बाढ़ के कारण सैंज में घर-दुकानें सब साफ

सैंज: सैंज घाटी के दोनों ओर बसे दर्जनों गांवों के लोगों ने कभी भी नहीं सोचा होगा कि पिन पार्वती नदी की लहरें 50 मीटर ऊपर उठेगी और सब कुछ अपने आगोश में ले लेगी। रूपी और सराज क्षेत्रों को दो भागों में विभक्त करती सैंज नदी का ऐसा रौद्र रूप ना कभी देखा ना सुना है। दस जुलाई को आई बाढ़ कई पीढिय़ों तक भूलाया नहीं जा सकता है। स्थानीय लोगों ने अपनी जीवन भर की पूंजी से बनाए घरौंदे उफनती नदी में तिनके की भांति बिखरते देखे। शाकटी मरोड़ से लेकर लारजी तक लोगों पर जो विपदा आई उसको शब्दों में बयां करना मुश्किल है। सैंज से न्यूली तक जो देखने को मिला वह किसी बुरे सपने से कम नहीं है। जहां कभी भ्रमण के दौरान पर्यटक व आम जनता चाय पानी पीते थे। उनका कोई नामोनिशान नहीं है। यहां उल्लेखनीय यह भी है कि पंजाब और कांगड़ा के घुमंतू व्यापारियों ने सैंज कस्बे को बसाया है जो कि आज एक शहर के रूप में विकसित हो रहा है। दिव्य हिमाचल ने शुक्रवार को प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया। तो देखा कि कुदरत ने जलए जंगल और जमीन पर खूब कहर बरपाया है। सैंज घाटी के एक हिस्से का नामोनिशान मिटा दिया है। हालांकि कुछ लोग हाइड्रो प्रोजेक्ट को दोषी करार दे रहे हैं। लेकिन अधिकतर लोगों का कहना है कि बड़े पैमाने पर अवैज्ञानिक खननए प्रकृति से छेड़छाड़, अंधाधुंध कटान, कुदरत से छेड़छाड़ मुसीबत बनकर आ रहा है। घाटी के लोग अभी भी बादलों की गर्जना से भयभीत है। (एचडीएम)

प्रत्यक्षदर्शी बोले, अपनी आंखों से देखा है मंजर

प्रभावित परिवारों की आंखों में तैरता दर्द अंदर तक झकझोर कर रख रहा है। बाजार के कारोबारी योगेंद्र शर्मा, अशोक कुमार, सपन शर्मा, गोविंद ठाकुर, अमर सिंह, अशोक कुमार आदि कहते हैं कि उन्होंने प्रत्यक्ष रूप में सैंज बाजार में विनाश का मंजर देखा है और प्रकृति ने पांच मिनट में ही सैंज बाजार के विनाश की लीला रची। बहरहाल प्रकृति की मार से वेहाल सौ साल पुराना सैंज कस्बा संवरने से पहले ही उजड़ गया। अब उन्हें दोबारा बसने में कई साल लग जाएंगे। प्रभावित परिवारों के लिए प्रशासन ने कुछ राहत तो दी। लेकिन ऐसा ठोस प्रयास अभी तक नहीं हो पाया।

लारजी से सैंज बाजार तक आधा दर्जन पुल बहे

घाटी की दुर्गम पंचायतों शैशर, देहुरीधार, गाड़ापारली आदि पंचायतों के लोग विभाग के साथ बिजली के तार खींचने में विद्युत कर्मियों की मदद कर रहे हैं, ताकि उन्हें अंधेरे से निजात मिले। लारजी से सैंज बाजार तक देखा कि कुुदरत के कहर से आधा दर्जन पुल बह चुके हैं। जबकि ग्रामीण घोड़े पर अपने उत्पाद गंतव्य स्थान तक पहुंचा रहे हैं। आपदा की मार से बेहाल प्रभावित अभी भी लोगों के घरों में शरण लिए हुए हैं। आशियाना और रोजगार गंवा चुके इन लोगों के सामने अब भविष्य की चिंता सता रही है। बच्चों की पढ़ाई से देख कर शादी विवाह को लेकर लोग परेशान हैं।


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