गोवर्धन पूजा 14 नवंबर को होगी, भाई दूज की भी बदली तारीख

ज्योतिष न्यूज़ : दीपावली से ठीक एक दिन बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है। लेकिन इस बार गोवर्धन पूजा 13 नवंबर के उत्सव 14 नवंबर को की जाएगी। इस दिन श्रीकृष्ण के जन्मस्थान गोवर्धन पर्वत (गिरिराज जी) और गाय की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन गोवर्धन, वृंदावन और मथुरा सहित पूरे बालाजी में जोर-शोर से अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। पुजारियों में अन्नकूट महोत्सव कार्तिक प्रतिपदा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक आता है।
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गोवर्धन पूजा (14 नवंबर)
गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। इस दिन गोवर्धन पर्वत, भगवान श्रीकृष्ण और गोमाता की पूजा करने का विधान है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं के राजा इंद्र के व्यवहार को नष्ट कर दिया था। इस दिन मूर्तियों के अलावा कॉलोनी आदि में गाय के गोबर से गोवर्धन भगवान के बड़े सुंदर प्रतिरूप की पूजा की जाती है।
क्या है कहानी
धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार द्वापर युग में इंद्र ने कुपित किया था जब मूसलाधार वर्षा की तो श्री कृष्ण ने गोकुलवासी व किसान की रक्षार्थ और इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत, छोटी उंगली पर उठाया था। उनके सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी, सभी गोप-गोपिकाएं अपनी छाया में सुरक्षित रहीं। तब ब्रह्माजी ने इंद्र को बताया कि पृथ्वी पर श्रीकृष्ण ने जन्म लिया है, उनसे बैर नहीं लेना है। तब श्रीकृष्ण अवतार की बात जानने के लिए इंद्रदेव ने अपने इस कार्य पर बहुत लज्जित किया और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की। इंद्र के अभिमान को चुराने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने सभी गोकुल वासियों को कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन 56 प्रकार के सिद्धांतों का भोग लगाया। गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी जगह।
गोवर्धन पूजा की विधि
गोबर पूजा करने के लिए सबसे पहले आप घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन की चोटी देखें। इसके बाद रोली, चावल, खेड, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक गोवर्धन भगवान की पूजा करें। इसके बाद अपने परिवार सहित श्रीकृष्ण स्वरूप गोवर्धन की सात प्रदक्षिणा करें। सिद्ध है कि इस विधि से भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से लेकर गुड़ और चावल के सेवन तक की विधि बनी रहती है। इस दिन गाय की पूजा करने से सारे पाप उतर जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भाई दूज (15 नवंबर)
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हर भाई दूज के रूप में माना जाता है। इस पर्व में सबसे पहले यमुना जी ने अपने भाई यमराज को तिलक किया था, इस उत्सव में यमराज ने उपहार स्वरूप यह वचन दिया था कि वर्ष में एक बार मैं आपके पास आऊंगा। जो भाई अपनी बहन से इस दिन तिलक करेगा, साथ में यमुना नदी में नहाएगा, फिर भी मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
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