यहाँ जाइये कैसे हुई महामृत्युंजय मंत्र की रचना

हिन्दू धर्म में शिव जी को सभी देवों में सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त है, इसलिए देवों के देव महादेव को कहा जाता है। शास्त्रों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई चमत्कारिक मंत्र बताए गए हैं। मित्रता में से एक है महामृत्युंजय मंत्र। इस मंत्र को बहुत बड़ा और शक्तिशाली माना गया है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति भयमुक्त, रोगमुक्त जीवन चाहता है तो उसे ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जाप करना चाहिए। इस मंत्र को इतना प्रभावशाली माना गया है कि इसके जाप से ही बड़ी बीमारी खत्म हो जाती है। साथ ही नियमित इस मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। इस मंत्र का जाप करने वाले व्यक्ति को यमराज को भी कोई कष्ट नहीं मिलता है। ऐसे में आइए जानते हैं महामृत्युंजय मंत्र को इतना प्रभावशाली क्यों माना गया है और इस महामंत्र की रचना कैसे हुई…

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई?
पौराणिक कथा के अनुसार मृकंडु नाम के एक ऋषि थे, उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या के लिए संत प्राप्ति की थी। अपने भक्त की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने ऋषि मृकण्डु को इच्छानुसार वर संत का आशीर्वाद दिया। इसके कुछ समय बाद ऋषि मृकण्डु को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पुत्र के जन्म के अंतिम वर्ष ऋषियों ने बताया कि इस संतान की आयु केवल 16 वर्ष ही होगी। यह दावा ऋषि मृकंदु विषाद से प्राप्त हुआ था। पति की चिंता से परेशान होकर ऋषि मृकंडु की पत्नी ने उनसे दुख का कारण पूछा तब उन्होंने सारा व्रतांत को बताया। इस पर उनकी पत्नी ने कहा कि अगर शिव जी की कृपा होगी तो ये उपाय भी वे टाल देंगे। इसके बाद ऋषि ने अपने पुत्र का नाम मार्कंडेय रखा। मार्कण्डेय भी शिव भक्त थे और सदैव शिव की भक्ति में रहते थे। समय समाप्त हो गया और मार्कण्डेय बड़े हो गए। जब समय निकट आया तो ऋषि मृकण्डु ने अल्पायु की बात अपने पुत्र मार्कण्डेय को बताई।

इसके बाद अपने माता-पिता के दुखों को दूर करने के लिए और शिव जी को दीर्घायु का आशीर्वाद देने के लिए मार्कंडेय ने शिव जी की आराधना शुरू कर दी। शिवजी की आराधना के लिए मार्कंडेय जी ने महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में इसका अनोखा जाप करने लगे।

इसके बाद जब मार्कण्डेय जी की आयु पूर्ण हो गई तब उनके प्राण लेने के लिए यमदूत आये। परन्तु उस समय मार्कण्डेय शिव जी की तपस्या में लीन थे। यह देखकर यमदूत वापस यमराज के पास गए और वापस ग्यान पूरी बात बताई। तब मार्कण्डेय का प्राण लेने के लिए यमराज स्वयं आये। जैसे ही उन्होंने मार्कण्डेय के प्राण लेने के लिए अपना पाश विद्वान सम्मिलित किया, तो बालक मार्कण्डेय ने लिंग से सिर उठाया और पाशा से लिंग पर जा गिरा।

यमराज की आज्ञा से शिव जी अत्यंत क्रोधित हो गए और अपने भक्त की रक्षा के लिए यमराज के सामने प्रकट हो गए। तब यम देव ने विधि के नियमों की याद दिलाई, लेकिन शिवजी ने मार्कंडेय को दीर्घायु का आशीर्वाद देने का विधान ही बदल दिया। ऐसे ही मार्कंडेय ने भगवान शिव की भक्ति में रहकर महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और भगवान शिव ने यमराज से उनके प्राणों की रक्षा की। यही कारण है कि महामृत्युंजय मंत्र को मृत्यु टालने वाला मंत्र कहा जाता है।

महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

 

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