बढ़ते मामलों के लिए प्रदूषण जिम्मेदार, धूम्रपान के बिना भी फूल रहाे फेफड़ों

दिल्ली : बिना धूम्रपान करने वाले भी बड़ी उम्र के लोगों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डीजेज (सीओपीडी) के शिकार बन गए हैं, जबकि 45 साल से अधिक उम्र के लोगों में धूम्रपान करने वाले यह रोग दिखता है। बिना किसी के रोग बनने से विशेषज्ञ परेशान हैं।

असली नॉन स्मोकर में स्क्वैक पीडी रोग की पहचान के लिए एम्स के विशेषज्ञ ने मेटा एना बासा किया। 11 किशोर बुजुर्गों में कभी-कभी धूम्रपान नहीं किया जाता था, वह स्काइपपीडी के मरीज़ पाए गए, जबकि इस बीमारी का मुख्य कारण सक्रिय धूम्रपान करना है।

इस शोध का उद्देश्य खतरे के पत्थर और 64 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की आबादी के वैज्ञानिक महापुरुषों की पहचान करना था जो कि डंके पी.डी. के विकास का कारण बने। इस अध्ययन में यूनिवर्सिट के कुछ रेस्तरां को देखा गया। पाया गया कि धूम्रपान न करने वाले वृद्धावस्था में भी स्कोक पी.डी. रोग बन रहा है। एम्स के पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉक्टर। अनंत मोहन का कहना है कि नॉन स्मोकर में स्टॉक पी.डी. मिलना चिंता का विषय है। इस रोग के होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। इनकी पहचान करके उपचार करना और दिशा में काम करना बंद करना होगा।

बढ़ रहे हैं मामले
भारत में पिछले 25 वर्षों में तंबाकू पी.डी. के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसके पीछे की परिकल्पना, नई तकनीक का आना और लोगों के बीच जागरूकता है। लोग लक्षण दिखने के बाद जांच करवा रहे हैं। आंकड़ों को देखें तो पिछले 25 सालों में देश में ये दोगुने हो गए हैं। आरोपियों का कहना है कि महिलाओं में भी इसके मामले तेजी से सामने आ रहे हैं। यह अधिकतर 40 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में पाई जाती है। कई बार सहायता प्राप्त करने के लिए रोगी को ऑक्सीजन सपोर्ट, स्थान पर भर्ती करना होता है।

प्लास्टिक के लिए जिम्मेदार, अध्ययन किया जाएगा
दिल्ली- बड़े पैमाने पर प्लास्टिसिन का स्तर बिखराव रोग दे सकते हैं, विशेषज्ञ ऐसे खतरनाक व्यक्ति कर रहे हैं। हालाँकि अध्ययन के लिए इसकी पुष्टि आवश्यक है। एम्स के पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉक्टर। अनंत मोहन का कहना है कि प्रदूषण से वाष्पोत्सर्जन होता है, यह तय नहीं है, लेकिन माना भी नहीं जा सकता। इसकी पहचान के लिए बड़े स्तर पर अध्ययन किया जाएगा।

अध्ययन के बाद ही स्पष्ट हो गया कि प्रदूषण के कारण नाइट्रोजन पीडी रोग बनता है या नहीं। वहीं अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली में अगर प्रदूषण फैलाने वाली कंपनी का कब्जा हो रहा है तो यह चिंता का विषय है। यहां हर साल करीब तीन से चार माह तक प्रदूषण का स्तर काफी खराब रहता है। इस दौरान लगभग हर व्यक्ति सामेथी क्षेत्र में रहता है। यदि बहुसंख्यक प्रदूषण रोग हो रहा है तो हर व्यक्ति में पी.डी. रोग होने का खतरा बन जाएगा।

 

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