पूर्व राजघरानों के बिना अधूरी-सी लगती है मध्यप्रदेश की सियासत

भोपाल: राज्य में विधानसभा चुनाव चरम पर हैं. मतदान को चंद दिन बाकी हैं. ऐसे में उम्मीदवारों ने पूरी ताकत झोंक दी है. इनमें पूर्व राजघरानों की साख भी दांव पर लगी है, क्योंकि पूर्व राजघरानों के वारिश, इनके परिजन चुनाव मैदान में डटे हैं. चुनाव जीतकर ये विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचे हैं. सत्ता में भी खासा दखल रहा है. यूं कहें कि इन पूर्व राजघरानों के बिना मध्यप्रदेश की सियासत अधूरी है तो कोई गलत नहीं होगा.
जहां पूर्व राजपरिवार के लोग चुनाव मैदान में नहीं होते वहां उनका किसी न किसी को समर्थन होता है. सूबे की सियासत में ग्वालियर की तत्कालीन महारानी विजयाराजे सिंधिया की खूब चलती थी. अब उनके वारिश राजनीति में सक्रिय हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्र में मंत्री हैं. इनकी बुआ मप्र सरकार में खेल मंत्री हैं. हालांकि चुनाव में बुआ यानी यशोधरा राजे मैदान में नहीं हैं. उधर, मामी माया सिंह ग्वालियर पूर्व से चुनाव मैदान में हैं.
अब संभाल रहे सियासी विरासत

रीवा का पूर्व राजपरिवार: भाजपा के दिव्यराज सिंह इस पूर्व राजपरिवार की सियासी विरासत संभाल रहे हैं. इनके खिलाफ कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय के रामगरीब को उतारा है.
राघौगढ़ राजघराना: राघौगढ़ सीट से दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह कांग्रेस से मैदान में हैं. उनके सामने भाजपा के हीरेंद्र सिंह बंटी बन्ना मैदान में हैं. दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह चांचौड़ा सीट से लड़ रहे हैं. मुकाबले में भाजपा से प्रियंका मीणा हैं.