क्षेत्रीय सहयोग में

By: divyahimachal
क्षेत्रीय सहयोग की अभिलाषा में हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की भगवंत सिंह मान से मुलाकात की वजह अगर पंजाब महसूस करे, तो दोनों राज्यों के बीच कई समान धाराएं प्रवाहित हो सकती हैं। आज तक के जलविवाद के दो पक्ष यानी पंजाब और हरियाणा ही सामने आते रहे हैं, लेकिन हिमाचल की आत्मनिर्भरता के पैमाने अगर अपनी भूमि पर एकत्रित हो रहे पानी में भरंे, तो दोनों ही राज्यों का बिफर जाना गैर जरूरी व अतार्किक है। इसी प्रतिक्रिया को अनावश्यक ठहराने के हिमाचली संदर्भ मुखातिब हैं और प्रस्तावित वाटर सेस समिति के जरिए और स्पष्टता आएगी। पानी को लेकर नजर और नजराने में अंतर नहीं हो सकता। नजराने के तौर पर देखें तो भाखड़ा से पौंग बांध या बाद में अन्य ऐसी परियोजनाओं को अपने सीने में दबाए हिमाचल ने न केवल मैदान की बाढ़ें रोकीं, बल्कि उनके खेतों में अमृत भी पहुंचाया। इसके बदले आज तक किसी ने यह नहीं सोचा कि राष्ट्रहित की मशाल जलाने वाले प्रदेश की आपदाओं में शेष भारत ने क्या किया। इसी परिप्रेक्ष्य में नजराने के बदले नजरिया बदलने की पहली कोशिश सुक्खू सरकार कर रही है।
आत्मनिर्भरता के सवाल को बड़ा करते हुए हिमाचल अगर विद्युत उत्पादन की क्षमता में पानी की कीमत तय कर रहा है, तो इसके भौगोलिक व भौतिक कारणों के अलावा पर्वतीय राज्य की तासीर को समझना होगा। उम्मीद है पंजाब व हरियाणा को यह समझ में आएगा कि उनके लिए पर्वतीय हवाएं व पानी के स्रोत अगर महत्त्वपूर्ण हैं, तो हिमाचल का महत्त्व नजरअंदाज नहीं हो सकता। यह मसला साझी विरासत को पहचानने व संरक्षित रखने का भी है और अगर महापंजाब की अवधारणा में सहयोग की कोपलें फूटती हैं, तो क्षेत्रीय आर्थिकी में पंजाब, हरियाणा व हिमाचल का ही भला नहीं होगा, बल्कि साथ लगते जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, राजस्थान तथा दिल्ली व चंडीगढ़ तक की विविधता में कई संभावनाएं भी पल्लवित होंगी। खास तौर पर पर्यटन एक ऐसा सेतु है जिसके ऊपर ये राज्य अपनी-अपनी क्षमता से आपसी सहयोग की पूर्णता ग्रहण कर सकते हैं।
यहां प्रश्र कनेक्टिविटी, माल ढुलाई से आगे निकलकर सांस्कृतिक, औद्योगिक तथा भाषाई दृष्टि से भी अध्ययन, शोध तथा प्रदर्शन की गुंजाइश रखते हैं। हिमाचल के मेलों या सांस्कृतिक समारोहों का ही उल्लेख करें, तो पड़ोसी राज्यों के पहलवानों को हिमाचली छिंजों का प्रश्रय मिलता है और पंजाबी गायकों को प्रदेश की महफिल लूटने का मौका भी उपलब्ध होता है। ऐसे कितने ही सेतु हैं जिनके ऊपर कहीं हिमाचल गुजर कर पंजाब में समाहित हो जाता है, तो कहीं पंजाब व हरियाणा यहां पहुंच जाते हैं। क्षेत्रीय सहयोग की बुनियाद पर पृष्ठभूमि को समझें तो जीवन की मूलभूत सुविधाएं हिमाचल में पैदा होकर मैदानी राज्यों में पहुंच जाती हंै, लेकिन वहां से लौटती हवाओं में कहीं नशा, तस्करी तो कहीं आपराधिक तंत्र का विषाद पहुंच जाता है। ऐसे में क्षेत्रीय सहयोग की जिरह पर कानून व्यवस्था के बेहतर इंतजाम, सीमाई क्षेत्रों की चौकसी, नशे के खिलाफ एकजुटता व रेत-बजरी तथा इस तरह के संसाधनों की माफियागिरी पर नकेल डाली जा सकती है। बात एक और एक ग्यारह बनाने की होगी तो पंजाब को समझ में आएगा कि उस तक केवल पानी ही नहीं पहुंचता, बल्कि रिसते पहाड़ का दर्द भी बह रहा होता है। ऐसे में जल उपकर का अधिकार कोई शरारत या खुराफात नहीं, अपनी मिट्टी पर आर्थिकी को सिंचित करने की चंद बूंदें हैं, जो विशुद्ध हिमाचली हैं, किसी की मिलकीयत छीनने की कोशिश नहीं।
