छात्र खुदकुशी के बढ़ते मामलों के लिए माता-पिता जिम्मेदार: सुप्रीम कोर्ट

नागौर: याचिका में कहा गया था कि 14 साल के बच्चे घर के सुरक्षित वातावरण से दूर कोचिंग फैक्ट्रियों में दाखिले ले रहे हैं। यहां मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन के लिए बेहद कड़ी तैयारियां कराई जाती हैं। ये बच्चे मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं। कोचिंग सेंटरों को केवल अपनी कमाई से मतलब होता है। सरकारों ने आंखें मूंद रखी हैं। ये संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए गरिमामय जीवन जीने के अधिकार के भी खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि छात्रों की खुदकुशी के बढ़ते मामलों के पीछे पैरेंट्स का दबाव और बेहद ज्यादा कॉम्पििटशन है। तेजी से फैलते कोचिंग सेंटरों के नियमन की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी ने कोचिंग सेंटरों को निर्देश देने से इनकार कर दिया। जस्टिस खन्ना ने कहा कि ज्यादातर लोग कोचिंग सेटरों के खिलाफ हैं, लेकिन आप स्कूलों के हालात देखिए। कॉम्पििटशन के दौर में छात्रों के पास कोचिंग के अलावा और कोई चारा नहीं है। याची मुंबई के डॉ. अनिरुद्ध नारायण की वकील मोहिनी प्रिया ने कोर्ट को बताया कि एनसीआरबी के अनुसार देश में 2020 में 8.2 फीसदी छात्रों ने खुदकुशी की।

 


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