पर्यटन की नई बस्तियां

By: divyahimachal  
संकल्पों के रथ को विजयी बनाने की दृष्टि से मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की दिल्ली यात्रा की सुर्खियां ईमानदार और प्रभावशाली वकालत कर रही हैं। हिमाचल को ढांचागत विकास के लिए केंद्र का हाथ चाहिए और इसलिए सरकार केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात करके अपना पक्ष मजबूत कर रही है। मुख्यमंत्री स्पष्टता से यह जानते हैं कि अगले पांच सालों के रिपोर्ट कार्ड में केंद्रीय सडक़ एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से क्या मांगना है या पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी के राष्ट्रीय खाके में हिमाचल को कैसे उभारना है। केंद्र सरकार से हिमाचल के रिश्तों की पैरवी भले ही हर सरकार के दौर में हुई हो, लेकिन इस बार योजना प्रारूप, संकल्प, लक्ष्य तथा इच्छा शक्ति का स्तर एक अलग भूमिका में परिलक्षित हो रहा है। अब तक के फैसलों की फेहरिस्त में सरकार की इच्छा शक्ति देखें, तो तमाम राजनीतिक गारंटियों के बावजूद ऐसे संकल्प सामने आ रहे हैं, जहां मुख्यमंत्री ग्रीन राज्य की बुनियाद पर पर्यटन की नई बस्तियां ढूंढ रहे हैं। फोरलेन व अन्य सडक़ परियोजनाओं के अलावा अगर एयरपोर्ट विस्तार की दिशा में सफलता मिलती है, तो पर्यटन के कई अनछुए पहलू उजागर होंगे। इस दिशा में वाइब्रेंट विलेज, धार्मिक तथा धौलाधार पर्यटन की शिनाख्त में एक बड़ा प्रयास निश्चित है। जाहिर तौर पर ‘विलेज टूरिज्म’ के रास्ते हिमाचल अपनी खासियत, प्राकृतिक संपदा, लोक संस्कृति, ग्रामीण आर्थिकी व दस्तकारी को भी नए आयाम तक पहुंचा सकता है। इसी तरह धौलाधार पर्यटन के माध्यम से संभावनाओं की तलाशी, पूरे उद्योग की स्थिति बदल सकती है। ऐसा एक प्रयास शांता कुमार के केंद्रीय मंत्री रहते हुए भी शुरू हुआ था, लेकिन उनके मंसूबे पूरे नहीं हुए। अब टेंट सिटी को लेकर धौलाधार क्षेत्र में पर्यटन के खजाने का फिर से पता खोजा जा रहा है। खास बात यह है कि पहली बार पर्यटन को कांगड़ा के मार्फत विकसित होते देखा जा रहा है, तो नई परियोजनाओं के सिंहासन पर आशाएं विराजित हो रही हैं।
मसलन अगर गरली-परागपुर के समीप गोल्फ कोर्स स्थापित करने में सरकार की मेहनत रंग लाती है, तो इसके आगामी कदमों में कालेश्वर धाम का विकास तथा धरोहर गांव के संरक्षण में प्रदेश की पहली फिल्म सिटी रूपांतरित हो सकती है। हालांकि कांगड़ा जिला इससे पूर्व घोषित रूप से शीतकालीन व खेल राजधानी जैसी उपमाओं से नवाजा जा चुका है, लेकिन लोग आज तक पलक पांवडे बिछा कर केवल इंतजार ही करते रहे हैं। दरअसल कांगड़ा को केवल जिला के रूप में देखने के बजाय इसकी पृष्ठभूमि से जुड़ते हमीरपुर, ऊना, चंबा तथा साथ लगते मंडी को नई संभावनाओं से देखें तो कई ट्रैवल या टूरिज्म सर्किट बन जाएंगे। हिमाचल के पर्यटन की दिशा में बढ़ते कदमों के साथ उन तमाम परंपराओं को भी निखारना होगा, जो वर्षों से हमारे साथ प्रदेश की बहुरंगी तस्वीर में रंग भर रही हैं। प्रदेश के मेलों, सांस्कृतिक व धार्मिक समारोहों को इनकी समग्रता में देखने का प्रयास ही नहीं हुआ, वरना शिवरात्रि, नलवाड़ी, मिंजर, दशहरा व रेणुका जी के वार्षिक समारोहों के अलावा ग्रामीण मेलों पर आधारित पर्यटन, अपने साथ व्यापारिक मेलों का शृंगार भी कर सकता है। जरूरत है एक ऐसे मेला विकास प्राधिकरण के गठन की, जो तमाम ग्रामीण व सांस्कृतिक मेलों का कुशलता पूर्वक संचालन करते हुए इन्हें हिमाचली आर्थिकी के पथ पर खड़ा करे। ये तमाम छोटे-बड़े मेले अपने वार्षिक आयोजनों में दो-ढाई सौ करोड़ की आय-व्यय को सीमित परिधि में गंवा रहे हैं, जबकि राज्य स्तरीय खाके में अगर मेला प्राधिकरण इनका विस्तार तथा संचालन करे, तो लोक कलाओं व लोक गीत-संगीत के माध्यम से न केवल कलाकारों को रोजगार मिलेगा, बल्कि कुश्तियों के आयोजन आगे चलकर खेल प्रतिभा को चमकाने का स्थायी प्रबंध भी कर सकते हैं। प्रदेश स्तरीय ढांचे तथा सोच में बदलाव लाते हुए अगर विभागीय समन्वय से योजनाएं बनें, तो प्रदेश के परिवहन, वन, जलशक्ति, ऊर्जा, खेल, कला, भाषा एचं संस्कृति, पीडब्ल्यूडी, पर्यटन तथा प्रशासन आपसी तालमेल से ढांचागत उपलब्धियों के अलावा पर्यटन संस्कृति को एक नए आयाम तक पहुंचा सकते हैं। बहरहाल यह तो मानना ही पड़ेगा कि सुक्खू सरकार अपने इरादों से, संभावनाओं के हर क्षेत्र को छूना चाहती है और इसी परिप्रेक्ष्य में दिल्ली में हो रही मुलाकातें अपना खास असर रखती हैं।


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