बस्तर जिले में ‘मावली परघाव’ अनुष्ठान का आयोजन

बस्तर। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में मनाए जाने वाले दशहरा पर्व में कई रस्में होती हैं और 13 दिन तक दंतेश्वरी माता समेत अनेक देवी देवताओं की पूजा की जाती है। 75 दिनों तक चलने वाला बस्तर दशहरा की शुरुआत हरेली अमावस्या से होती है, जिसमें सभी वर्ग, समुदाय और जाति-जनजातियों के लोग हिस्सा लेते हैं। इस पर्व में राम-रावण युद्ध की नहीं बल्कि बस्तर की मां दंतेश्वरी माता के प्रति अपार श्रद्धा झलकती है। पर्व की शुरुआत हरेली अमावस्या को माचकोट जंगल से लाई गई लकड़ी (ठुरलू खोटला) पर पाटजात्रा रस्म पूरी करने के साथ होती है।

मां भारती की सेवा में पुत्र शस्त्र उठाकर सीमा पर तैनात है, तो उसकी सुरक्षा की कामना लिए एक पिता पिछले आठ वर्ष से मां दंतेश्वरी की सेवा में अस्त्र लिए रथ निर्माण करते आ रहे हैं। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की शुरुआत से ही रथ निर्माण का कार्य बेड़ाउमरगांव व झारउमरगांव के ग्रामीण करते आ रहे हैं। इसमें लगभग 150 लोग शामिल होते हैं।

झारउमरगांव के बलदेव बघेल भी इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, पर इसमें परिवार की परंपरा निर्वहन के साथ पुत्र के लिए स्नेह का भाव भी है। पिता बिस्सु के बाद रथ निर्माण में सेवा देने वाले बलदेव बताते हैं कि बड़ा बेटा गजेंद्र आठ वर्ष पहले सीमा सुरक्षा बल में भर्ती हुआ। वह जम्मू-कश्मीर में तैनात है, जहां आंतकवादियों से देश की रक्षा में डटा है। तब से वे प्रतिवर्ष मां दंतेश्वरी की सेवा करते आ रहे हैं। यहां वे करीब 25 दिन तक रहेंगे और परंपरागत अस्त्र से रथ का निर्माण करेंगे।


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