उच्च शिक्षा का विस्तार

एशिया के अच्छे विश्वविद्यालयों में भारत के शिक्षण संस्थाओं की सबसे अधिक संख्या है. उच्च शिक्षण संस्थाओं के अध्ययन पर आधारित क्यूएस एशिया सूचकांक में इस वर्ष 856 विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया है, जिनमें 148 भारतीय विश्वविद्यालय हैं. पिछले सूचकांक में भारतीय संस्थानों की संख्या 111 थी. संख्या के मामले में इस वर्ष भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है. शीर्ष के 50 विश्वविद्यालयों में हमारे देश के दो प्रतिष्ठित संस्थान- आइआइटी बंबई और आइआइटी दिल्ली शामिल हैं. उल्लेखनीय है कि इस सूचकांक को अकादमिक प्रतिष्ठा, शिक्षक-छात्र अनुपात, पीएचडी डिग्री वाले स्टाफ की संख्या तथा प्रकाशित अकादमिक लेखों के आधार पर निर्धारित किया जाता है.

भारत से इस सूची में 37 विश्वविद्यालयों का पहली बार शामिल होना यह इंगित करता है कि देश में उच्च शिक्षा का विस्तार भी हो रहा है और उसकी गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी हो रही है. चीन ने केवल सात नये संस्थान ही सूची में स्थान बना सके हैं. उच्च शिक्षा के संदर्भ में भारत के समक्ष दो मुख्य उद्देश्य हैं- बड़ी संख्या में घरेलू छात्रों को उत्कृष्ट उच्च शिक्षा के लिए अवसर उपलब्ध कराना तथा विदेशी छात्रों में भारत के संस्थानों के लिए आकर्षण बढ़ाना. सूचकांक ने रेखांकित किया है कि दोनों मामलों में भारत प्रगति की ओर अग्रसर है. बीते वर्षों में उच्च शिक्षा की बेहतरी के लिए वित्तीय आवंटन बढ़ाने के साथ-साथ नियमित रूप से संस्थानों की समीक्षा भी की जा रही है. उच्च शिक्षा के संस्थानों में शिक्षकों के कई पदों का रिक्त रहना लंबे समय से एक बड़ी समस्या है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इस ओर विशेष ध्यान दिया है.
विभिन्न राज्यों में भी ऐसे प्रयास हो रहे हैं. सूचकांक ने यह भी बताया है कि विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए जानेवाले भारतीय छात्रों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है तथा पहली बार उनकी संख्या चीनी छात्रों से अधिक है. इससे यह इंगित होता है कि हमारे संस्थानों से प्रतिभाशाली छात्रों की बड़ी खेप निकल रही है. ये तथ्य इस बात के प्रमाण हैं कि भारत अपनी विकास आकांक्षाओं के प्रति समर्पित है. उत्साहजनक प्रगति के बावजूद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत को कई समस्याओं का समाधान करना है. केंद्रीय संस्थानों की गुणवत्ता बढ़ रही है, पर राज्य स्तर के संस्थानों में बेहतरी संतोषजनक नहीं है. उत्तर और मध्य भारत के कई विश्वविद्यालयों, विशेष रूप से उनके अधीनस्थ महाविद्यालयों, में संसाधनों का अभाव है. ऐसे विश्वविद्यालयों की संख्या भी बहुत है, जहां समय पर न पाठ्यक्रम पूरे होते हैं और न ही परीक्षाएं होती हैं. केंद्र और राज्य सरकारों को सुविचारित योजना बनाकर इन समस्याओं का समाधान करना चाहिए.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय