मुफ्तखोर हो गे हन

रायपुर। राजनांदगांव के मोहभट्ठा निवासी तृष्णा साहू आगामी चुनाव को लेकर एक कविता लिखी है. उन्होंने जनता से रिश्ता को ई -मेल के जरिए साझा की है.

जब ले हमन, अपन ले तोर हो गे हन,
मुफ्त के खवइया, कमचोर हो गे हन ।
चिखना हो तुमन,हमन झोर हो गे हन,
मुफ्त के खवइया, कमचोर हो गे हन ।।
मुफ्त बिजली पट्टा , मुफ्त देथव पानी,
मुफ्त खा-खा के, हमर जरे जिनगानी ।
मुफ्त इलाज पाथन, मुफ्त के सियानी
मुफ्त नेतागिरी करत,मारत हन फुटानी ।
मुफ्त के पइसा चरइया,जइसे ढोर हो गे हन ।।
मुफ्त के खवइया कामचोर ……
डार देयेव आदत,फोकट खाय बर गा दाता,
तुम्हीं हमर पालनहारा,तुम्ही हव पिता-माता ।
फोकट के खाय बर हमला,हमर हवे का जाता ,
जेखर हमन खाता भैया ,तेखर गुन ल गाता ।
फोकट खावत न असकटानी,न बोर हो गे हन।।
मुफत के खवइया कमचोर …..
फोकट के खवइया ल काम कहां उसरथे ?
फोकट छाप मनखे ल खाली रोग-राई हबरथे ।
जीथे गरीबी में अउ ,गरीबी वो मरथे,
फोकट के सोचइ म सिरतो जिनगी उजरथे।
अतका अलाल,कोढिय़ा लतखोर हो गे हन।।
मुफ्त के खवइया कमचोर हो गे हन ।।