ऊपरी अदालत से कायम रही सजा तो ताउम्र जेल में

प्रतापगढ़ न्यूज़: उमेश पाल अपहरण मामले में अतीक अहमद को विशेष अदालत ने सश्रम की सजा सुनाई है, जिसके मुताबिक ऊपरी अदालतों से सजा कायम रहने पर उसे ताउम्र जेल में रहना होगा. सश्रम आजीवन कारावास के तहत उसे सजा के साथ काम भी करना पड़ेगा. हां, 14 साल तक सजा काटने के बाद सरकार उसके आचरण को देखते हुए रिहाई पर विचार कर सकती है.

एडवोकेट महेश शर्मा बताते हैं कि आजीवन कारावास या उम्रकैद की सज़ा गंभीर अपराधों के लिए दी जाती है. आईपीसी 1860 में अपराधों के दंड के विषय में विस्तार से बताया गया है. आईपीसी की धारा 53 में दंड के प्रकार का उल्लेख है. धारा 53 कुल पांच तरह के दंड का प्रावधान करती है. इनमें पहला मृत्यु दंड, दूसरा आजीवन कारावास, तीसरा कारावास (यह कारावास दो प्रकार का है, पहला सश्रम कारावास और दूसरा सादा कारावास) चौथा संपत्ति का समपहरण एवं पांचवां जुर्माना.

वह आगे कहते हैं कि आजीवन कारावास का अर्थ है कि सज़ा पाने वाला व्यक्ति अपने बचे हुए जीवनकाल तक जेल में रहेगा. जब कोई अदालत किसी अपराध के लिए किसी को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाती है तो विधि के समक्ष इस सज़ा की अवधि का अर्थ सज़ा पाने वाले व्यक्ति की अंतिम सांस तक होता है. अर्थात वह व्यक्ति अपने शेष जीवन के लिए जेल में रहेगा. आईपीसी की धारा 55 में सरकार को दंडादेश में कमी करने का अधिकार दिया गया है. धारा 55 कहती है कि जिस मामले में आजीवन का दंडादेश दिया गया हो, अपराधी की सम्मति के बिना भी सरकार उस दंड को ऐसी अवधि के लिए, जो 14 वर्ष से अधिक न हो, कम कर सकेगी.


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