लोगों ने यादगार के लिए पुरानी चिट्ठियों को सहेजकर रखा


उत्तरप्रदेश |� इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव ने डाक विभाग के महत्व को कम कर दिया. जिले के अधिकतर लोगों ने हाथों से चिट्ठियां लिखना छोड़ दिया है. वहीं क्षेत्र के लोगों ने बताया कि उन्होंने यादगार के लिए पुरानी चिट्ठियों को सहेजकर रख रखा है.
डिजिटल युग में लोग चिट्ठी का इस्तेमाल करना भूल गए हैं. लोग संदेश को ईमेल, व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंचा रहे हैं. गाजियाबाद जिले में मुख्य डाकघर सहित 38 उप डाकघर हैं. महानगर की सोसाइटी और गली मोहल्लों सहित आदि जगहों पर कोरियर का सामान देकर डाकिया जा रहे हैं. जिले की गली मुहल्लों में लोगों को कभी डाकिया और चिट्ठी का बेसब्री से इंतजार होता था, मनीआर्डर आते थे. डाकिया के आने पर गली-मोहल्लों में हलचल मचती थी. अब हालत यह है कि लोगों को पता भी नहीं कि अंतिम बार चिट्ठी कब लिखी थी. पहले जब चिट्ठी लिखी जाती तो शब्दों का चयन किया जाता था. लोग अपनी भावनाओं को चिट्ठी में शब्दों के माध्यम से व्यक्त करते थे. डाकघर में कार्य ऑनलाइन होता है.
गाजियाबाद पोस्ट ऑफिस के प्रवर अधीक्षक भूर सिंह मीणा ने बताया कि अब डाकघर में चिट्ठियां कभी-कभी आती हैं. लोग स्पीड पोस्ट, कोरियर आदि के लिए आते हैं.
2002 से नहीं भेजी चिट्ठी
लाईनपार क्षेत्र के रहने वाले वरिष्ठ नागरिक आरके आर्य ने बताया कि वर्ष 2002 में मोबाइल खरीदा. इसके बाद चिट्ठी लिखना बंद कर दिया. इसके बाद फोन से पारिवारिक सदस्यों का हाल चाल का पता करने लगे. उन्होंने कहा कि वह 40 साल पहले की भी चिट्ठियों को सहेज कर रखे हुए हैं. रईसपुर के रहने वाले मनोज चौधरी ने बताया कि पहले तो किसी के शादी की सभी रश्में पूरी हो जाने के बाद चिट्ठी पहुंचती थी. कई बार रिश्तेदारों के गम की खबर भी बहुत दिनों के बाद चिट्ठी के माध्यम से आती थी
उत्तरप्रदेश |� इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव ने डाक विभाग के महत्व को कम कर दिया. जिले के अधिकतर लोगों ने हाथों से चिट्ठियां लिखना छोड़ दिया है. वहीं क्षेत्र के लोगों ने बताया कि उन्होंने यादगार के लिए पुरानी चिट्ठियों को सहेजकर रख रखा है.
डिजिटल युग में लोग चिट्ठी का इस्तेमाल करना भूल गए हैं. लोग संदेश को ईमेल, व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंचा रहे हैं. गाजियाबाद जिले में मुख्य डाकघर सहित 38 उप डाकघर हैं. महानगर की सोसाइटी और गली मोहल्लों सहित आदि जगहों पर कोरियर का सामान देकर डाकिया जा रहे हैं. जिले की गली मुहल्लों में लोगों को कभी डाकिया और चिट्ठी का बेसब्री से इंतजार होता था, मनीआर्डर आते थे. डाकिया के आने पर गली-मोहल्लों में हलचल मचती थी. अब हालत यह है कि लोगों को पता भी नहीं कि अंतिम बार चिट्ठी कब लिखी थी. पहले जब चिट्ठी लिखी जाती तो शब्दों का चयन किया जाता था. लोग अपनी भावनाओं को चिट्ठी में शब्दों के माध्यम से व्यक्त करते थे. डाकघर में कार्य ऑनलाइन होता है.
गाजियाबाद पोस्ट ऑफिस के प्रवर अधीक्षक भूर सिंह मीणा ने बताया कि अब डाकघर में चिट्ठियां कभी-कभी आती हैं. लोग स्पीड पोस्ट, कोरियर आदि के लिए आते हैं.
2002 से नहीं भेजी चिट्ठी
लाईनपार क्षेत्र के रहने वाले वरिष्ठ नागरिक आरके आर्य ने बताया कि वर्ष 2002 में मोबाइल खरीदा. इसके बाद चिट्ठी लिखना बंद कर दिया. इसके बाद फोन से पारिवारिक सदस्यों का हाल चाल का पता करने लगे. उन्होंने कहा कि वह 40 साल पहले की भी चिट्ठियों को सहेज कर रखे हुए हैं. रईसपुर के रहने वाले मनोज चौधरी ने बताया कि पहले तो किसी के शादी की सभी रश्में पूरी हो जाने के बाद चिट्ठी पहुंचती थी. कई बार रिश्तेदारों के गम की खबर भी बहुत दिनों के बाद चिट्ठी के माध्यम से आती थी
