नवरात्रि में करें शहर की ज्वाला माता के दर्शन: महाभारत काल का पुराना प्राचीन मंदिर

राजस्थान: जोधपुर की धरती पर आज भी कई ऐसे स्थान हैं जो अपने आप में इतिहास को समेटे हुए हैं। जहां के हर कोने में इतिहास की गूंज सुनाई देती हैं। हम बात कर रहे हैं एक ऐसे ही मंदिर की जो जोधपुर की स्थापना से भी पहले का है। मान्यता है की इस मंदिर में माता की प्रतिमा पहाड़ चीरकर प्रकट हुई थी। भक्त की आवाज सुनकर प्रतिमा का आधा पांव पहाड़ में ही रह गया। इस मंदिर में आज भी भीम के नाखूनों के निशान देखे जा सकते हैं। नवरात्रा के मौके पर हम आपको दर्शन करवाते हैं ऐसे ही एक प्राचीन और पौराणिक मान्यताओं से जुड़े ज्वाला माता मंदिर से।

शहर के घुमावदार रास्तों से होकर गुजरने वाली इस पचेटीया हिल पहाड़ी पर स्थित माता ज्वाला जी मंदिर को पांडव काल का माना जाता है। यह मंदिर 700 फिट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इसके ठीक पीछे मेहरानगढ़ का चामुंडा माता मंदिर है।
ज्वालामुखी मंदिर की कहानी के बारे में पुजारी परिवार के चिन्मय शर्मा ने बताया कि महाभारत काल के समय इस पहाड़ी क्षेत्र में ज्वाला प्रसाद नाम के एक भक्त रहते थे। वो माता की उपासना किया करते थे। उन्होंने माता से दर्शन देने के प्रार्थना की। मां ने अपने भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए उनका दर्शन देने से पूर्व एक शर्त रखी। कहा मैं तुम्हें दर्शन दूंगी लेकिन तुम्हें किसी भी आवाज से डरना नहीं है। भक्त ने मां की शर्त स्वीकार कर ली। इसके बाद मां दर्शन देने को तैयार हो गई।
माता अपने स्वरूप में पहाड़ फाड़ कर प्रकट हो रही थी उस समय तेज आवाज हुई। ज्वाला प्रसाद बैठकर तपस्या कर रहे थे। माता की सवारी सिंह भी प्रकट हुआ। इससे ज्वाला प्रसाद डर गए और मां से मदद की पुकार लगाई