कैंपस डिबेट: कॅरियर के कई विकल्प, रिसर्च में भी संभावनाएं मगर चुनौतियां भी

इंदौर न्यूज़: कॅरियर के लिहाज से माइक्रोबायोलॉजी बेहतर विकल्प माना जाता है मगर छात्र अब इससे ज्यादा खुश नहीं है. कॉलेज कैंपस में जूम टीम से छात्रों ने कहा कि विषय अच्छा है, संभावनाएं भी अनेक हैं मगर नौकरी में समस्या आती है. जो लोग रिसर्च करना चाहते हैं वे तो आगे पढ़ सकते हैं लेकिन जिनको यूजी-पीजी के बाद जॉब की जरुरत रहती है उनके लिए दिक्कत हो रही है. प्रैक्टिकल नॉलेज भी नहीं रहता जिस कारण कंपनियां तरजीह नहीं देती. सरकारी वैकेंसी भी कम ही निकलती है. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं. योग्यता के हिसाब से कंपनियां रिक्रूटमेंट करतीं हैं. मौजूदा दौर में माइक्रोबायोलॉजी में संभावनाएं भी बढ़ रहीं हैं.यदि आप माइक्रोबायोलॉजिस्ट बनना चाहते हैं तो इसके लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स और बायोलॉजी के साथ 12वीं पास करना पड़ेगी.

वहीं, यदि पोस्टग्रेजुएशन करना चाहते हैं, तो इसके लिए माइक्रोबायोलॉजी में बैचलर्स डिग्री होना जरूरी है. इसके बाद अप्लायड माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, क्लीनिकल रिसर्च, बायोइंफॉर्मेटिक्स, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, बायोकेमेस्ट्री, फोरेंसिक साइंस जैसे सब्जेक्ट्स में मास्टर्स कर सकते हैं.

दुनिया मे हर दिन बढ़ती नई-नई बीमारियों के कारण माइक्रोबायोलॉजी का क्षेत्र काफी अच्छा करियर ऑप्शन बन गया है. माइक्रोबायलोजिस्ट के तौर पर आप लेबोरेटरी, क्लिनिक, हॉस्पिटल, फार्मास्यूटिकल कंपनी, डेयरी प्रोडक्ट्स, टीचिंग, रिसर्च असिस्टेंट, और जेनेटिक इंजीनियरिंग, एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट मेकिंग कंपनी जैसे सेक्टर में बेहतरीन करियर बना सकते हैं.

वैकेंसी नहीं निकलती

माइक्रोबायोलॉजी के छात्रों का कहना है कि आज के समय में माइक्रोबायोलॉजिस्ट की हर इंडस्ट्री में जरुरत है, लेकिन फिर भी कोई वैकेंसी नहीं निकलती है. हर साल लाखों छात्र इससे पासआउट होते हैं लेकिन सरकार एक या दो वैकेंसी ही निकालती है.

मोनिका सोनी, छात्रा

प्रैक्टिकल न होने से जॉब में परेशानी

तीन साल बैचलर और दो साल के मास्टर्स में हमें थ्योरी तो बहुत अच्छे से समझाई जाती है लेकिन प्रैक्टिकल नहीं कराए जाते. प्रैक्टिकल नॉलेज नहीं होने के कारण कोर्स पूरा होने के बाद जॉब के लिए अप्लाई करने पर हमें फ्रेशर होने पर सिलेक्ट नहीं किया जाता.

अकांक्षा साहू, छात्रा

नहीं मिलती डॉक्टर की डिग्री

माइक्रोबायेलॉजिस्ट ही लैब में टेस्ट कर मरीज की बीमारियों का पता लगाते हैं. इन्हीं की रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर्स इलाज करते हैं. बावजूद इसके हमें डॉक्टर का दर्जा नहीं मिलता. हम चाहते हैं कि हमारे कोर्स को भी प्रोफेश्नल किया जाए, ताकि हमें भी सम्मान मिले.

वंदना पटेल, छात्रा

पढ़ाई के दौरान थ्योरी के साथ हम स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल नॉलेज भी देते हैं. समय-समय पर उनकी प्रैक्टिकल क्लास भी लगाई जाती है लेकिन कोई भी कंपनी जब किसी को हायर करती है तो वह कम से कम उसे 6 महीने की ट्रेनिंग देती है, ताकि वह कंपनी के काम के तौर-तरीके समझ सके. इसके बाद ही उसे कोई जिम्मेदारी दी जाती है. ऐसे में छात्र इस बात को मन से निकाल दें कि प्रैक्टिकल नॉलेज के कारण उन्हें यह समस्या आ रही है. हर कंपनी की अपनी जरुरत होती है, जिसके आधार पर कंपनी रोजगार के लिए चयन करती है.


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