सोने सरीखी मेरी बेटी


By: divyahimachal��
परिवार नियोजन की सामाजिक दृष्टि को और सशक्त करने के लिए सुक्खू सरकार ने बालिका योजना की प्रोत्साहन राशि को आगे बढ़ाया है। आइंदा एक बेटी की सीमा में रहते हुए परिवार नियोजित करने वाले लोगों को पैंतीस हजार की बजाय दो लाख और दो बेटियों के परिवार को एक लाख रुपए मिलेंगे। यह एक ऐसा सम्मान है जो परिवार से देश तक के लिए नारी शक्ति का इजहार कर रहा है। कहना न होगा कि हिमाचल राज्य की सामाजिक सुरक्षा में निरंतर इजाफा हुआ है और कमोबेश हर सरकार ने सामाजिक कल्याण की सुर्खियां बटोरी हैं। वर्तमान सुक्खू सरकार ने भी अपनी प्राथमिकताओं के मरहम से ऐसे ही अनेक पहलुओं को छूने की इच्छाशक्ति दिखाई है। सुख आश्रय योजना के तहत अनाथ बच्चों को मिल रहा चिल्ड्रन ऑफ द स्टेट का दर्जा, अपनी तरह की अनूठी पहल है, जिसके तहत सैकड़ों निराश्रित बच्चों को सरकार न केवल आश्रय, बल्कि उम्मीदों का आकाश भी सौंप रही है।
इसके तहत अब पारिवारिक व सामाजिक विडंबनाओं के बाहर अनाथ बचपन के करीब भविष्य का सूरज लाने का वादा न केवल सरकार ने किया है, बल्कि वित्तीय आबंटन से अनाथ बच्चों का वित्तीय रूप से समर्थन शुरू किया गया। वित्तीय लाभ से सुसज्जित कई तरह की सामाजिक पेंशन स्कीमें हिमाचल को अति सुरक्षित राज्य बना चुकी हैं। हालांकि अति सुरक्षात्मक दृष्टि व राज्य प्रायोजित प्रश्रय योजनाओं के कारण एक तरह का निठल्लापन भी हिमाचल में विकसित हुआ है। सरकार का ‘कामधेनु’ होना एक हद तक तो समझ में आता है, लेकिन सरकारी संसाधनों के पक्ष में सामाजिक दायित्व की भूमिका भी परिलक्षित होनी चाहिए। बहरहाल हिमाचल के आंगन में बेटी का सोना होना, हिमाचली समाज की रूपरेखा में एक स्वर्णिम अध्याय है। यही वजह है लिंगानुपात में एक हजार पुरुषों के मुकाबले औरतों की तादाद 972 तक पहुंच गई है, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर भी 76 प्रतिशत तक के सम्मानीय आंकड़े को छू रही है। उन्नीसवीं एशियाई खेलों में भारतीय महिला कबड्डी की कप्तानी कर रही रितु नेगी के अलावा क्रिकेट, एथलेटिक्स व हैंडबाल जैसी खेलों में प्रदेश की बेटियों ने भी देश के लिए नाम कमाया है। पुरुषों के क्षेत्र में खास तौर पर सैन्य बलों में प्रदेश की बेटियां सरहद, समुद्र से आकाश तक प्रदेश की सैन्य पृष्ठभूमि को अलंकृत कर रही हैं। ऐसा कोई स्थान या मुकाम नहीं जहां हिमाचली बेटियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा नहीं मनवाया।
फिल्म-टीवी जगत से गीत-संगीत की दुनिया तक प्रदेश के महिला सशक्तीकरण की धाक है। इस दौरान नारियों के खिलाफ आपराधिक व घरेलू हिंसा के मामलों में भी काफी कमी आई है, फिर भी आर्थिक पिछड़ेपन की दुरुहता में फंसे हिमाचल को अभी और देखभाल की जरूरत है। हिमाचल में समूचे देश से कहीं भिन्न ट्राइबल वूमेन की आर्थिक व सामाजिक तरक्की है। कई अनुकरणीय उदाहरण पांगी-भरमौर, लाहुल-स्पीति व किन्नौर की औरतें पेश कर रही हैं और इसके लिए महिला संगठन, स्वयं सहायता समूह व गैर सरकारी संस्थाएं श्रेय की पात्र हैं। चंबा, लाहुल-स्पीति, किन्नौर और सिरमौर के कई स्वयं सहायता समूहों ने ग्रामीण उत्पादों के अलावा ऊनी वस्त्रों तथा परंपरागत पहरावों का संरक्षण करने में श्रेष्ठता हासिल की है। आज भी लोक संगीत की धुनों के बीच फसल कटाई या खास तौर पर चिलगोजों का एकत्रीकरण करने की प्रक्रिया सामाजिक पृष्ठभूमि में नारी अस्तित्व की जरूरत व भूमिका को अंगीकार करती है। ऐसे में एकलौती बेटी के अभिभावकों को सम्मानित करते हुए सुक्खू सरकार का प्रयास सराहा जाना चाहिए। यह दीगर है कि अकेली बेटी को आगे बढ़ाने वाले मां-बाप को खुद ही ऐसे सम्मान के चयन के लिए प्रयास करना पड़ता है, जबकि राज्य व्यापक सर्वेक्षण से सरकार को पात्रता की सरलता का रास्ता बनाना चाहिए।
By: divyahimachal��
परिवार नियोजन की सामाजिक दृष्टि को और सशक्त करने के लिए सुक्खू सरकार ने बालिका योजना की प्रोत्साहन राशि को आगे बढ़ाया है। आइंदा एक बेटी की सीमा में रहते हुए परिवार नियोजित करने वाले लोगों को पैंतीस हजार की बजाय दो लाख और दो बेटियों के परिवार को एक लाख रुपए मिलेंगे। यह एक ऐसा सम्मान है जो परिवार से देश तक के लिए नारी शक्ति का इजहार कर रहा है। कहना न होगा कि हिमाचल राज्य की सामाजिक सुरक्षा में निरंतर इजाफा हुआ है और कमोबेश हर सरकार ने सामाजिक कल्याण की सुर्खियां बटोरी हैं। वर्तमान सुक्खू सरकार ने भी अपनी प्राथमिकताओं के मरहम से ऐसे ही अनेक पहलुओं को छूने की इच्छाशक्ति दिखाई है। सुख आश्रय योजना के तहत अनाथ बच्चों को मिल रहा चिल्ड्रन ऑफ द स्टेट का दर्जा, अपनी तरह की अनूठी पहल है, जिसके तहत सैकड़ों निराश्रित बच्चों को सरकार न केवल आश्रय, बल्कि उम्मीदों का आकाश भी सौंप रही है।
इसके तहत अब पारिवारिक व सामाजिक विडंबनाओं के बाहर अनाथ बचपन के करीब भविष्य का सूरज लाने का वादा न केवल सरकार ने किया है, बल्कि वित्तीय आबंटन से अनाथ बच्चों का वित्तीय रूप से समर्थन शुरू किया गया। वित्तीय लाभ से सुसज्जित कई तरह की सामाजिक पेंशन स्कीमें हिमाचल को अति सुरक्षित राज्य बना चुकी हैं। हालांकि अति सुरक्षात्मक दृष्टि व राज्य प्रायोजित प्रश्रय योजनाओं के कारण एक तरह का निठल्लापन भी हिमाचल में विकसित हुआ है। सरकार का ‘कामधेनु’ होना एक हद तक तो समझ में आता है, लेकिन सरकारी संसाधनों के पक्ष में सामाजिक दायित्व की भूमिका भी परिलक्षित होनी चाहिए। बहरहाल हिमाचल के आंगन में बेटी का सोना होना, हिमाचली समाज की रूपरेखा में एक स्वर्णिम अध्याय है। यही वजह है लिंगानुपात में एक हजार पुरुषों के मुकाबले औरतों की तादाद 972 तक पहुंच गई है, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर भी 76 प्रतिशत तक के सम्मानीय आंकड़े को छू रही है। उन्नीसवीं एशियाई खेलों में भारतीय महिला कबड्डी की कप्तानी कर रही रितु नेगी के अलावा क्रिकेट, एथलेटिक्स व हैंडबाल जैसी खेलों में प्रदेश की बेटियों ने भी देश के लिए नाम कमाया है। पुरुषों के क्षेत्र में खास तौर पर सैन्य बलों में प्रदेश की बेटियां सरहद, समुद्र से आकाश तक प्रदेश की सैन्य पृष्ठभूमि को अलंकृत कर रही हैं। ऐसा कोई स्थान या मुकाम नहीं जहां हिमाचली बेटियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा नहीं मनवाया।
फिल्म-टीवी जगत से गीत-संगीत की दुनिया तक प्रदेश के महिला सशक्तीकरण की धाक है। इस दौरान नारियों के खिलाफ आपराधिक व घरेलू हिंसा के मामलों में भी काफी कमी आई है, फिर भी आर्थिक पिछड़ेपन की दुरुहता में फंसे हिमाचल को अभी और देखभाल की जरूरत है। हिमाचल में समूचे देश से कहीं भिन्न ट्राइबल वूमेन की आर्थिक व सामाजिक तरक्की है। कई अनुकरणीय उदाहरण पांगी-भरमौर, लाहुल-स्पीति व किन्नौर की औरतें पेश कर रही हैं और इसके लिए महिला संगठन, स्वयं सहायता समूह व गैर सरकारी संस्थाएं श्रेय की पात्र हैं। चंबा, लाहुल-स्पीति, किन्नौर और सिरमौर के कई स्वयं सहायता समूहों ने ग्रामीण उत्पादों के अलावा ऊनी वस्त्रों तथा परंपरागत पहरावों का संरक्षण करने में श्रेष्ठता हासिल की है। आज भी लोक संगीत की धुनों के बीच फसल कटाई या खास तौर पर चिलगोजों का एकत्रीकरण करने की प्रक्रिया सामाजिक पृष्ठभूमि में नारी अस्तित्व की जरूरत व भूमिका को अंगीकार करती है। ऐसे में एकलौती बेटी के अभिभावकों को सम्मानित करते हुए सुक्खू सरकार का प्रयास सराहा जाना चाहिए। यह दीगर है कि अकेली बेटी को आगे बढ़ाने वाले मां-बाप को खुद ही ऐसे सम्मान के चयन के लिए प्रयास करना पड़ता है, जबकि राज्य व्यापक सर्वेक्षण से सरकार को पात्रता की सरलता का रास्ता बनाना चाहिए।
