विश्व वृद्धजन दिवस: बेटे ने छोड़ा तो पोता-पोती बने दादा-दादी का सहारा


झुर्रियों वाले चेहरे पर मुस्कान खिलखिला उठी है। बूढ़ी आंखों में फिर जीवन चमकने लगा है। हो भी क्यों ना, जिन अपनों की वजह से वो अकेलापन झेल रहे थे, उन्हें फिर से अपनों का सहारा मिला है। उम्र के एक पड़ाव पर जिन्हें उनकी ही औलादों ने अकेला छोड़ दिया था, उन बुजुर्गों को अपनों ने ही फिर से अपनाया। उनके पोते और पोतियों ने उनके कांपते हाथों को फिर से थामा है। कभी गम तो कभी खुशी से भरे उन वृद्धों की जिंदगानी से हम आपको रूबरू करा रहे हैं जिन्हें पहले तो विपरीत परिस्थितियों में विश्वनाथ कॉरिडोर के मुमुक्षु भवन में रहना पड़ा। उन्हें यहां उनके अपने बेटे छोड़ गए थे लेकिन पोते पोतियों ने उन्हें फिर से अपनाया और खुशियों का आशियाना दिया...।
�बेटे ने छोड़ा तो पोती बनी दादी का सहारा
दिल्ली निवासी एक पुत्र अपनी वृद्ध मां को करीब तीन महीने पहले विश्वनाथ कॉरिडोर में बने मुमुक्षु भवन में छोड़ गया। बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। लेकिन, जिस मां ने जन्म उसे दिया, वो उन्हें ही संभाल नहीं पाया। उनके सिर पर छत नहीं दे सका। ये बात जब यूएसए में उसकी पोती को पता चली तो वो फौरन देश लौटी। काशी आकर अपने दादी को साथ लेकर सीधे यूएसए चली गई। पोती की शादी हो चुकी है। वो अपने पति के साथ यूएसए में रहती है। पोती जब अपने दादी को लेकर मुमुक्षु भवन पहुंची और उन्हें गले लगाया तो वहां रह रहे सभी वृद्ध भावुक हो उठे थे।
�छोड़ गया बेटा, फिर साथ ले गया पोता
मध्य प्रदेश के एक साहित्यकार अपने वृद्ध मां-पिता को चार महीने पहले मुमुक्षु भवन छोड़ गए थे। पोते को इस बात की जानकारी नहीं थी क्योंकि वह दूसरे शहर में नौकरी करता था। त्योहार पर जब घर लौटा तो दादा-दादी को वहां न देखकर मां-पिता से सवाल किया। पता चला कि मां-पिता उसके दादा-दादी को मोक्ष की कामना से काशी छोड़ आए हैं। पोता अपने दादा-दादी को लेने काशी पहुंच गया। पोते को देख दादा-दादी की आंखें नम हो गईं। पोता वहां से सीधे उन्हें अपने साथ अपने घर ले गया।
बेटी पुलिस और बेटे की भी अच्छी नौकरी तब भी छोड़ गए मां को
प्रॉपर्टी की लड़ाई में बेटा-बेटी अपनी मां को मुमुक्षु भवन छोड़ गए। बेटी पुलिस में है और बेटा भी अच्छी कंपनी में नौकरी कर रहा है। परिवार से दूर रहने का दर्द वृद्ध मां के चेहरे पर साफ झलकता है।
मां की सेवा के लिए मुमुक्षु भवन में साथ रह रहा बेटा
सिक्का का एक दूसरा पहलू भी है। मोक्ष की कामना लिए मां को काशी लेकर आया बेटा उनके साथ ही मुमुक्षु भवन में रह रहा है। घर की हर सुख सुविधा छोड़ मां के साथ बेटे ने भी मुमुक्षु भवन को अपना घर बना लिया है। छह साल पहले सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त बेटा अपनी 92 साल की मां के साथ काशी प्रवास पर है। उनकी मां की अच्छा थी कि वह अपनी अंतिम समय काशी में गुजारें।

झुर्रियों वाले चेहरे पर मुस्कान खिलखिला उठी है। बूढ़ी आंखों में फिर जीवन चमकने लगा है। हो भी क्यों ना, जिन अपनों की वजह से वो अकेलापन झेल रहे थे, उन्हें फिर से अपनों का सहारा मिला है। उम्र के एक पड़ाव पर जिन्हें उनकी ही औलादों ने अकेला छोड़ दिया था, उन बुजुर्गों को अपनों ने ही फिर से अपनाया। उनके पोते और पोतियों ने उनके कांपते हाथों को फिर से थामा है। कभी गम तो कभी खुशी से भरे उन वृद्धों की जिंदगानी से हम आपको रूबरू करा रहे हैं जिन्हें पहले तो विपरीत परिस्थितियों में विश्वनाथ कॉरिडोर के मुमुक्षु भवन में रहना पड़ा। उन्हें यहां उनके अपने बेटे छोड़ गए थे लेकिन पोते पोतियों ने उन्हें फिर से अपनाया और खुशियों का आशियाना दिया…।
�बेटे ने छोड़ा तो पोती बनी दादी का सहारा
दिल्ली निवासी एक पुत्र अपनी वृद्ध मां को करीब तीन महीने पहले विश्वनाथ कॉरिडोर में बने मुमुक्षु भवन में छोड़ गया। बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। लेकिन, जिस मां ने जन्म उसे दिया, वो उन्हें ही संभाल नहीं पाया। उनके सिर पर छत नहीं दे सका। ये बात जब यूएसए में उसकी पोती को पता चली तो वो फौरन देश लौटी। काशी आकर अपने दादी को साथ लेकर सीधे यूएसए चली गई। पोती की शादी हो चुकी है। वो अपने पति के साथ यूएसए में रहती है। पोती जब अपने दादी को लेकर मुमुक्षु भवन पहुंची और उन्हें गले लगाया तो वहां रह रहे सभी वृद्ध भावुक हो उठे थे।
�छोड़ गया बेटा, फिर साथ ले गया पोता
मध्य प्रदेश के एक साहित्यकार अपने वृद्ध मां-पिता को चार महीने पहले मुमुक्षु भवन छोड़ गए थे। पोते को इस बात की जानकारी नहीं थी क्योंकि वह दूसरे शहर में नौकरी करता था। त्योहार पर जब घर लौटा तो दादा-दादी को वहां न देखकर मां-पिता से सवाल किया। पता चला कि मां-पिता उसके दादा-दादी को मोक्ष की कामना से काशी छोड़ आए हैं। पोता अपने दादा-दादी को लेने काशी पहुंच गया। पोते को देख दादा-दादी की आंखें नम हो गईं। पोता वहां से सीधे उन्हें अपने साथ अपने घर ले गया।
बेटी पुलिस और बेटे की भी अच्छी नौकरी तब भी छोड़ गए मां को
प्रॉपर्टी की लड़ाई में बेटा-बेटी अपनी मां को मुमुक्षु भवन छोड़ गए। बेटी पुलिस में है और बेटा भी अच्छी कंपनी में नौकरी कर रहा है। परिवार से दूर रहने का दर्द वृद्ध मां के चेहरे पर साफ झलकता है।
मां की सेवा के लिए मुमुक्षु भवन में साथ रह रहा बेटा
सिक्का का एक दूसरा पहलू भी है। मोक्ष की कामना लिए मां को काशी लेकर आया बेटा उनके साथ ही मुमुक्षु भवन में रह रहा है। घर की हर सुख सुविधा छोड़ मां के साथ बेटे ने भी मुमुक्षु भवन को अपना घर बना लिया है। छह साल पहले सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त बेटा अपनी 92 साल की मां के साथ काशी प्रवास पर है। उनकी मां की अच्छा थी कि वह अपनी अंतिम समय काशी में गुजारें।
