छूटे शब्द बान के वापसी

रोशन साहू (मोखला )

ये दुनिया जतका बिचित्तर हे ओखर ले जादा तो इंहा के मानुष मन के रीत नीत जीये के आधुनिक शैली गज्जब लगथे। बन्दन चुपर-चुपर के मन नइ थिराइस त मनखे अपन मंगल खातिर मंगल के अमंगल बर उहों पैठ बनावत हे ।अरे भई मंगल तोर का बिगाड़ करे हे ?मांगलिक दोस परिहार बर तो कतको थोक चिल्हर एजेंसी मन इंस्टालमेंट फेसिलिटी बम्पर धमाका ऑफर देतेच हावे। जिंहा मुंदरी ताबीज ले मंगल के जमानत जप्त होय ला परत हावय। का करबे मनखे मन इंहा रायता फैलाय के कॉम्पिटिशन मा नम्बर वन होगे हे अउ अब उँहों मैडल पा जाही। अपनेच नांव ला बड़े बड़े पुरस्कार बर खुदे अनुशंसा करे ले कभू डेमोक्रेसी कब खतरा मा परे हे? अरे भई इंहा के कतको अनसॉल्व मैटर ल पहिली सुलझा रे ददा ? भइँसा के सींग भइँसा ला भारी।

येदे मातर मड़ई के दिन के बात आय तिलक चंदन बन्दन लगाय चकाचक धोती अउ रामनामी कुर्ता पहिरे शनिचर महराज हा मोर तीर मा आके कलेचुप बइठ गे। आज न तो सनातन पंथ मा होवत कुठाराघात मा डिस्कस अउ न तो रंभा ,मंथरा ,मेनका, सूर्पनखा के पर्सनल एटीट्यूड जइसे मैटर मा प्रकाश डारे के बजाय धीरे ले चूना माखुर चुनेटी मांगिस। माखुर रमंज के ठोंक ठठा के ओमा अपन कुर्ता भीतरी सलोखा के चोर पाकिट ले रजनीगंधा निकाल फांक खाईस। मंय कहेंव कस जी आपो मन कभू- कभू जमा देथव का ! दूरिहा ले देसी कस जनावत हे। बस अतका बात सुनत ओखर चोला अगियागे। कहिस सच बात आय कि आज हमर विज्ञान हा कुछू आघू नइ बाढ़े हावय। मैहर तो कभू -कभू वाला आंव फेर “महुआ पानी ” के रसिक भाई मन के समस्या ला जान समझ के ओकर समाधान बर कछोरा भिरे के जरूरत हे । “कंट्री भक्त ” मन ओनहा कोनहा मा कतको लुका छिपाके पीथे फेर ” सोमरस” के बदबू ले उपार्जित सबो जस हा जगजाहिर हो जाथे !चाहे ओमा कतको चखना कॉम्प्लीमेंट्री एडिशनल सब्सट्यूट मिला मिंझार ले । पान, गुटखा, जर्दा, इलायची, लौंग, पदीना पत्ता ला घलो छेरी कस चघल डारथे फेर “सुरा” के महक हा कलजुगिहा मल्टीटेलेंटेड नेता मन के घोटाला काण्ड ले जादा तेजी ले पर्सनल , सोशल लाइफ के सत्यानाश कर डारथे। मनखे के चाल पाछू दिखथे फेर चलन आघू मा डग-डग ले चीन्हा जाथे । उहि चलन कोन्हों ला झन दीख जाय तेखर खातिर “पव्वा प्रेमी “भागमानी मनखे धरती मा अपन पाँव ला अंगद कस बने चमचम ले मढावत रेंगथे। फेर मुँहू के भकर-भकर महकई ? त कतेक बड़ परई ला तोप ढांप डारही ! मंगल जवईया -अवइया वैज्ञानिक मन ला ये मैटर के सॉल्यूशन खोजना चाही? ये समस्या के समाधान बर फंड के चिंता नइहे । सरकारी, गैरसरकारी, स्वयंसेवी संगठन जीव परान ले मदद दिही। अउ कमतीच्च पर जाही त ” बुद्धि विकास केंद्र “, “अधिक खर्च केंद्र” के बाजू मा एक अलग काउंटर बनाय ले सरकार ला सबले जादा टैक्स देवइया उदार हिरदे वाले महामानव मन कभू नइ पछुवाय राहय।आज इंखरे देवई ले देस राज के विकास काम अउ तुँहर जइसन मन ला वेतन,पेंशन मिलथे जी। जेन विज्ञानिक ये समस्या के समाधान कर दिही ता ओला अतेक असीस अउ शुभकामना शुभेच्छा मिलही कि ओखर परताप अउ प्रभाव ले जिनगी भर ओखर गोड़ मा कांटा का नानकुन कंकड़ गोंटी नइ अभरही। कभू सर्दी खांसी बुखार तको नइ बियापे । बाबा रामदेव के योग ला तिरियाय ला लागही ।एलोपैथी लागे न आयुर्वेदिक ,यूनानी लागे न होमियोपैथी।” जइसन -जइसन लेहू -देहू ,तइसन देबो असीस।रंगमहल मा बइठों भइया तुम जीयो लाख बरिस ।।” के भाव हा अली-गली मा नाच नचइया “सुरा रसिक” मन के कण्ठ ले पूरा आरोह- अवरोह संग सम्यक गान ले नोबल पुरस्कार हा मुड़ ढाँके नवा बहुरिया कस लजावत शरमावत नइ रहि त कहिबे? ये समाधान हा सामाजिक बदलाव के घटक बन सकत हे। संगे -संग येहा विश्व शांति अउ सद्भाव ला घलो नवा आयाम दिही।

सबो बात ला सुनके तो मोर आंखी एवरग्रीन फिल्मी मदर निरूपा रॉय के आंखी ले जादा बोहावत रहिस।जनइया मन कम हे फेर मोर अंतस के पीरा मीनाकुमारी के पीरा ले कुछू जादा लागथे । “मेरे करन अर्जुन आएंगे” कहईया राखी के दुख तकलीफ भरे आंखी ले जादा मोर आंखी उलेंडा पूरा आय कस छलछलागे। सोचे लागेंव करन अर्जुन फेर आगे ते फेर सत्ता पावर के लड़ई भिड़ई कभू तो बुद्ध ला बलाय रहितिस।मोर अईसन इमोशनल अटेचमेंट देखत महराज कहिस देख भई मोर बात ले आप मन ला दुख लागिस होही ते मंय खेद व्यक्त करत अपन शब्द वापस लेवत हंव । उठके पाछू पोर्शन झर्रावत ‘अंगदिक’ कदम धरत कोन्हों अउ दूसर के ब्रेन वाश करे या क्रांति के बीज रोपन करे के उदिम मा चखना सेंटर कोती रेंग दीस । फेर वोखर बात”शब्द ला वापस लेवत हंव ” बस ये बात ल सुनके मोर तन बदन मा आगी लागे लागिस। अरे तोर शब्द ला वापस ले डारबे फेर मोर आंखी ले बोहाय पूरा पानी ला फेर मैहर कइसे भितरा डारहूँ?

बड़ ज्वलंत समस्या आय “अपन शब्द ला वापस लेवई ” हा। द्वापर मा बान नइ लहुट सकिस त उत्तरा के गरभ कोती मोड़ दे गीस ।त्रेतायुग में शब्द भेदी बान पढ़े सुने ला मिलथे। राजा दशरथ अउ श्रवणकुमार के प्रसंग के सुरता आगे। रानी कैकयी हा दासी मंथरा के कान फुंकई ला अईसे पतियाईस कि राजतिलक के बेरा राम बर चौदह बच्छर बनवास मांग डारिस। सबो डाहर मंथरा अउ कैकयी के निंदा चारी थुआ थुआ होवत राजा कतको कलौली कर करके हार गे अपन शब्द ला वापस ले मोर प्रान प्रिये ! फेर सबो अकारथ। द्रौपदी हा ” अंधरा के बेटा अंधरा “कहि परिस इहि हा महाभारत के युद्ध के सबले बड़का कारन बनगे। श्रीकृष्ण जी जउन खुदे सोलह कला ले युक्त अउ राजनीति कूटनीति के रणनीतिकार के का चेत हरागे रिहिस होही ?जउन हा द्रौपदी ला काबर नइ किहिस होही कि बहिनी तोर शब्द ला लहुटा डार ओ? नइ ते इजरायल फिलिस्तीन ले घला भयंकर लड़ई भोगे ला पर जाही। अपन शब्द ला वापस लेवई के चलन कते समे कते युग ले शुरू होइस होही? गहन चिंतन के विषय आय। शब्द ला ब्रम्ह कहे गे हावय जेन हा सृष्टि मा किंजरत रहिथे अउ समे परे मा कतको गुना बाढके अपने करा लहुट आथे।इहि बात असमंजस मा डारथे कि शब्द वापस होय के बाद ओखर स्टोरेज कहाँ होवत होही? काबर कोनो शांत भाव ले कहे बोले बात ला वापस लेय के जरूरत नइहे। अपन मन के भड़ास ला पानी पी-पी के ,गारी बखाना करबे त टेम्परेचर बढ़बेच करही। फेर वोखर वापसी मा कोल्ड स्टोरेज के बेवस्था तो जरूर होही। शब्द वापस लेवई के क्षेत्र मा नेता मन ही पारंगत हावँय उहि मन बता सकत हे कि येखर प्रोसेसिंग फीचर फंक्शन कइसे काम करथे अउ अपडेशन कब-कब होथे ? ये कला ला जउन दिन जनता सीख लिही लोकतंत्र हा बने मेड़री माड़े कस चमकट्ठा हो जाही।


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