अब संदेशा नहीं ‘पिया’ का भेजा पार्सल लाते हैं डाकिये

मुंगेर: एक समय था, जब साइकिल पर खाकी कपड़े पहने और कंधे पर झोला टांगे डाकिया घरों के पास से गुजरता था तो हर किसी की आंखें उम्मीदों से मुस्कुरा उठती थीं. पर्व-त्योहार के लिए बूढ़ी आंखों में बेटे के आने की खबर, तो नन्हें कदमों को पिता के आने की आहट तो दूर ससुराल में बैठी बेटी को मायके की खबर और गृहणियों को अपने पिया के परदेस से लौटने के संदेशे के लिए दिल में बेचैनी रहती थी. मौजूदा समय में मोबाइल, एसएमएस, कुरियर और इंटरनेट ने संदेशों का आदान-प्रदान तो आसान कर दिया, लेकिन इंतजार और रोमांच का वो लम्हा छीन लिया. अब घर-परिवार के लोगों को अपने पिता, बेटे या पति के लिखे पत्र का नहीं उनके भेजे पार्सल के लिए डाकिये का इंतजार रहता है. पत्र भेजने का सिलसिला भले कम हो गया हो, लेकिन आज भी लोग चिट्ठियां भेज रहे हैं. हालांकि अब डाक विभाग ने खुद को पहले से ज्यादा अपडेट करते हुए लेटर बॉक्स से चिट्ठियां निकालने का तरीका बदल दिया है. पूर्वी क्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल मनोज कुमार ने बताया कि डाक विभाग ने चिट्ठियों के लिए पोस्टमैन मोबाइल सिस्टम से पत्रों की निकासी करने की ट्रेनिंग डाकिया को दी है. इसके तहत देश भर में शहरी क्षेत्रों के डाकिया को 70 हजार तो ग्रामीण क्षेत्र के डाकिया करीब एक लाख मोबाइल उपलब्ध कराये गए हैं. इससे डाकिया लेटर बॉक्स पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन करने पर ही वह बॉक्स खुलता है. डाकिया पत्र निकालते हैं. इससे संबंधित डाकघर के अधिकारियों को इसकी जानकारी हो जाती है.
विभाग से मिल रहीं ये सुविधाएं, आसानी से मिल रहा लाभ

डाक से निजी पत्राचार में कमी आई है. अब लोगों में डाक से पार्सल भेजने का चलन बढ़ा है. पहले से करीब 10 गुना से भी ज्यादा पार्सल बढ़ा है. मनोज कुमार,
पोस्टमास्टर जनरल, पूर्वी क्षेत्र