गौ उत्पाद से खड़ी हो सकती है इंडस्ट्री, फिर भी दर्दनाक मौत मिल रही गायों को

कोटा: शहर की सड़कों के साथ ही हाइवे पर भी बड़ी संख्या में घूमती लावारिस गायों के कारण आए दिन हादसों में न केवल लोग घायल व मौत के शिकार हो रहे हैं। वरन् हादसों में गायों की भी दर्दनाक मौत हो रही है। गाय को कामधेनू कहा गया है। उससे इतने उत्पाद मिल सकते हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। देश में कई हिस्सों में लोग इन उत्पादों को तैयार भी कर रहे हैं। लेकिन कोटा शहर में स्थिति यह है कि आवारा गायों का कोई धणी धोरी नहीं है। इन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। जबकि नगर निगम यदि प्रयास करे तो ना केवल गायों को दर्दनाक मौत से बचाया जा सकता है अपितु इनसे मिलने वाले उत्पादों को तैयार कर गाय कोे उपयोगी साबित किया जा सकता है। गौवंश के उत्पादों से नये स्टार्ट अप तैयार करने पर काम किया जा सकता है। इससे निगम की आय तो बढ़ाई ही जा सकती है साथ ही रोजगार के साधन भी विकसित किए जा सकते हैं। शहर में हजारों की संख्या में गाय लावारिस हालत में सड़कों पर घूमती देखी जा सकती हैं। हर गली मोहल्ले व चौराहे और मुख्य मार्ग पर तो गायों का डेरा लगा ही रहता है। अब तो हाइवों पर भी बड़ी संख्या में गायों को झुंड के रूप में बैठे देखा जा सकता है। हाइवों पर तेज गति से निकलने वाले वाहनों से आए दिन होने वाले हादसों में गायों की मौत हो रही है। वहीं शहर में भी सड़क के बीच घूमते गौवंश के कारण होने वाले हादसों से लोगों की अकाल मौत हो रही है। हालांकि शहर को पशु मुक्त बनाने के लिए नगर निगम व नगर विकास न्यास द्वारा इन्हें पकड़कर गौशाला में बंद करने का अभियान चलाया हुआ है। वहीं शहर से दूर बंधा धर्मपुरा में देव नारायण आवासीय योजना बनाकर पशु पालकों व पशुओं को वहां शिफ्ट किया जा रहा है। लेकिन उसके साथ ही लावारिस गायों की रक्षा के लिए उनके उत्पादों का उपयोग भी किया जा सकता है। गाय के गोबर से खाद बनाने, बायो गैस बनाने और बिजली तक का उत्पादन किया जा सकता है। वहीं गौ मूत्र से अर्क और दवाइयां बनाई जा सकती हैं। जिससे नगर निगम की आय होने के साथ ही इस काम को करने वाले लोगों को रोजगार भी मिल जाएगा।

गोकाष्ठ प्रोजेक्ट भी धीमा

नगर निगम कोटा दक्षिण द्वारा गौशाला के गोबर का उपयोग करने और लकड़ी को कटने से बचाने के लिए गोकाष्ठ बनाने के लिए स्वयंसेवी संस्था के साथ मिलकर काम शुरू किया। संस्था ने दो मशीनें व कर्मचारी लगाकर काम शुरू भी कर दिया। लेकिन निगम के स्तर पर कभी बिजली की समस्या होने तो कभी गोकाष्ठ को सुखाने की पर्याप्त जगक तक मुहैया नहीं करवाई जा रही है। जिससे वह प्रोजेक्ट धीमी गति से चल रहा है।

छोटे स्तर पर प्रयास लेकिन सफलता नहीं

नगर निगम के किशोरपुरा स्थित कायन हाउस और बंधा धर्मपुरा स्थित गौशाला में करीब 3 हजार से अधिक गौवंश हैं। इतनी अधिक संख्या में गौवंश होने से वहां गोबर और गोमूत्र की मात्रा भी काफी अधिक हो रही है। लेकिन उसका सही ढंग से उपयोग नहीं किया जा रहा है। नगर निगम द्वारा गोबर से वर्मी कम्पोस्ड खाद बनाने का काम किया जा रहा है। तत्कालीन आयुक्त कीर्ति राठौड़ ने इसके लिए प्रयास किया । साथ ही केंचुए से खाद बनाने और गोकाष्ठ बनाने, गोबर से दीपक बनाने तक का प्रयास किया लेकिन वह छोटे स्तर पर हो रहा है और उसम्ेंं निगम को सफलता भी नहीं मिल रही है। खाद तैयार हो रही है तो वह बिक नहीं रही है।

निजी गौशााओं में हो रहा उत्पादन

शहर में निगम की गौशाला के अलावा सिंधी समाज द्वारा कृष्ण मुरारी गौशाला, गोदावरी धाम वालों की गौशाला और गायत्री शक्ति पीठ वालों की गौशालाएं समेत कई अन्य गौशालाएं संचालित हो रही हैं। उन गौशालाओं में निगम की अपेक्षा गौवंश कम है। लेकिन उसके बावजूद भी वहां गाय के गोबर से खाद और गोमूत्र का उपयोग दवाइयां बनाने में किया जा रहा है। जिससे उनकी बिक्री से होने वाली आय से गायों की देखभाल भी सही ढंग से हो पा रही है। वहीं गाय के दूध को बेचकर भी आय की जा रही है।

इनका कहना

प्राइवेट गौशाला वाले जब गायों के उत्पादों का उपयोग कर सकते हैं तो नगर निगम तो इसे बड़े स्तर पर कर सकता है। निगम के पास प्राइवेट गौशालाओं से अधिक गौवंश है। वहां गोबर व गोमूत्र भी अधिक मात्रा में होता है। निगम इनके उत्पादों की फैक्ट्री लगाकर न केवल आय बढ़ा सकता है वरन् कई बेरोजगारों को रोजगार भी दे सकता है। इससे आय व रोजगार तो मिलेगा ही साथ ही गायों की रक्षा भी हो जाएगी। लेकिन इसके लिए निगम अधिकारियों में इच्छा शक्ति की कमी है।

-जी.डी. पटेल, मुख्य ट्रस्टी गायत्री शक्ति पीठ

गौशाला में गाय के गोबर से वर्मी कम्पोस्ड खाद और गोमूत्र से अर्क बनाकर बेच रहे हैं। जिससे आय तो हो रही है गायों की देखभाल का खर्चा भी निकल रहा है। नगर निगम के पास गायों की संख्या अधिक होने से वह इस काम को बड़े स्तर पर कर सकता है। निगम के पास सभी गाय बिना दूध वाली भी नहीं हैं। ऐसे में दूध बेचकर और दूध से कई उत्पाद बनाकर भी बेचे जा सकते हैं। जिससे सबसे बड़ी बात गायों की रक्षा हो सकेगी।

-सतीश गोपलानी, अध्यक्ष कृष्ण मुरारी गौशाला

नगर निगम चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है। गौवंश के रूप में उनके पास बहुत बड़ी धरोहर है। नगर निगम में इच्छा शक्ति की कमी होने से अधिकारी चाहकर भी कुछ नहीं करना चाहते। लेकिन यदि कोई पीपीपी मोड पर वर्मी कम्पास्ड खाद बनाने, गोमूत्र से अर्क बनाने और गोबर से बिजली बनाने का उद्योग लगाना चाहे तो उसे कुछ समय के लिए सब्सिडी व राहत दी जा सकती है। जब आय होने लगे तो निगम उससे आर्थिक सहयोग ले सकता है। इससे निगम को आय होने से अधिक गौवंश की रक्षा हो सकेगी। नगर निगम द्वारा पूर्व में अच्छे गौवंश की नीलामी भी की जाती थी। वह भी नहीं की जा रही है। जिससे अच्छी गाय तो प्राइवेट गौशालाओं में हैं जबकि निगम के पास बीमार और बिना दूध वाली गाय अधिक हैं।

-पवन अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष नगर निगम गौशाला समिति

नगर निगम गोबर से वर्मी कम्पोस्ड खाद बना रहा है। गोकाष्ठ भी बनाई जा रही है। लेकिन उसकी मात्रा बहुत कम है। यदि कोई निगम से गोबर और गोमूृत्र खरीदकर उससे कोई स्टार्टअप शुरू करना चाहे तो निगम उसका सहयोग कर सकता है। इस प्रस्ताव को निगम बोर्ड में पारित करवाकर सहयोग किए जाने में कोई समस्या नहीं है। निगम गायों की रक्षा के लिए गौशाला में उनकी देखभाल व उपचार की पूरी व्यवस्था कर रहा है।

-अम्बालाल मीणा, कार्यवाहक आयुक्त नगर निगम कोटा दक्षिण

नगर निगम में गोबर से खाद बनाई जा रही है लेकिन वह कम मात्रा में है। उसके स्थान पर यदि कोई निगम से गोबर व गोमूत्र लेकर कोई उद्योग शुरू करना चाहे तो नगर निगम उसका हर संभव सहयोग कर सकता है। निगम ऐसे उद्योग को प्रमोट करने के लिए तैयार है। यदि कोई युवा नया स्टार्टअप शुरू करना चाहें तो वह भी निगम में सम्पर्क कर सकता है। यह अच्छा प्रयास होगा। इससे निगम के गोबर व गोमूत्र का उपयोग तो होगा ही साथ ही लावारिस हालत में सड़कों पर घूमने वाली गायों को बचाने में भी सहयोग मिलेगा।

-राजीव अग्रवाल, महापौर नगर निगम कोटा दक्षिण 


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