कितनी मीठी मिल्क फैडरेशन

By: divyahimachal

मिठाई के सीजन में मिल्कफेड की मिठास और एक कवायद साल के जश्न में कुछ दिखाने की। मिठाई को हाथों में थामे मिल्कफेड इस बार गिफ्ट पैक में बाजार की मोहब्बत दिखा रहा है, जहां खरीददार के लिए एक ब्रांड है हिमाचल। इसमें दो राय नहीं कि दिवाली की मिठाई और लोहड़ी की गज़क के बहाने मिल्क फेडरेशन अपनी उपस्थिति के साथ स्वाद लेकर आती है। यह भी सही है कि गुणवत्ता के आधार पर ये उत्पाद अपनी खासियत का एहसास कराते हैं, लेकिन यह अल्पावधि का प्रयास है जो बाजार में निरंतरता के साथ संदेश नहीं दे पा रहा। कहना न होगा कि दावों के बावजूद हिमाचल के दुग्ध उत्पाद पड़ोसी राज्यों की कतार में खड़ा नहीं हो पा रहे, नतीजतन सुबह की बाहरी राज्यों की डेयरी पर निर्भरता कम नहीं हुई। यह भी अजीब सा चक्र है कि हिमाचल अपना ब्रेकफास्ट बाहर से मंगवाता है। दूध, ब्रेड और पॉल्ट्री प्रॉडक्टस सुबह सवेरे ही घर-घर दस्तक देते हैं, लेकिन वहां कोई विरला ही हिमाचल का ब्रांड है, वरना हमारी गाय और भैंस तो सडक़ों पर घूम रही हैं। आश्चर्य तो यह कि हम अनुमान लगाने की जुर्रत भी नहीं करते कि आखिर कितने डेयरी, कितने पॉल्ट्री व कितने बेकरी प्रॉडक्ट्स दूर दूसरे राज्यों से सुबह तक हमारे पास पहुंच रहे हैं। बेशक मिल्क फेडरेशन के कई अभिशीतन केंद्र या मिल्क प्लांट इस जद्दोजहद में हैं कि वे हमारे लिए उपयोगी साबित हों, लेकिन न मंडी, न शिमला और न ही कांगड़ा के मिल्क प्लांट जरूरत का एक चौथाई हिस्सा भी पूरा कर पाए। अब कांगड़ा के ढग्वार में 226 करोड़ की लागत से ‘स्टेट ऑफ द आर्ट’ दुग्ध प्रसंस्करण संयंत्र का प्रस्ताव आशा जगा रहा है। इससे पहले भी राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम के तहत हिमाचल ने इक्का दुक्का प्रयास जारी रखे, लेकिन उपभोक्ता की मांग का समाधान मिल्क फेडरेशन पूरी तरह नहीं निकाल पाई। मजबूरन सुबह की चाय और नाश्ते में ब्रेड, बटर और अंडे के लिए बाहर से आ रहे ट्रकों का इंतजार करना पड़ता है। ऐसे में सुक्खू सरकार कांगड़ा के मिल्क प्लांट के माध्यम से एक बड़ा सपना पाल रही है और यह कांग्रेस की गारंटी के तहत उत्पादक से उचित मूल्य पर दूध की खरीद का आश्वासन भी है।
इस बहाने हिमाचल की योग्यता का पता चलेगा कि क्या राज्य अपने ब्रेकफास्ट की प्लेट सजा पाएगा। ब्रेकफॉस्ट के बहाने कांगड़ा टी को अपना रंग दिखाने, मिल्क फेडरेशन को दूध, मक्खन, पनीर व ब्रेड उत्पाद तक जौहर दिखाने और एचपीएमसी को तरह-तरह के जूस पिलाने का अवसर मिल रहा है। मिल्क फेडरेशन अपने विभिन्न उत्पाद इकाइयों के मार्फत बेकरी उत्पादन भी जोड़ ले तो दूध की ढुलाई में ही बिना अतिरिक्त व्यय के ये उत्पाद भी घर-घर पहुंच जाएंगे। इसी के साथ अगर दिवाली की मिठाई बाजार में उतार कर मिल्क फेडरेशन अपने ब्रांड को चमका रहा है, तो इसे साल भर के नेटवर्क में क्यों न देखा जाए और इसके लिए बाकायदा एक उत्पादन इकाई समर्पित की जाए। हिमाचल के कई विभाग, विश्वविद्यालय, निगम व फेडरेशन अपने-अपने तरीके से राज्य के उत्पादों में ब्रांड बनना चाहते हैं, लेकिन कोई समन्वित कार्य नहीं हो रहा। सत्तर के दशक में ही हिमाचल के जूस ने पूरे देश में अपनी धाक जमा ली थी, लेकिन अब एचपीएमसी ऐसे उद्देश्यों में फिसड्डी है। प्रदेश की पर्यटन मार्केट की आपूर्ति में एक चेन ऑफ प्रॉडक्ट्स संभव है और इस लिहाज से सारे राज्य में हिमाचली उत्पादों के मॉल स्थापित किए जाएं। हम अगर कायदे से शहद और कांगड़ा चाय को ही ब्रांड बनाएं, तो हर आने वाले के लिए शाल, स्कार्फ या टोपी के साथ-साथ इन्हें खरीदना भी जरूरी होगा। ढग्वार मिल्क प्लांट के साथ अगर ज्वालामुखी के पेड़ों तथा दियोटसिद्ध के रोट की दक्षता भी जोड़ दी जाए, तो न केवल ये प्रसाद की जगह उपलब्ध होंगे, बल्कि हिमाचल की पहचान में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बाजार में महक बिखेर देंगे। ऐसे ही उत्पादों में शुद्ध धूप, ब्रांस फूल के उत्पाद, बागबानी से जुड़े उत्पाद, मछली के आचार व हिमाचली धाम की डिब्बाबंदी जब अपनी खासियत के साथ पेश होंगे तो पर्यटक के लिए इन्हें खरीदना मजबूरी बन जाएगा। धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम के समीप एक ऐसे मॉल व प्रदर्शनी केंद्र का निर्माण किया जा सकता है, जहां हिमाचल के सारे उत्पाद तथा सांस्कृतिक रोमांच उपलब्ध करवा कर पर्यटन में पूरे प्रदेश में घूमने की आवश्यकता पैदा की जा सकती है।