किसी भी समाधान की पहली शर्त है खुले दिल से संवाद

रायपुर। प्रवीण ऋषि ने कहा कि दो तीर्थंकरों की शक्तियों का स्रोत जब मिल जाता है तब एक युग में परिवर्तन आ जाता। संवाद की कला आती हो तो कितनी भी पुरानी समस्या हो, समाधान मिल जाता है। समाधान प्राप्त करने के, संवाद करने के सहज सरल सूत्रों को प्रदान करता यह श्रुतदेव हम सभी से इस भावना के साथ कि अपने अंदर में इंद्रभूति गौतम की भक्ति का भाव जागृत करें। प्रभु को स्वीकार करने वाले, लेकिन उनकी राह पर नहीं चलते वाले और प्रभु के प्रति भक्ति रखते हुए उनके शासन में नहीं आने वाले भगवन पार्श्वनाथ के विशाल संघ को इंद्रभूति गौतम महावीर के संघ में समर्पित कराते हैं। इंद्रभूति गौतम की इस कला की, सोच की आज हमें आवश्यकता है। अपने अंदर के केशी श्रमण को जगाएं, किसी भी नई बात का, किसी नए व्यक्ति का स्वागत करने में समर्थ जगाएं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी। उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के 13वें दिवस रविवार को उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को संवाद की कला के बारे में बताया। इससे पहले आज के लाभार्थी परिवार गौतमचंदजी सम्पतकुमारजी झाबक परिवार, तिलोकचंदजी शांतिलालजी अशोककुमारजी बरडिया परिवार, शांति-चंदन महेंद्र-अलका मुकीम परिवार, ख़ुशी संगीता संजय गोलेछा परिवार एवं भंवरलालजी अशोककुमारजी योगेशकुमारजी मुकेशकुमारजी पगारिया परिवार ने श्रावकों को तिलक लगाकर उनका स्वागत किया। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि एक ग़लतफ़हमी है कि आज्ञा देने वाला हम पर हुकुम चलाता है। लेकिन आज्ञा देने वाला, यदि आप आज्ञा को स्वीकार करते हैं, तो उस आज्ञा को संपन्न करने की शक्ति प्रदान करता है। निर्वाण कल्याणक की देशना में प्रभु महावीर ने केशी श्रमण और इंद्रभूति गौतम का जिक्र नहीं किया, लेकिन उस दृष्टिकोण की बात की, उस सिद्धांत की बात की कि कैसे दो संघ एक हो सकते है, कैसे सवालों के जवाब खोजे जा सकते हैं। और जिंदगी में क्या क्या सवाल हो सकते हैं। और जिस समय महावीर ने फ़रमाया, तो सुधर्मा स्वामी को केशी श्रमण और इंद्रभूति गौतम का यह प्रसंग याद आ गया। और उन्होंने महावीर के उन सिद्धांतों को केशी श्रमण के संवाद के रूप में एक वरदान के रूप में हमें प्रदान किया।

उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि छोटों के पास कला होनी चाहिए बड़ों के पास जाने की, और बड़ों के पास कला होनी चाहिए छोटों को गले लगाने की। खुले दिल से संवाद किसी भी समाधान की पहली शर्त है। यदि हम अपने मन को अपनों के पास नहीं खोल पाएंगे तो अपनों का सपना टूट जाता है। यदि अपना दिल खोलकर बताएं तो अंदर का एक भगवन जागृत हो जाता है। उस सामंत के सामर्थ्य को प्रणाम करिये जो छोटों के सामने अपना अज्ञान स्वीकार कर सके। छोटों के सामने स्वीकार करना कि ये मैं नहीं जनता हूं, जानना चाहता हूँ। जिज्ञासा का भाव और खुले दिल से केशी श्रमण अपनी जिज्ञासा ही सामने रखते हैं। बड़ों को एक और कला होनी चाहिए, यदि उनको समाधान लगता है तो उसकी अभिव्यक्ति करनी चाहिए, संतुष्टि का भाव लाना चाहिए। केशी श्रमण बड़े हैं, पार्श्वनाथ के अनुयायी हैं, वहीं, इंद्रभूति गौतम उनसे छोटे हैं, लेकिन वे इंद्रभूति गौतम के सामने केवल सवाल ही नहीं करते, बल्कि सवाल के लाजवाब जवाब को दिल से धन्यवाद देते हैं। और जिस समय हम मिले हुए समाधान को स्वीकार करते हैं, उसी में से नए सवाल का जवाब मिलने की तैयारी हो जाती है। प्रायः हम संवाद में एक गलती कर जाते है, जो समाधान हुआ उसे हम स्वीकार नहीं करते हैं, और अगला सवाल सामने रख देते हैं। केशी श्रमण एक अनूठी कला के साथ इंद्रभूति गौतम से मिले समाधान के लिए कहते हैं कि मुझे समाधान मिल गया है, लेकिन मेरे मन में और भी कुछ है, तुम कहो तो मैं पूछूं। हर बार सवाल पूछने के पहले अनुमति, और यह निवेदन की आप मुझे समाधान दें। किसी से सवाल करना मतलब उसके दिल में जगह लेना। जब कोई व्यक्ति किसी से सवाल पूछता है, तो वह उस व्यक्ति के दिल में प्रवेश करता है। प्रवेश करने के पहले आज्ञा लेनी चाहिए। और जब समाधान हो जाता है, तो केशी श्रमण पूरी परिषद के बीच अहोभाव से इंद्रभूति गौतम को वंदन करते हैं।
रविवार को उपाध्याय प्रवर ने एक दूसरे अनुष्ठान की तैयारी कराई। उन्होंने निर्वाण कल्याणक के अवसर पर किस प्रकार अपने मंगल की ऊर्जा के साथ जुड़ना है, और कैसे पंचपरमेष्ठी की ऊर्जा को ग्रहण करना है। कैसे अनंत तीर्थंकरों की ऊर्जा को ग्रहण करना है, इसकी विधि बताई। उपाध्याय प्रवर ने प्रश्न किया कि धन की पूजा होनी चाहिए कि उसका उपयोग होना चाहिए? किसकी पूजा करनी चाहिए? मुझे प्रभु की पूजा करनी है कि पैसों की? इस संसार में पैसों के पीछे जो रिश्तों की हत्या होती है उसका कारण क्या है? आपको एक संस्कृति मिली है, जो आपको पैसों की भक्ति सिखाती है। पैसा भगवान बनेगा तो आदमी शैतान बन जाएगा। महावीर कहते हैं कि पैसा भगवान नहीं है। पूजा-भक्ति तीर्थंकर की होनी चाहिए। जब अंदर में पाप जन्मता है तो समस्या जन्मती है। अंदर में पुण्य का जागरण होता है तब समाधान का जन्म होता है। सवाल यह है कि अंदर के मूल कारण को दूर करना है या बाहर के संक्रमण को? अगर संक्रमण को दूर करना है तो समस्या कर्म की है, उस कर्म को बदलना चाहिए। और उसका अनुष्ठान होना चाहिए। अगर आपकी आत्मा पुण्य के साथ जुड़ती है तो समाधान होते है, यदि धन के साथ जुड़ती है तो धन की तरह कुंठित हो जाती है। रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि 6 नवंबर के लाभार्थी हैं श्रीमती राजदेवी सुरेश कुमारजी जैन परिवार भिलाई। श्रीमद उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लाभार्थी बनने के लिए आप रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा से संपर्क कर सकते हैं।