दहेज के मामलों में दोष सिद्धि एक प्रतिशत से भी कम

हरियाणा | दहेज उत्पीड़न के मामलों में आरोपियों की दोषी सिद्धि एक फीसदी से भी कम है. पिछले ढाई वर्ष के दौरान महज 0.94 आरोपियों को दहेज उत्पीड़न में सजा हुई है, जबकि बरी होने वाले आरोपी एक हजार से ऊपर हैं.
अदालती रिकॉर्ड के मुताबिक, एक जनवरी 2021 से 30 जून 2023 के बीच महज पांच मामलों में दहेज उत्पीड़न का आरोप साबित हुआ है, जबकि वर्षों तक दहेज प्रताड़ना का मुकदमा चलने के बाद 527 मामलों में तकरीबन 1200 आरोपी बरी हुए हैं. इन मामलों में पीड़ित पक्ष द्वारा पति के अलावा सुसराल के अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया गया था, लेकिन इन पर आरोप साबित नहीं हो पाया. वहीं, जिन पांच मामलों में आरोप साबित हुआ है, उनमें ससुराल पक्ष के 11 लोगों को सजा हुई है. अधिकांश मामलों में पीड़िता द्वारा खुद बयान से पलटने की बात भी सामने आई है. अदालत ने माना है कि पुख्ता आधार न मिलने की वजह से दहेज उत्पीड़न के मामलों में आरोपियों को बरी करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता.
घटना का दिन व समय ही नहीं बता पाई पीड़िता वर्ष 2011 में नंदनगरी निवासी नेहा ने अपने ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया था. इस मामले में नेहा की पुलिस के समक्ष गवाही वर्ष 2011 में ही हो गई थी, लेकिन कड़कड़डूमा अदालत के समक्ष 27 अप्रैल 2017 को बयान दर्ज कराते समय पीड़िता घटना का दिन और समय बताने में असमर्थ रही. पीड़िता यह भी नहीं बता पाई कि ससुराल वाले किस तरह की मांग उससे या उसके परिवार से कर रहे थे. गवाह भी अपने बयानों से मुकर गए. इसके बाद अदालत ने पति, सास व ननद-नंनदोई को बरी कर दिया
घरेलू झगड़े को दहेज प्रताड़ना बना दिया
एक अलग मामले में पीड़िता ने द्वारका अदालत के समक्ष बताया कि उसका देवर के साथ अक्सर झगड़ा होता था. पति भी देवर की तरफ से ही बोलता था. एक दिन देवर ने उस पर हाथ उठा दिया. वह गुस्से में शिकायत दर्ज कराने थाने पहुंच गई. पुलिस ने इस मामले को झगड़े की बजाय दहेज प्रताड़ना में दर्ज कर लिया. अदालत ने पीड़िता के बयान के आधार पर ससुराल पक्ष के लोगों को बरी कर दिया.
गुजाराभत्ते के लिए केस जरूरी नहीं
घरेलू विवादों के जानकार अधिवक्ता विवेक भारद्धाज बताते हैं कि गुजाराभत्ता पाने के लिए घरेलू हिंसा का मुकदमा अदालत में दर्ज करा दिया जाता है. हालांकि, गुजाराभत्ता पाने के लिए पति-पत्नी के अलग रहने के आधार पर याचिका दायर की जा सकती है. अधिवक्ता दहेज उत्पीड़न में आरोपियों के बरी होने की बड़ी वजह मुकदमों के लंबे समय तक चलना बताते हैं. लंबी प्रक्रिया इन मुकदमों के वजूद को हल्का कर देती है.
