भारत-चीन के बीच अब छिड़ेगी ‘सेमीकंडक्टर’ की जंग

नई दिल्ली | सीमा पर तनाव के बाद अब टेक्नोलॉजी की नई दुनिया भारत और चीन के बीच नई जंग का मैदान बनती जा रही है. भारत दुनिया के लिए सेमीकंडक्टर विकल्प बनना चाहता है और चीन अभी भी हार मानने को तैयार नहीं है। ऐसे में क्या ताइवान कोई बीच का रास्ता निकाल सकता है, क्या ये भारत के लिए मददगार साबित हो सकता है? वैसे भी एक पुरानी कहावत है…दुश्मन का दुश्मन अच्छा दोस्त होता है।
गलवान घाटी की घटना के बाद से भारत और चीन के बीच रिश्तों में तनाव बना हुआ है. इससे पहले भारत ने कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया है, हाल ही में भारत ने कई चीनी कंपनियों के निवेश प्रस्तावों को भी अस्वीकार कर दिया है। वहीं चीन और ताइवान के बीच विवाद ऐतिहासिक है. हाल ही में चीन ने ताइवान की घेराबंदी भी की थी, लेकिन मामला टल गया था. ऐसे में क्या भारत और ताइवान मिलकर सेमीकंडक्टर के मामले में चीन को चुनौती दे पाएंगे.
भारत और चीन के बीच ‘चिप वॉर
मशहूर लेखक क्रिस मिलर ने अपनी किताब ‘चिप वॉर’ में सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन के एक ही जगह केंद्रित होने के कई नुकसान बताए हैं। दुनिया को इसका अंदाजा भी कोविड काल में हुआ, क्योंकि चीन से सेमीकंडक्टर की सप्लाई चेन बाधित हो गई, जिसका असर अभी भी बाजार पर पड़ रहा है.वहीं, भारत खुद को सेमीकंडक्टर हब बनाने के लिए करीब डेढ़ साल पहले एक पॉलिसी लेकर आया था। इसके बावजूद देश में अब तक एक भी सेमीकंडक्टर फैक्ट्री नहीं लगी है. इतना ही नहीं, वेदांता और फॉक्सफॉन के बीच डील टूटने से भी भारत का यह सपना कमजोर हो गया है।
चिप बाजार में एकाधिकार है
‘चिप वॉर’ में बताया गया है कि सेमीकंडक्टर का उत्पादन कैसे शुरू होता है. फिर बाद में पूरी सप्लाई चेन में ‘चोक पॉइंट’ उभरने लगते हैं. वहीं, कुछ कंपनियां इतनी ताकतवर हो जाती हैं कि बाजार हिस्सेदारी पर उनका दबदबा हो जाता है। जबकि कुछ मामलों में कंपनी पूर्ण एकाधिकार बन जाती है।उदाहरण के लिए, मुद्रित सर्किट बनाने वाली मशीन लें। दुनिया में केवल एक कंपनी लिथोग्राफी मशीनें बनाती है, एएसएमएल। यह नीदरलैंड में संचालित होता है और इसकी 100 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है। यानी दुनिया में जहां भी सेमीकंडक्टर बनेगा, वहां इस कंपनी की मशीन का इस्तेमाल किया जाएगा। इसकी कीमत 15 मिलियन डॉलर से शुरू होती है.
अब अगर हम दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी पर नजर डालें तो ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (टीएसएमसी) दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत प्रोसेसर चिप्स का निर्माण करती है, जिनका इस्तेमाल दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले स्मार्टफोन और कंप्यूटर में किया जाता है।विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में ‘सेमीकॉन इंडिया कॉन्फ्रेंस’ में कहा कि भारत का सेमीकंडक्टर मिशन सिर्फ घरेलू मांग को पूरा करने के लिए नहीं है। बल्कि वह वैश्विक मांग में योगदान देना चाहता है. एक विश्वसनीय निर्माता बनना चाहता है. उन्होंने बताया कि भारत के लिए सेमीकंडक्टर हब बनना कितना महत्वपूर्ण है और देश इसके लिए तैयार है।


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