पैसों-पर्यावरण को आग लगाते समृद्ध लोग

दशहरा, धनतेरस, छोटी दीपावली, बड़ी दीपावली, गोवर्धन पूजा तथा भाई दूज सब त्योहार धूमधाम तथा हर्षोल्लास से बीत गए। लोगों ने खूब मिठाई बांटी, बहुत पटाखे तथा धमाके चले। खूब बधाई भी दी तथा त्योहारी सीजन बहुत ही आनन्ददायक एवं उल्लासपूर्वक बीता, परन्तु इतनी खुशी प्रसन्नता तथा हर्षोल्लास में हम एक बधाई देना तो भूल ही गए। इस बार हम दुनिया में पहले स्थान पर पहुंच गए हैं। प्रथम आने पर बधाई तो बनती ही है। जी हां, बधाई हो दीपावली मनाने के अगले ही दिन के बाद भारतवर्ष के तीन महानगर दिल्ली, मुम्बई तथा कोलकाता वायु प्रदूषण में प्रथम स्थान पर पहुंच गए हैं। भारतवर्ष की राजधानी दिल्ली वायु प्रदूषण की दृष्टि से दुनिया का सबसे प्रदूषित महानगर बन गया। दिल्ली के साथ-साथ गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा तथा फरीदाबाद तथा गुरुग्राम जैसे शहर भी गम्भीर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। पटाखाबाजी से पंजाब तथा हरियाणा में सांस लेना दूभर हो गया है। केन्द्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की चेतावनी के अनुसार अगले कुछ दिनों तक दमघोंटू धुएं के साथ आसमान पर समोग की जहरीली चादर छाई रहने की संभावना है। दीपावली के पटाखों के जहरीले धमाकों से हिमाचल प्रदेश जैसे स्वच्छ राज्य की हवा भी प्रदूषित होने से नहीं बच सकी। दीपावली के अगले दिन सुंदरनगर, पांवटा साहिब, काला अम्ब, शिमला, धर्मशाला, बद्दी, नालागढ़, घुमारवीं, मण्डी, कुल्लू जैसे शहरों में प्रदूषित तथा जहरीली हवा की परत देखी तथा महसूस की गई।

राज्य प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट में धर्मशाला जैसे शहर का प्रदूषण स्तर 44 से 144 माइक्रोग्राम पहुंचना सभी को चिंतित करता है। अप्रत्यक्ष रूप से यह प्रदूषण स्तर हमारी समृद्ध आर्थिकी तथा बेपरवाह गैर जिम्मेदाराना व्यवहार को भी प्रदर्शित करता है। यह ठीक है कि लगभग 1.5 अरब जनसंख्या के साथ भारतवर्ष पूरे विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं। यह भी सही है कि हम पूरी दुनिया की वैश्विक आर्थिकी में सबसे आगे हैं। आम, केला, अरंडी के बीज, जूट तथा दालों के उत्पादन में विश्व में शीर्ष स्थान पर हैं। स्टील उत्पादन, टेलीकॉम सेक्टर तथा सोलर सिस्टम में भी हम विश्व में सबसे आगे हैं। हम चावल, गेहूं, गन्ना, कपास, मूंगफली, सब्जियां तथा फल उत्पादन में भी दुनिया में द्वितीय स्थान पर रह कर शीर्ष की ओर अग्रसर हैं। लेकिन इस बार हमने वायु प्रदूषण में भी प्रथम स्थान पर पहुंच कर झण्डे गाड़ दिए हैं। हालांकि वायु प्रदूषण में दुनिया में भारत का प्रथम आना सैलिब्रेट तो नहीं किया जा सकता, न ही बधाई दी जा सकती है, क्योंकि प्रथम स्थान पर रहने की आड़ में कहीं फिर से पटाखाबाजी तथा आतिशबाजी न शुरू हो जाए। बहुत ही विचित्र स्थिति है। एक ओर शीर्ष अदालत के आदेशों की धज्जियां उडऩा, दूसरी ओर सरकारों की असमर्थता तथा लोगों की धार्मिक आस्था, स्वतन्त्रता, उमंग, उल्लास, बेपरवाही, पैसे की गर्मी या फिर बेखरापन। ‘वाायु प्रदूषण में भारत दुनिया में सबसे आगे’- दीपावली सैलिब्रेशन के अगले ही दिन भारतवर्ष के सभी मुख्य समाचारपत्रों में यह खबर सुर्खियों में आती है। बहुत ही शर्मनाक है यह। स्विस कम्पनी ए क्यू एयर के अनुसार दिल्ली को 358 ए क्यू आई के साथ दुनिया का सबसे वायु प्रदूषित शहर तथा मुम्बई को पांचवें एवं कोलकाता को छठे नम्बर पर पाया गया।
शीर्ष अदालत तथा दिल्ली सरकार द्वारा पटाखों पर सख्त प्रतिबंध के बाबजूद पूरी रात आतिशबाजी चलती रही। शीर्ष अदालत के आदेश, सरकार के फरमान के विरुद्ध ये शहर जहरीला धुआं उगलते रहे। इस बारे पिछले दिनों हुई बारिश से दिल्ली वासियों को एक्यूआई में काफी राहत मिली थी जो दीपावली की रात में धुआं-धुआं हो गई। क्या हम जानते हैं कि वायु प्रदूषण से हर वर्ष लाखों लोग मौत के आगोश में चले जाते हैं? क्या खुशी और उल्लास के लिए पटाखे फोडऩा बहुत आवश्यक है? क्या हमें पता है कि भगवान राम के चौदह वर्ष के वनवास काटने के बाद पटाखे नहीं, दीप जलाए गए थे। कितने नासमझ और गैर-जिम्मेदार हैं हम। पढ़े-लिखों के इन महानगरों में यह जानते हुए कि यह जहरीली वायु हमारे ही विनाश का कारण बन सकती है। कितने जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, पालतु जानवरों, छोटे-छोटे बच्चों, बुजुर्गों, मनुष्यों, बीमारों को तकलीफ हुई होगी? कितने अस्थमा रोगी परेशान हुए होंगे? कितने पशु-पक्षी तथा घरेलू जानवर दुबक कर तथा सहम कर रहे होंगे? यह हमारी असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा का परिचय देता है।
ईमानदारी से स्वीकार करते हुए आत्मचिंतन करें कि हम कितने असभ्य एवं असंवेदनशील हैं जो अपनी खुशी, मस्ती, उल्लास, आनन्द तथा बेपरवाही से किसी के दु:ख-तकलीफ तथा परेशानी को नहीं समझते। प्रकृति ने अनेकों बार हमें हमारे कृत्यों की सजा दी है। कितनी बार हमने प्रकृति की सजा को भुगता है। इसके बावजूद हम कितने नासमझ हैं कि समझते हुए भी अपने स्वार्थ के लिए समझना नहीं चाहते। हमें यह समझना होगा कि किसी भी धर्म या धर्मग्रंथ में खुशी और उल्लास के अवसर पर पटाखे फोडऩा या वायु में जहरीले अवयव घोल कर उसे प्रदूषित करने की बात नहीं लिखी गई है। विचार करें कि पंचभूतों में वायु एक मुख्य घटक है। श्वास के बिना हम एक पल भी जीवित नहीं रह सकते। इस वायु में जहर न घोलें क्योंकि इस पर केवल तुम्हारा अधिकार नहीं, बल्कि सम्पूर्ण प्रकृति के जीव-जंतु तथा मनुष्य इस पर निर्भर करते हैं। यह वायु जीवनदायिनी है, इसे प्रदूषित न कर इसका वास्तविक मूल्य समझें। इसी में ही मानवीय कल्याण है।
प्रो. सुरेश शर्मा
शिक्षाविद
divyahimachal