गुरुवार के दिन करें ये उपाय, दूर होगी घर की कंगाली

आज गुरुवार का दिन विष्णु पूजा के लिए श्रेष्ठ माना जाता है, इस दिन भक्त भगवान श्री हरि की पूजन और व्रत आदि भी किए जाते हैं, ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से प्रभु की अपार कृपा प्राप्त होती है, लेकिन इसके साथ ही ऐसा भी होता है। यदि गुरुवार के दिन विष्णु चालीसा का संपूर्ण पाठ किया जाए तो जीवन से कंगाली दूर हो जाती है और धन लाभ के योग बन जाते हैं।

गुरुवार के दिन करें ये उपाय
श्री विष्णु चालीसा—
॥ दोहा॥
विष्णु सुनिए विनायक सेवक की चिताले।
कीरत कुछ वर्णन विवरण दीजय ज्ञान बतायें।
॥ चौपाई ॥
नमो विष्णु भगवान खरारि।
कष्ट नशावन अखिल बिहारी ॥
प्रबल जगत में शक्ति विवाह।
त्रिभुवन फल रही उजियारी॥
सुंदर रूप मनोहर सूरत।
सरल मोहन स्वभावी मूरत ॥
तन पर पीतांबर अति सोहत।
बसंती मंगल मन मोहत॥4॥
शंख चक्र कर गदा बिराजे।
देखत दैत्य असुर दल भाजे॥
सत्य धर्म मद लोभ न गजे।
काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
संतभक्त सज्जन मनोरंजन।
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ॥
सुख उपजाय अभिलाष सब भंजन।
दोषाय करत जन सज्जन
पाप कट भव सिंधु उद्गम।
अभिलाषा नकर भक्त उबरन॥
करत अनेक रूप प्रभु धारण।
केवल आप भक्ति के कारण ॥
धरणि धेनु बनहि तुमहिं पुकारा।
तब तुम रूप राम की धारा॥
भार उत्पात असुर मारा दल।
रावण आदिक को संहारा॥12॥
गुरुवार के दिन करें ये उपाय
आप वराह रूप बनाये।
हरण्याक्ष को मार प्लांट ॥
धर मत्स्य तन सिन्धु निर्मित ।
तेरह रत्नन को निकलाया ॥
अमिलख असुरन द्वन्द अक्रिय।
रूप मोहनी आप दिखाया ॥
देवन को अमृत पान।
असुरन को छवि से बहलाया॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मँझाया।
मन्द्राचल गिरि तुरत उठाय ॥
शंकर का तुम फंडलिस्टया।
भस्मासुर को रूप में दिखाया गया ॥
वेदन को जब असुर डूबाया।
प्रबंधन उन्हें ढूंढवाया ॥
मोहित बनी खलहि नाचया।
वही कर से सब्ज़ी ॥20॥
असुर जलंधर अति बलदाई।
शंकर से उन कीन्ह लड़ै॥
हार पार शिव सकल निर्मित।
कीन सती से छल खल जाई॥
सुमिरन कीन सागर शिवरानी।
बटलाई सब विपत कहानी ॥
तब तुम बने मुनिश्वर ज्ञानी।
वृन्दा की सब सुरति भोरनि॥
देखत तीन दनुज शैतानी।
वृन्दा आय नक्षत्र लपटानी ॥
हो स्पर्श धर्म हानि मान।
हना असुर उर शिव शैतानी ॥
व्हो ध्रुव प्रह्लाद उबारे।
हीराकुश आदिक खल मारे ॥
गणिका और अजामिल तारे।
बहुत भक्त भव सिन्धु उत्पन्ने॥
गुरुवार के दिन करें ये उपाय
हरहु सकल संताप हमारा।
कृपा करहु हरि सिरजन हारे॥
देखहुं मैं निज दरशफे।
दीन बंधु भक्तन हितकारे॥
चाहत आपका सेवक दर्शन।
करहु दया आपन मधुसूदन॥
जानु नहीं उचित जप पूजन।
होय यज्ञ स्तुति मोरनी॥32॥
शीघ्रया संतोष समाधान।
विदित नहीं व्रतबोध विस्मृति ॥
करहुं आपका किस विधि पूजन।
कुमति विलोक होत दुःख भीषण॥
करहुं प्रणाम कौन विधि सुमिरन।
कौन लड़की मैं करहु दान ॥
सुर मुनि करत सदा सेवकाई।
हर्षित रहत परम गति पाई॥36॥
दीन दुःखिन पर सदा सहाई।
निज जन जन लेव अपनाइ॥
पाप दोष संताप नशाओ।
भव-बन्धन से मुक्त कराओ॥
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ।
निज चरणन का दास बनाओ॥
निगम सदा ये विनय सुनावै।
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥
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