कश्मीर : 146 घंटे चला परिचालन, उजैर समेत दो आतंकी ढेर, सबसे बड़े ऑपरेशन की सूची में हुआ शामिल

दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के कोकरनाग क्षेत्र में आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के बीच शुरू हुई मुठभेड़ करीब सात दिनों तक जारी रही। यह मुठभेड़ पिछले कुछ वर्षों में सबसे लंबी मुठभेड़ रही जो करीब 146 घंटे तक जारी रही। इस मुठभेड़ की शुरुआत में ही सेना के कर्नल मनप्रीत, मेजर आशीष धोनचक और जम्मू कश्मीर पुलिस के डीएसपी हुमायूं भट ने शहादत प्राप्त की जबकि बाद में एक और सेना का जवान प्रदीप वीरगति को प्राप्त हुआ।
इस ऑपरेशन के दौरान जम्मू कश्मीर पुलिस के एडीजीपी विजय कुमार के अनुसार लश्कर आतंकवादी उजैर खान को मार गिराया गया जबकि एक और समभावित आतंकवादी का जला हुआ शव मिला जिसकी शिनाख्त अभी नहीं हो पाई है।
कोकरनाग के गडूल जंगल क्षेत्र में आतंकवादियों की मूवमेंट के इनपुट मिलने के बाद सेना की 19 राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर), जम्मू कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त पार्टी द्वारा बुधवार तड़के इलाके में तलाशी अभियान शुरू किया गया था। इस मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों द्वारा आधुनिक हथियारों, क्वाडकॉप्टर, हेक्साकॉप्टर और सबसे एडवांस्ड ड्रोन हेरॉन मार्क-2 से उनके ठिकानों की तलाश भी की।
इससे पहले जम्मू संभाग के पुंछ जिले के भटाधूड़िया में 21 अप्रैल, 2023 को सुरक्षाबलों ने आतंकवादियों के खिलाफ करीब 10 दिनों तक ऑपरेशन चलाया। इस ऑपरेशन में सेना के 5 जवान शहीद हुए थे। इसके अलावा जम्मू संभाग में पिछले कुछ वर्षों में अब तक की सबसे लम्बी मुठभेड़ अक्टूबर 2021 में हुई थी। पुंछ जिले के डेरा की गली और भिम्बर गली के बीच जंगलों में 19 दिन तक ऑपरेशन चला था। और इसमें 9 जवान शहीद हुए थे।
 बता दें कि कर्नल संतोष (उस समय 39 वर्ष) विशिष्ट पैरा कमांडो थे और 41 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास कुपवाड़ा के हाजी नाका वन क्षेत्र में ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे थे। कर्नल संतोष, जो महाराष्ट्र के रहने वाले थे और 1998 में सेना में नियुक्त हुए थे, मूल रूप से विशेष बल से थे। आतंकवादी विरोधी अभियानों में वीरता और नेतृत्व का प्रदर्शन करने के लिए उन्हें सेना पदक मिला था।
इसके अलावा पुंछ जिले में चलाया गया भट्टी धार वन क्षेत्र में ऑपरेशन 9 दिन चला था। यह ऑपरेशन 31 दिसंबर, 2008 को शुरू हुआ ऑपरेशन 9 जनवरी 2009 को खत्म हुआ था। वहीं, जम्मू संभाग के पुंछ जिले सुरनकोट के पास पीर पंजाल की पहाड़ियों में हिल काका का इलाका साल 2000 के आसपास आतंकियों का गढ़ बन गया था। यहां से चार घंटे में पाकिस्तान पहुंच सकते थे तो कश्मीर घाटी में जाना भी आसान था। 5-6 दिन पैदल चलकर वहां से किश्तवाड़ और डोडा पहुंचा जा सकता था।
 
साल 2000 के आसपास हिल काका में आतंकियों का कहर इस क़द्र बढ़ गया था कि वहां रहना ही मुश्किल हो गया। वे जबरन लड़कों को उठा कर ले जाते और आतंकी बनाते। लेकिन इसका सफाया करने के लिए 17 अप्रैल, 2003 को ऑपरेशन सर्प विनाश लॉन्च किया गया। हिल काका में 70 किलोमीटर के जंगल एरिया में आतंकियों ने अपना कब्ज़ा जमाया था। वहां करीब 700 आतंकवादी थे। उनका ट्रेनिंग कैंप था और ट्रांजिट कैंप भी। लड़कों को डोडा-किश्तवाड़ से यहां पहुंचाया जाता था फिर कुछ दिन यहां रखकर उन्हें पाकिस्तान भेज दिया जाता था। पाकिस्तान से जो आतंकी ट्रेनिंग लेकर आते थे वह कुछ दिन यहां रहने के बाद फिर डोडा या कश्मीर घाटी भेजे जाते थे।
सबसे ज्यादा आतंकी लश्कर के थे, कुछ हिजबुल मुजाहिदीन के भी थे। 21 अप्रैल को सुबह 7 बजकर 35 मिनट पर डेरा टॉप में पहला फायर हुआ। यह अटैक आतंकियों के मेन अड्डे पर था। गुर्जर लड़कों और आर्मी ने मिलकर 83 आतंकी मारे और बाकी आतंकवादी पाकिस्तान भाग गए। अवाम और आर्मी की यह जुगलबंदी सफल हुई। आर्मी और एजेंसियों ने अवाम पर भरोसा किया और गन दीं। अवाम भी भरोसे पर खरी उतरी। इसके बाद विलेज डिफेंस कमिटी बनाने का सिलसिला शुरू हुआ। ”ऑपरेशन सर्प विनाश” 15 दिनों के भीतर 60 से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया था और ये ऑपरेशन करीब चार महीने तक चला था।


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