समाज से कानून की मुठभेड़

By: divyahimachal

बदलते सामाजिक व्यवहार से हिमाचल पुलिस का मुकाबला अगर यूं ही कानून व्यवस्था को गच्चा देता रहा, तो सुकून की ये गलियां नहीं बचेंगी। कानून के दायरे और परिभाषा को गढ़ते पुलिस इंतजाम ने मान लिया कि एक भोला-भाला हिमाचल उसकी नोक के नीचे रहेगा, लेकिन अब मसले परेशान करने लगे हैं। समाज अब सामुदायिक संगत से बाहर निकल कर अपने मनोरथ के लिए निरंकुश हो रहा है। यह समाज अब ‘मुंडू’ नहीं, प्रगति की हर स्पर्धा में संसाधनों की प्राप्ति के लिए नए कदम रखने लगा है। जीवन के संघर्ष हिमाचल में भी बदले हैं और बदला है आर्थिकी का संचार, इसलिए रियल एस्टेट अपनी छेनी से पर्वत को काट रहा है। जमीनों के सौदे और सौदों की तहजीब में सत्ता, राजनीति, बड़े संपर्कों की कानाफूसी तथा प्रभाव का अधिकार बढ़ रहा है। संतोषगढ़ में बारात के स्वागत में सजी महफिल खून की लकीरें खींच देती है, तो वहां संघर्ष ऐसे अहंकार से पैदा होता जो सार्वजनिक चरित्र में खूंखार वर्चस्व का प्रदर्शन बन जाता है। नगरोटा बगवां में दो भाइयों के बीच गोलीबारी से धरती लाल हो गई, तो इसका अर्थ यह भी है कि हमारा संघर्ष अब घातक इरादे रखता है या हम कानून की परिभाषा से ऊपर अपने दिलो दिमाग में •ाहर रखते हैं। ऐसे अनेकों अपराधों के बीच हमारी उपलब्धियों का एक भयानक चेहरा समाज के भीतर भोलेपन का चीरहरण कर रहा है। दूसरी ओर सियासी दखल ने समाज के बीच अगर अपने लठैत पैदा किए, तो पुलिस की निष्पक्षता को निकम्मा बना दिया। सवाल तो अब कानून व्यवस्था से ऊपर उठकर न्याय की प्रक्रिया तक लाचार मजमून हो गए। यह इसलिए भी कि समाज अपने सामने के अति निर्लज्ज व घातक घटनाक्रम के किनारे हो गया।
पिछले तीन दशक में आई संपन्नता की मीनारों पर कई संदेहों के छींटे हैं और अगर इन्हीं बुलदियों पर समाज का एक हिस्सा बेकाबू हो रहा है, तो मुर्दाघरों में पहाड़ी परंपराओं की चीख कौन सुनेगा। पालमपुर-धर्मशाला के एक व्यवसायी द्वारा शुरू हुआ न्याय का संघर्ष उस संघर्ष से ऊपर है, जो एक आम हिमाचली के सपनों में पिघल कर पसीना बनता है, लेकिन यह पहला अवसर है जब एक व्यक्ति के तमाम गिले पुलिस व्यवस्था के सर्वेसर्वा से हैं। इस तनातनी को हम न झुठला सकते हैं और न ही पचा सकते। आरोप लगाने वाला न तो हवा में तीर मारने का संकेत दे रहा है और न ही कानून व्यवस्था पर उठे प्रश्न अतार्किक हैं। कुछ तो है इस धुएं के पीछे, वरना आसमां यूं ही काला न•ार न आता। यहां सीधे प्रश्न पुलिस विभाग के मुखिया से हैं और जवाब सुक्खू सरकार को देना पड़ेगा। बेशक अब कानून के हिसाब में भी खेल बहुत है, मगर न•ारों में जो आए इंकलाब वही है। कानून से जिरह अगर कानून की बस्ती में होने लगे, तो हर अंधेरे से पूछना पड़ेगा कि आखिर पहरेदार सो कहां रहा। यहां कानून की रक्षक हिमाचल सरकार को होना पड़ेगा ताकि व्यवसायी के आरोपों की सच्चाई सामने आए। आरोपों की सत्यता अभी साबित होनी है, लेकिन व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता में पुलिस का व्यवहार एकपक्षीय हो जाए या किसी एक का सहयोगी न•ार आए तो आने वाले दिन समाज के सांचे में भी सौदेबाजी करेंगे।
हिमाचल की आर्थिक प्रगति से जुड़ी चुनौतियों में संगठित हो रहे आपराधिक तत्वों को समझना होगा। कारोबार, उद्योग, पर्यटन व छोटे-छोटे व्यवसायों में सपनों का एक नया संसार उभर रहा है, जहां बैंकिंग क्षेत्र, सरकारी अनुमतियां व कानून व्यवस्था की देखरेख जरूरी है। साइबर अपराधों के साथ-साथ प्रदेश में परिवहन की दृष्टि से भी पुलिस की भूमिका बदल रही है। कम्युनिटी पुलिसिंग, ट्रैफिक नियंत्रण के अलावा पर्यटन की दृष्टि से स्मार्ट पुलिस बल की परिभाषा को मुकम्मल बनाने के लिए संवेदनशीलता, आधुनिक गतिशीलता, नियुक्तियों में पारदर्शिता तथा पुलिस-पब्लिक रिलेशन में निखार की अति आवश्यकता है। पुलिस व्यवस्था के शिखर संबोधन राजधानी शिमला से जो कहते हैं, उससे कहीं अलग अंतरराज्यीय सीमाओं पर स्थितियां बदल रही हैं। आज की तारीख में पर्यटन स्थलों, व्यावसायिक व धार्मिक स्थलों एवं शहरीकरण को जिस तरह की सतर्कता में पुलिस व्यवस्था चाहिए, उसका इंतजाम करना होगा। बहुत सारे पुलिस के पद शिमला में अव्यावहारिक व अप्रासंगिक हो चुके हैं, जिन्हें नई चुनौतियों के तहत विकेंद्रीकृत करना होगा। नगर निगम क्षेत्रों के लिए पुलिस आयुक्तालय तथा सीमांत चौकसी के लिए बीबीएन में एक अतिरिक्त डीजीपी का पद सृजित करके इसके तहत पांवटा साहिब, कालाअंब से आगे बीबीएन, ऊना तथा कांगड़ा के नूरपुर तक की जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी होगी।