उत्तर भारत में दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित क्षेत्र, बिहार-चंडीगढ़ सहित दिल्ली-पंजाब में अधिक प्रदूषण

भारत के उत्तरी मैदानी इलाके में दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित क्षेत्र हैं। शिकागो विश्वविद्यालय की ओर से 2023 के लिए जारी की गई वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषित क्षेत्रों में बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के अधिकांश हिस्से शामिल हैं। सूक्ष्म कणीय प्रदूषण के कारण इन इलाके के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है।
 रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत में सूक्ष्म कणीय वायु प्रदूषण (पीएम2.5) जीवन को आठ साल तक कम कर देता है। यदि प्रदूषण नीतियों पर प्रभावी तरीके से अमल हो तो उत्तर भारत के निवासियों को कुल मिलाकर 4.2 अरब जीवन वर्ष अतिरिक्त प्राप्त होंगे। रिपोर्ट के अनुसार यदि वर्तमान प्रदूषण स्तर कायम रहता है तो उत्तरी इलाके के सबसे प्रदूषित क्षेत्र दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक करोड़ 80 लाख लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों के पैमाने पर औसतन 11.9 वर्ष और राष्ट्रीय दिशानिर्देश के आधार पर 8.5 वर्ष कम जीवन प्रत्याशा की ओर बढ़ रहे हैं।
23 वर्षों में 61 फीसदी तक बढ़ा प्रदूषण
सूचकांक यह भी दर्शाता है कि यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों को सही ढंग से लागू किया जाए साथ ही प्रभावी और मौजूदा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों पर उचित तरीके से अमल किया जाए तो जीवन प्रत्याशा को बढ़ाया जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार समय गुजरने के साथ सूक्ष्म कण प्रदूषण में भारी बढ़ोतरी हुई है। 1998 से 2021 तक 23 वर्षों में औसत वार्षिक सूक्ष्म कण प्रदूषण में 61 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस वजह से प्रभावित इलाकों के लोगों की जीवन प्रत्याशा लगभग 3.2 वर्ष कम हो गई है।
मौसम संबंधी कारण
सर्वाधिक चिंताजनक यह है कि उत्तर के मैदानी इलाकों में रहने वाले 521.2 मिलियन लोग भारत की 38.9 फीसदी आबादी के उस क्षेत्र में निवास करते हैं जिस इलाके में वार्षिक औसत सूक्ष्म कण प्रदूषण स्तर डब्ल्यूएचओ के मापदंडों से 17.3 गुना अधिक है। उत्तर के मैदानी इलाकों में सूक्ष्म कण प्रदूषण भूवैज्ञानिक और मौसम संबंधी कारकों के कारण बढ़ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, वाहन, आवासीय, औद्योगिक और कृषि स्रोतों से सबसे अधिक प्रदूषण होता है। एक्यूएलआई एक ऐसा प्रदूषण सूचकांक है जो सूक्ष्म कणीय वायु प्रदूषण को संभवतः सबसे महत्वपूर्ण मीट्रिक में परिवर्तित कर जीवन प्रत्याशा का सटीक अनुमान लगाता है।


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