ्गशंडं,
चलच्छरुशुण्डं जगत्राणशौण्डम्।
लस्द्दन्तकाण्डं विपद्भङ्गचण्डं,
शिवप्रेमपिण्डं भजे वक्रतुण्डम् ॥
गणेश्वरमुपास्महे गजमुखं कृपासागरं,
सुरासुरनमस्कृतं सुरवरं कुमारग्रजम्।
सुपाशस्रिणिमोदकस्फुटितदन्तहस्तोज्ज्वलं,
शिवोद्भवमभीष्टदं श्रीततेस्सुसिद्धिप्रदम् ॥
विघ्नध्वन्तनिवारणैकत्रनिर्विघ्नतविहव्यत्,
विघ्नव्यालकुलप्रमत्तगुरुदो विघ्नेभपञ्चाननः।
विघ्नोत्तुङ्गिरिप्रभेदेनपविर्घ्नब्धिकुम्भोद्भवः,
विघ्नघौघनप्रचण्डपावनो विघ्नेश्वरः पातु नः ॥
गणेश पंचरत्न स्तोत्र—
सारगलोकदुर्लभं विरागीलोकपूजितं,
सुरासुरर्नमस्कृतं जरापमृत्युनक्षम्।
गिरिगुरुं श्रीहरिं जयन्ति यत्पादर्चकाः,
नमामि तं गणाधिपं कृपापयःपयोनिधिम् ॥
गिरिन्द्रजामुखाम्बुज-प्रमोददान-भास्करं,
करिन्द्रवक्त्र-मन्तघसंघ-वरणोदयत्म्।
सरिसृपेश-बद्धकुक्षि-माश्रयामि संततं,
शरीरकान्ति-निर्जिताब्जबन्धु-बालसन्ततिम् ॥
शुकादिमौनिन्दितं गकारवाच्यमक्षरं,
प्रकाममिष्टदायिनं सकामनमृपंकटये।
चकासतं चतुर्भुजैः विकासपद्म पूजितं,
प्रकाशितात्मतत्त्वकं नामम्यहं गणाधिपम् ॥
नराधिपत्वदायकं स्वरलोकादिदायकं,
ज्वरादिरोग्वरकं निराकृतासुरव्रजम्।
करणबुजोल्लसत्सृणिं विकारशून्यमानसैः,
हृदय सदा विभावितं मुदा नमामि विघ्नपम् ॥
शरमापनोदनक्षमं सम्मिलितान्तत्रतमनां,
सुमादिभिससदार्चितं क्षमानिधिं गणाधिपम्।
रामधावदिपूजितं यमान्तकात्मसंभवं,
शमादिषद्गुणप्रदं नमामि तं विभूतये ॥
गणाधिपस्य पंचकं नृणामभिष्टदायकं,
निर्भयं जनाः पञ्ति ये मुदयुताः प्रणाम।
भवन्ति ते विदान्पुरः प्रगीतभव जावत्,
चिरयुशोऽधिकश्रियससुसुन्वो न संशयः ॥
श्री गणेश मंत्र
1. ऊँ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
2. ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
3. ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वरवर सर्वजन्म में वशमान्य नम:।।
4. श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येषु सर्वदा ॥
5. ॐ श्रीं गणभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।
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