नशे के खिलाफ जंग का आगाज हो

नशाखोरी के खिलाफ युद्ध का आगाज करके पहाड़ की शांत शबनम पर नशे का चिराग गुल करना होगा ताकि वीरभूमि की शिनाख्त वाले राज्य का रुतबा व शोहरत बरकरार रहे। देवभूमि की धरा नशाभूमि न बने। अपराध मुक्त समाज की कल्पना को हकीकत में बदलने के लिए नशाखोरी का नेटवर्क मरघट में तब्दील करना होगा…

‘किसी देश का गौरव उसकी बुराइयां दूर करने से बढ़ता है, खूबियों का गुणगान करने से नहीं’। यह कथन इटली की सहाफत का इंकलाबी चेहरा रहे ‘ज्युसेपे मेत्सिनी’ का है। बुराई छोटी हो या बड़ी, विनाश की पटकथा जरूर लिखती है। वर्तमान में नशा सभ्य समाज के लिए सबसे बड़ी बुराई बन चुका है।
नशे के अजाब ने अभिभावकों की आवाज छीनकर उन्हें खामोश करके तन्हाई के अंधेरे में जीने को मजबूर कर दिया है। कोई भी राष्ट्र आलमी सतह पर सैन्य कूवत व आर्थिक महाशक्ति तथा खेल शक्ति बनने की सलाहियत अपने युवावेग के बल पर ही रखता है। लेकिन मुल्क के मुस्तकबिल युवाशक्ति के लब यदि नशे के तलबगार बन जाएं या युवा पीढ़ी नशाखोरी की जद में आकर नाफरमान होकर नशे की अंधेरी राहों में गुमराह हो जाए तो मंजिलें ख्वाब बनकर रह जाती हैं तथा राष्ट्र का उज्ज्वल भविष्य जुल्मत के दौर में चला जाता है। देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश में नशे की दस्तक अचानक नहीं हुई है।
चिट्टे जैसे जानलेवा नशे ने कुछ वर्ष पूर्व सूबे की दहलीज को पार करके पहाड़ की जवानी को अपने चंगुल में फंसा लिया था। मौजूदा वक्त में नशे का जहरीला कारोबार शहरों से लेकर राज्य के गांव देहात तक फैल चुका है। नशीले पदार्थों की सुनामी से पहाड़ की नजाफत भरी फिजाएं भी दूषित हो रही हैं। किसी भी देश को अस्थिर करने में तथा उस मुल्क की युवा ताकत को बर्बादी के मुहाने पर पहुंचाने के लिए नशा बिना किसी बम बारूद के एक खामोश युद्ध के रूप में काम करता है।
भारतीय सेना में पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश की सैन्य शक्ति का शानदार इतिहास रहा है। किसी भी क्षेत्र में भारत का मुकाबला करने में असमर्थ पाकिस्तान के हुक्मरानों ने कुछ वर्ष पूर्व नशीले पदार्थों के जहरीले कारोबार को भारत के खिलाफ अपना अचूक हथियार बना लिया था। नतीजतन समंदर के रास्ते नशा बंदरगाहों पर पहुंचने लगा। सरहदों पर ड्रग्स की भारी खेप तस्करों के जरिए भारत के सरहदी राज्यों में पहुंचने लगी।
हिमाचल के पड़ोस में पांच दरियाओं वाले राज्य पंजाब में नशे के रूप में बह रहे छठे दरिया का असर देवभूमि में भी हो गया। ‘केंद्रीय जांच ब्यूरो’ ने एनसीबी व इंटरपोल के साथ मिलकर नशीले पदार्थों की तस्करी के खिलाफ ‘ऑपरेशन गरुड़’ भी चलाया है। नशा विरोधी अभियान ‘मिशन अगेंस्ट नारकोटिक्स सब्सडेंस एब्यूज’ (मंशा) के तहत नशा न करने का पैगाम भी दिया जा रहा है, मगर देश के कुछ राज्य नशे के बड़े आपूर्तिकर्ता बन चुके हैं। किसी भी देश के भविष्य की मजबूत बुनियाद डॉक्टर, इंजीनियर व वैज्ञानिक तथा खेलों में देश का परचम फहराने वाली प्रतिभाएं शिक्षण संस्थानों से ही निकलती हैं।
देश का बेहतर भविष्य तथा सभ्य समाज का वजूद युवा व शिक्षित वर्ग से तय होता है, मगर हालात इस कदर बेकाबू हो चुके हैं कि देश के उच्च शिक्षण संस्थान भी ड्रग माफिया के राडार पर आ चुके हैं। एक तरफ नशे की ओवरडोज से कई युवा मौत को गले लगा रहे हैं, वहीं नशे के हिज्र में भी मौत की आगोश में समा रहे हैं। जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाले युवा भी नशे की इल्लत का शिकार हो रहे हैं। विडंबना है कि वैज्ञानिक व आधुनिक तकनीक के इस दौर में मोबाइल फोन की लत से छात्र वर्ग मानसिक व शारीरिक तौर पर कमजोर हो रहा है। नशा शिक्षित वर्ग के युवाओं के जिगर की ख्वाहिश बन रहा है। नशे की गर्त में जा रहे युवाओं के अभिभावक दुश्वारियों के दौर से गुजर रहे हैं। दूसरा चिंताजनक पहलु यह है कि नशाखोरी के इल्जाम में सलाखों के पीछे भी ज्यादातर युवा वर्ग है। नशे के सरगना नशीले कारोबार की अवैध तिजारत से अपनी एक रहस्यमयी सल्तनत कायम कर चुके हैं।
नशेड़ी वर्ग के युवाओं को नशा माफिया अपनी धरोहर मान बैठे हैं। लेकिन नशारूपी महामारी के फैलने के लिए शासन, प्रशासन, कानून व सुरक्षा एजेंसियों को कोसने से पहले यह विचार करना जरूरी है कि आखिर शिक्षित वर्ग के युवा अपने जीवन के लक्ष्य से गुमगश्ता होकर नशे की जुस्तजू में क्यों भटक रहे हैं। शिक्षा का हब माने जाने वाले प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान नशे का हब बनकर मैकशी का मरकज बन रहे हैं। नशे से छात्रों की मशकूक हालत में मौत हो रही है। युवा वर्ग अपनी संस्कृति, संस्कारों व नैतिक मूल्यों से विमुख होकर नशे की रफाकत में क्यों डूब रहे हैं।
स्मरण रहे जब परंपरा व रिवायती संस्कार लुप्त होते हैं तो अदब व तहजीब तन्हाई के दर्द से मरते हैं। लिहाजा तरबियत व तालीम के साथ तहजीब भी जरूरी है। महज स्कूली शिक्षा से सलीका नहीं आता है। अत: नशे का समूल नाश करने का प्रण लेना होगा। गौर रहे भारत के हमसाया मुल्क चीन ने अपनी आजादी से पूर्व दो युद्ध नशे के खिलाफ लड़े थे। प्रथम युद्ध सन् 1839 से 1842 तक तथा दूसरी जंग सन् 1856 से 1860 तक चली थी। ‘अफीम युद्ध’ के नाम से विख्यात दोनों युद्धों में चीनी बादशाहत की शिकस्त हुई थी। मगर सन् 1949 के बाद चीन के हुक्मरानों ने अपने देश से नशीले पदार्थों को रुखसत करने के लिए पूरी इच्छाशक्ति से अभियान चलाया था।
वर्तमान में ड्रैगन दुनिया की सबसे बड़ी मइशत व सैन्य ताकत में शुमार कर रहा है। देश के हर क्षेत्र में उन्नति के शिखर को छूने के लिए युवा वर्ग सहित समस्त समाज का स्वस्थ होना जरूरी है। नशे से केवल नशेड़ी वर्ग या उनके परिवार ही मुतासिर नहीं हो रहे, बल्कि नशाखोरी से समस्त समाज दुष्प्रभावित हो रहा है। छात्र वर्ग व खिलाड़ी जैसी होनहार प्रतिभाओं के बेहतर भविष्य के लिए नशामुक्त वातावरण जरूरी है। जिस प्रकार समाज निर्माण के कार्यों में युवा वर्ग की भूमिका अहम होती है, उसी प्रकार नशामुक्त समाज के निर्माण में भी युवाओं को अपना अहम योगदान देना चाहिए। बहरहाल नशाखोरी के खिलाफ युद्ध का आगाज करके पहाड़ की शांत शबनम पर नशे का चिराग गुल करना होगा ताकि वीरभूमि की शिनाख्त वाले राज्य का रुतबा व शोहरत बरकरार रहे। देवभूमि की धरा नशाभूमि न बने। अपराध मुक्त समाज की कल्पना को हकीकत में बदलने के लिए व मासूमों का बचपन बचाने के लिए नशाखोरी का नेटवर्क मरघट में तब्दील करना होगा।
नशाखोरी के खिलाफ युद्ध का आगाज करके पहाड़ की शांत शबनम पर नशे का चिराग गुल करना होगा ताकि वीरभूमि की शिनाख्त वाले राज्य का रुतबा व शोहरत बरकरार रहे। देवभूमि की धरा नशाभूमि न बने। अपराध मुक्त समाज की कल्पना को हकीकत में बदलने के लिए नशाखोरी का नेटवर्क मरघट में तब्दील करना होगा…
‘किसी देश का गौरव उसकी बुराइयां दूर करने से बढ़ता है, खूबियों का गुणगान करने से नहीं’। यह कथन इटली की सहाफत का इंकलाबी चेहरा रहे ‘ज्युसेपे मेत्सिनी’ का है। बुराई छोटी हो या बड़ी, विनाश की पटकथा जरूर लिखती है। वर्तमान में नशा सभ्य समाज के लिए सबसे बड़ी बुराई बन चुका है।
नशे के अजाब ने अभिभावकों की आवाज छीनकर उन्हें खामोश करके तन्हाई के अंधेरे में जीने को मजबूर कर दिया है। कोई भी राष्ट्र आलमी सतह पर सैन्य कूवत व आर्थिक महाशक्ति तथा खेल शक्ति बनने की सलाहियत अपने युवावेग के बल पर ही रखता है। लेकिन मुल्क के मुस्तकबिल युवाशक्ति के लब यदि नशे के तलबगार बन जाएं या युवा पीढ़ी नशाखोरी की जद में आकर नाफरमान होकर नशे की अंधेरी राहों में गुमराह हो जाए तो मंजिलें ख्वाब बनकर रह जाती हैं तथा राष्ट्र का उज्ज्वल भविष्य जुल्मत के दौर में चला जाता है। देवभूमि के नाम से विख्यात हिमाचल प्रदेश में नशे की दस्तक अचानक नहीं हुई है।
चिट्टे जैसे जानलेवा नशे ने कुछ वर्ष पूर्व सूबे की दहलीज को पार करके पहाड़ की जवानी को अपने चंगुल में फंसा लिया था। मौजूदा वक्त में नशे का जहरीला कारोबार शहरों से लेकर राज्य के गांव देहात तक फैल चुका है। नशीले पदार्थों की सुनामी से पहाड़ की नजाफत भरी फिजाएं भी दूषित हो रही हैं। किसी भी देश को अस्थिर करने में तथा उस मुल्क की युवा ताकत को बर्बादी के मुहाने पर पहुंचाने के लिए नशा बिना किसी बम बारूद के एक खामोश युद्ध के रूप में काम करता है।
भारतीय सेना में पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश की सैन्य शक्ति का शानदार इतिहास रहा है। किसी भी क्षेत्र में भारत का मुकाबला करने में असमर्थ पाकिस्तान के हुक्मरानों ने कुछ वर्ष पूर्व नशीले पदार्थों के जहरीले कारोबार को भारत के खिलाफ अपना अचूक हथियार बना लिया था। नतीजतन समंदर के रास्ते नशा बंदरगाहों पर पहुंचने लगा। सरहदों पर ड्रग्स की भारी खेप तस्करों के जरिए भारत के सरहदी राज्यों में पहुंचने लगी।
हिमाचल के पड़ोस में पांच दरियाओं वाले राज्य पंजाब में नशे के रूप में बह रहे छठे दरिया का असर देवभूमि में भी हो गया। ‘केंद्रीय जांच ब्यूरो’ ने एनसीबी व इंटरपोल के साथ मिलकर नशीले पदार्थों की तस्करी के खिलाफ ‘ऑपरेशन गरुड़’ भी चलाया है। नशा विरोधी अभियान ‘मिशन अगेंस्ट नारकोटिक्स सब्सडेंस एब्यूज’ (मंशा) के तहत नशा न करने का पैगाम भी दिया जा रहा है, मगर देश के कुछ राज्य नशे के बड़े आपूर्तिकर्ता बन चुके हैं। किसी भी देश के भविष्य की मजबूत बुनियाद डॉक्टर, इंजीनियर व वैज्ञानिक तथा खेलों में देश का परचम फहराने वाली प्रतिभाएं शिक्षण संस्थानों से ही निकलती हैं।
देश का बेहतर भविष्य तथा सभ्य समाज का वजूद युवा व शिक्षित वर्ग से तय होता है, मगर हालात इस कदर बेकाबू हो चुके हैं कि देश के उच्च शिक्षण संस्थान भी ड्रग माफिया के राडार पर आ चुके हैं। एक तरफ नशे की ओवरडोज से कई युवा मौत को गले लगा रहे हैं, वहीं नशे के हिज्र में भी मौत की आगोश में समा रहे हैं।
जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाले युवा भी नशे की इल्लत का शिकार हो रहे हैं। विडंबना है कि वैज्ञानिक व आधुनिक तकनीक के इस दौर में मोबाइल फोन की लत से छात्र वर्ग मानसिक व शारीरिक तौर पर कमजोर हो रहा है। नशा शिक्षित वर्ग के युवाओं के जिगर की ख्वाहिश बन रहा है। नशे की गर्त में जा रहे युवाओं के अभिभावक दुश्वारियों के दौर से गुजर रहे हैं। दूसरा चिंताजनक पहलु यह है कि नशाखोरी के इल्जाम में सलाखों के पीछे भी ज्यादातर युवा वर्ग है। नशे के सरगना नशीले कारोबार की अवैध तिजारत से अपनी एक रहस्यमयी सल्तनत कायम कर चुके हैं। नशेड़ी वर्ग के युवाओं को नशा माफिया अपनी धरोहर मान बैठे हैं। लेकिन नशारूपी महामारी के फैलने के लिए शासन, प्रशासन, कानून व सुरक्षा एजेंसियों को कोसने से पहले यह विचार करना जरूरी है कि आखिर शिक्षित वर्ग के युवा अपने जीवन के लक्ष्य से गुमगश्ता होकर नशे की जुस्तजू में क्यों भटक रहे हैं।
शिक्षा का हब माने जाने वाले प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान नशे का हब बनकर मैकशी का मरकज बन रहे हैं। नशे से छात्रों की मशकूक हालत में मौत हो रही है। युवा वर्ग अपनी संस्कृति, संस्कारों व नैतिक मूल्यों से विमुख होकर नशे की रफाकत में क्यों डूब रहे हैं। स्मरण रहे जब परंपरा व रिवायती संस्कार लुप्त होते हैं तो अदब व तहजीब तन्हाई के दर्द से मरते हैं। लिहाजा तरबियत व तालीम के साथ तहजीब भी जरूरी है। महज स्कूली शिक्षा से सलीका नहीं आता है। अत: नशे का समूल नाश करने का प्रण लेना होगा। गौर रहे भारत के हमसाया मुल्क चीन ने अपनी आजादी से पूर्व दो युद्ध नशे के खिलाफ लड़े थे। प्रथम युद्ध सन् 1839 से 1842 तक तथा दूसरी जंग सन् 1856 से 1860 तक चली थी। ‘अफीम युद्ध’ के नाम से विख्यात दोनों युद्धों में चीनी बादशाहत की शिकस्त हुई थी। मगर सन् 1949 के बाद चीन के हुक्मरानों ने अपने देश से नशीले पदार्थों को रुखसत करने के लिए पूरी इच्छाशक्ति से अभियान चलाया था।
वर्तमान में ड्रैगन दुनिया की सबसे बड़ी मइशत व सैन्य ताकत में शुमार कर रहा है। देश के हर क्षेत्र में उन्नति के शिखर को छूने के लिए युवा वर्ग सहित समस्त समाज का स्वस्थ होना जरूरी है। नशे से केवल नशेड़ी वर्ग या उनके परिवार ही मुतासिर नहीं हो रहे, बल्कि नशाखोरी से समस्त समाज दुष्प्रभावित हो रहा है। छात्र वर्ग व खिलाड़ी जैसी होनहार प्रतिभाओं के बेहतर भविष्य के लिए नशामुक्त वातावरण जरूरी है। जिस प्रकार समाज निर्माण के कार्यों में युवा वर्ग की भूमिका अहम होती है, उसी प्रकार नशामुक्त समाज के निर्माण में भी युवाओं को अपना अहम योगदान देना चाहिए। बहरहाल नशाखोरी के खिलाफ युद्ध का आगाज करके पहाड़ की शांत शबनम पर नशे का चिराग गुल करना होगा ताकि वीरभूमि की शिनाख्त वाले राज्य का रुतबा व शोहरत बरकरार रहे। देवभूमि की धरा नशाभूमि न बने। अपराध मुक्त समाज की कल्पना को हकीकत में बदलने के लिए व मासूमों का बचपन बचाने के लिए नशाखोरी का नेटवर्क मरघट में तब्दील करना होगा।
प्रताप सिंह पटियाल
स्वतंत्र लेखक