स्मार्ट सिटी का स्मार्ट टॉयलेट और बस स्टॉप बदहाल

किसके पास है स्मार्ट सिटी के टायलेट की रिमोट

स्मार्ट सिटी के नाम पर अधिकारियों और कंपनी के खेला-खेल

कंंपनी को भगाकर अब फिर टेंडर की फिराक में

ये कैसा स्मार्ट सिटी, 2.60 करोड़ के इलेक्ट्रॉनिक-टॉयलेट

नहीं खुलता है दरवाजा, न सेंसर काम कर रहा-न ही बटन

रायपुर। स्मार्ट सिटी के नाम पर सरकारी धन का कैसे बंठाधार करने का महारत नगर निगम और स्मार्ट सिटी के अधिकारियों को हासिल है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से जितने भी काम हुए है सभी हाथी के दांत की तरह दिखाई दे रहे हैं। ये दिखाने के दांत है स्मार्ट टॉयलेट में तकनीक ऐसी बनाई गई थी कि 1, 2 और 5 रुपए के सिक्के डालने के बाद दरवाजा खुलना था और फिर लोग इनका इस्तेमाल कर पाते, लेकिन शहर के विभिन्न स्थानों पर बने इन टॉयलेट्स पर जाना बेइज्जती कराने के समान है। न सेंसर काम कर रहा है न दरवाजा खुलता है न बटन दबता है। इतने मशक्कत करते तक लोगों का पैंट ही खराब हो जाता है। पुराने सुलभ शौचालय ही स्मार्ट का विकल्प बन चुका है, लेकिन वहां की दुर्गति और दुर्गंध- गंदगी इतना है कि कमोड पर उपर तक गंदगी से वहां भी जाना बीमारी मोल लेना है।

रायपुर स्मार्ट सिटी निगम लिमिटेड ने ई-टॉयलेट बनाने वाली जिस कंपनी को मेंटनेंस और ऑपरेशन की जिम्मेदारी दी थी, वह कंपनी भाग चुकी है। 2.60 करोड़ की लागत से शहरभर के 32 स्थानों पर ई-टॉयलेट बनाएं गए, लेकिन जब इसके संचालन की बारी आई तो कंपनी ढंूढने में भी नहीं मिल रही है। लोगों ने बताया यहां क्वाइन डालने के बाद भी दरवाजा नहीं खुलता। ये पैसा बाद में लोगों को वापस भी नहीं मिलता है। इस मामलों को लेकर स्मार्ट सिटी के अधिकारियों का टालमटोल वाली रटा-रटाया जवाब रहता है कि केरल की कंपनी को कई बार नोटिस दिया जा चुका है। ई-टॉयलेट के इस्टालेशन के बाद कुछ दिन यह ठीक-ठाक चला, लेकिन बाद में कंपनी का अता-पता ही नहीं मिला। इन सब मामलों को लेकर कंपनी से अनुबंध निरस्त कर दूसरे को जिम्मेदारी देने की तैयारी चल रही है। मशीन की टेस्टिंग ही नहीं हुई ई-टॉयलेट लगाने की प्रक्रिया साल 2018 से शुरू कर दी गई थी। मशीनें 2019 तक लग गई, लेकिन सिक्के डालने के बाद गेट खुलता है या नहीं इसकी टेस्टिंग ही नहीं हुई। स्मार्ट सिटी के अधिकारी कंपनी को नोटिस भेजने में लगे रहे, जबकि महीने-दर-महीने लाखों की लागत से बना स्मार्ट टॉयलेट कबाड़ में तब्दील हो चुका है। अधिकारियों का कहना था कि कंपनी से संचालन के लिए एडवांस में 75 लाख रुपए जमा कराया गया है। कंपनी यदि आखिरी नोटिस में भी नहीं आती है तब की स्थिति में इसके संचालन की जिम्मेदारी जमा राशि से दूसरे को दिया जाएगा। इसके लिए फिर से टेंडर की प्रक्रिया करनी होगी। लाखों की लागत से बने इस टॉयलेट की खासियत यह बताई गई थी कि यह ऑटोमेटिक होगा, यानि बिना पैसे डाले दरवाजा नहीं खुलना। ऑटो फ्लश, स्टेनलेस स्टील के इस्तेमाल की वजह से मजबूत होगा। ई-टॉयलेट्स में विज्ञापन की जगह साथ ही सिग्नल के जरिए दरवाजे का इंडीगेशन आदि बताया गया था। हालांकि यह सब सिस्टम अब ठप पड़ हुआ है।


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