दिल्ली के वार्षिक औसत तापमान में साल-दर-साल वृद्धि

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का असर अब स्थानीय स्तर पर भी नजर आने लगा है। इसी कारण राष्ट्रीय राजधानी के तापमान में भी वृद्धि देखने को मिल रही है। मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि चार दशक में दुनिया भर में तो ज्यादा गर्मी महसूस की ही गई है, राजधानी के वार्षिक औसत अधिकतम तापमान में भी यह वृद्धि देखने को मिली है।

मौसम विभाग की सफदरजंग वेधशाला, जो दिल्ली का आधार स्टेशन है, पर वर्ष 1980 से 2022 तक औसत वार्षिक अधिकतम तापमान का आंकड़ा ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है। नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फार स्पेस स्टडीज के एक विश्लेषण से पता चलता है कि विश्व में ज्यादातर गर्मी वर्ष 1975 के बाद हुई है।
दिल्ली के औसत वार्षिक अधिकतम तापमान में भी गर्मी का बढ़ता रुझान तभी से दिखाई देता है, जबकि उससे पहले के दशकों (1940 से 1980 के आसपास) में यह रुझान घटता हुआ देखने को मिलता है। वर्ष 1980 से 2022 के बीच 1987 में दिल्ली का वार्षिक औसत अधिकतम तापमान 32.73 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। वर्ष 1997 में यह सबसे कम 29.66 डिग्री सेल्सियस रहा। वर्ष 2002 के बाद फिर यह कभी नीचे नहीं आया, बल्कि इसमें लगातार वृद्धि ही होती गई। वर्ष 2022 में यह 32.01 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।
क्षेत्रीय मौसम पूर्वानुमान केंद्र के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 1980 से 2022 तक के आंकड़े औसत वार्षिक अधिकतम तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाते हैं, जबकि न्यूनतम तापमान इतनी अधिक वृद्धि का संकेत नहीं देता है। उन्होंने बताया, तापमान में वृद्धि के साथ हवा की नमी धारण क्षमता भी बढ़ जाती है। इसका अर्थ है कि उमस में वृद्धि हो सकती है और परिणामस्वरूप असुविधा का स्तर बढ़ सकता है।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम. राजीवन कहते हैं कि 1970 के बाद वैश्विक स्तर पर तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है, जो ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि के असर को दर्शाता है। अधिकतम तापमान न्यूनतम की तुलना में तेजी से गर्म होने की प्रवृत्ति दर्शाता है। न्यूनतम तापमान, रात में क्या हो रहा है, उससे नियंत्रित होता है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन रात के तापमान को नियंत्रित कर सकता है।