नशे के सुराख

By: divyahimachal

मौत ने फिर मापा शिक्षा का सदन, हाथों में किताब लिए नशा था मगन। अब तो प्रतिष्ठित संस्थानों के आंगन में चिता जलने लगी, वहां मेरा बेटा पढ़ रहा था नशा। जो छात्र एनआईटी हमीरपुर में आया था, जाहिर है उसका भविष्य ही उसे लाया था, लेकिन सुराग बताते हैं कि कितने सुराख हैं नशे को बुलाने के लिए। इस घटना के बाद सहमा कौन और किसने नैतिक जिम्मेदारी मानी। अलबत्ता संस्थान ने इस आपराधिक गलती के लिए कुछ सूलियां चुनीं और उन पर अगले हुक्म के पोस्टर टांग दिए। यह पहली घटना नहीं, कमोबेश हर संस्थान के बाहर नशे का कारोबार खड़ा है। यह बच्चा बेशक हमीरपुर में मरा था, लेकिन मौत तो लंबे रास्ते से ही आई। किस सीमा से आई, किसकी चौकसी से आई, हैं लंबे हाथ जिनके, वे सबूत दिखाई नहीं देते। संस्थान की परिपाटी में शिकार हुए छात्र के इर्द-गिर्द हम कुछ हद तक प्रशासनिक लापरवाही देख लेंगे, लेकिन एक अदृश्य माहौल में नशा तो फेरी लगा रहा है। वह हमीरपुर में मिला, पहले किसी अन्य शहर में घूमा और इस वक्त हर शिक्षण संस्थान के ऊपर अपनी काली छाया लिए मौजूद है। यह रैकेट गंभीर है। यहां पीढ़ी को परामर्श और कानून व्यवस्था को कारगर होने की जरूरत है। नशे के खिलाफ पुलिस व्यवस्था ही अंतिम उपाय नहीं, फिर भी नए दौर की कानून व्यवस्था में विभाग की रूपरेखा बदलनी होगी। हिमाचल में पुलिस जिस अपराध की शिनाख्त में चल रही है, उसके लक्षण, उसकी व्यस्तता, उसका ढर्रा, उसका चरित्र पूरी तरह बदल चुका है। वह रात के अंधेरे में नहीं, दिन के उजाले में सफेदपोश बना घूम रहा है। वह युवाओं के पीछे अगर अपने मंतव्य लिए घुलमिल रहा है, तो समाज के हर वर्ग से गलबहियां भी कर रहा है।
सामाजिक अस्तव्यस्तता, पैसों की भूख, खुलापन, प्रगति को परिमार्जित करने की लालसा और अपने संघर्षों की दास्तान में आए बिखराव पर आपराधिक प्रवृत्तियों की स्वच्छंदता घुसपैठ कर रही है। हिमाचल में कुछ शहर शिक्षा के हब बन कर ऐसी ही स्वछंद संस्कृति के प्रतीक भी बन रहे हैं। शिमला, धर्मशाला, हमीरपुर, मंडी व सोलन के अलावा हिमाचल में दर्जन भर ऐसे शहर विकसित हो गए हैं, जहां युवा महत्त्वाकांक्षा उनसे जबरन मेहनत करा रही है। प्रतिस्पर्धा के आलम में जीती युवा पीढ़ी अपने ही सपनों से आजिज आकर अगर नशे का रास्ता चुनती है, तो अंजाम भयावह है। कुछ सोहबत का नशा भी है, जो वास्तविक नशे को आदत बना रहा है। ऐसे में स्कूल-कालेज खोलते हुए हमने यह नहीं सोचा कि करियर की परवरिश के लिए युवाओं को कैसे परिपक्व किया जाए। युवाओं में पनपती आत्मघाती प्रवृत्तियों के लिए समाज भी कम दोषी नहीं। हमने अपने सामाजिक तानेबाने को इतना ढीला कर दिया कि एक छत को दूसरी छत से उठते धुएं की खबर तक नहीं। हिमाचल के शिक्षा हब बनकर शहरों ने जाहिर तौर पर आर्थिक तरक्की की और जहां मंतव्य सिर्फ घर की दीवारों के सौदे में, सिर्फ मासिक किराया बढ़ाना बनता गया।
युवाओं की स्वछंदता से आत्महत्याओं के समाचार भी बढ़े हैं, जहां बेटियों तक की आजमाइश में यह द्वंद्व बढ़ रहा है। हिमाचल में पड़ोसी राज्यों से चिट्टे की आपूर्ति ने इसे संगठित अपराध बना दिया है। बेशक हर साल सैंकड़ों गिरफ्तारियां हो रही हैं, लेकिन नेटवर्क की रीढ़ नहीं टूट रही। दरअसल चिट्टे के भंवर में कमाई का लोभ इस हद तक फैल चुका है कि हर अभिभावक को अपनी औलाद पर निगरानी रखनी होगी। यह काउंसलिंग का विषय भी है तथा शिक्षण संस्थानों के अनुशासन से भी जुड़ा है। जाहिर तौर पर ऐसी दुखद घटनाओं से राज्य की छवि को भी नुकसान हो रहा है। सबसे पहले मलाणा क्रीम के तौर पर चर्चित हुई मणिकर्ण घाटी के पाप धोते-धोते, हिमाचल ऐसे पर्यटकों का अड्डा बन गया जो नशे की टोह में घूमने लगे। अब शिक्षार्थी अगर राष्ट्र के चर्चित शिक्षण संस्थानों में नशे की अंधेरी गली में गुम हो रहे हैं, तो यह राज्य के शिक्षा हब के रूप में अवतरण को धक्का ही पहुंचाएगा।