अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में शामिल नहीं होते लगघाटी के देवताओं के दादा

कुल्लू। विश्व के सबसे बड़े देव महाकुंभ में सैंकड़ों देवी-देवता शिरकत करते हैं। ढालपुर मैदान में देवी-देवताओं की मौजूदगी को देखने पूरे विश्व से लोग पहुंचते हैं। कुल्लू में ही एक ऐसे देवता भी हैं, जिन्हें आज तक न तो राजतंत्र का दबाव दशहरा में ला पाया और न ही भगवान रघुनाथ जी की परम्परा। दरअसल लगघाटी के देवता दशहरा पर्व की परम्परा को मानते ही नहीं हैं। बता दें कि लग रियासत को जीतने के बाद भी कुल्लू का राजा यहां की देव संस्कृति को प्रसन्न नहीं कर सका और यहां के देवताओं को कुल्लू दशहरे में सम्मिलित करने में असफल रहा और इसी वजह से लगघाटी के देवता कुल्लू दशहरा में शामिल नहीं होते हैं। इस घाटी के देवी-देवता कतरूसी नारायण को दादा के नाम से जाना जाता है। कतरूसी नारायण को तत्कालीन राजा ने सेना के बल पर भी दशहरा परम्परा में शामिल करने के प्रयास किए थे, लेकिन लगघाटी के दड़का स्थान से आगे देवता के रथ को लाने में राजतंत्र हार गया था। यही नहीं, यहां की प्रसिद्ध शक्तिपीठ माता भेखली भी कुल्लू दशहरा में सम्मिलित नहीं होती हैं। कुल्लू रियासत के राजा को कुष्ठ प्रकोप से मुक्त होने के लिए अयोध्या से श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की मूॢतयों को लाकर दशहरा का आयोजन करना पड़ा।

रघुनाथ परिवार को 1651 में पहली बार कुल्लू लाया गया था। 1651 तक ये मूर्तियां गोमती के नाम से जानी जाने वाली गड़सा खड्ड और ब्यास के संगम तट मकराहड़ में राजा के महल में रखी गई थीं लेकिन मकराहड़ और लग रियासत का क्षेत्र साथ-साथ होने के कारण इसे सिर्फ ब्यास दरिया ही विभक्त करता था। रियासती भय के कारण 1653 के लगभग ये मूॢतयां मणिकर्ण ले जाई गईं और यहां दशहरा का आयोजन किया गया। मणिकर्ण में भी जगह की कमी तथा रियासती भय के कारण यहां से ये मूर्तियां हरिपुर ले जाई गईं और दशहरा का आयोजन हरिपुर में होने लगा। दशहरा में देवी-देवताओं के अधिक संख्या में शामिल होने के कारण जगह के अभाव को देखते हुए और दशहरा में सभी देवी-देवताओं को एकत्रित करने की इच्छा से राजा ने ढालपुर के मैदान को हथियाने और लग रियासत पर अपनी विजय हासिल करने के उद्देश्य से डोभी चौकी में डेरा लगाकर ब्यास दरिया को पार कर सुल्तानपुर पर 1656-58 के मध्य चढ़ाई कर दी और राजा जोग चंद्र के साथ युद्ध किया, जिसमें राजा जोग चंद्र पराजित हुआ। कुल्लू के राजा ने लग रियासत पर विजय हासिल ली और जनता पर राज कर लिया लेकिन यहां के देवी-देवताओं ने राजा को अपनी देव संस्कृति में कोई स्थान नहीं दिया, जिसके पुख्ता प्रमाण के तौर पर आज भी लग रियासत के नारायण और यहां की आदि शक्तियां नारायण अवतार श्रीराम के कुल्लू दशहरा उत्सव में सम्मिलित नहीं होते।