विपक�?षी �?कता का विमर�?श?
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आदित�?य चोपड़ा: लोकतन�?त�?र में सत�?ता पक�?ष और विपक�?ष गाड़ी के �?से दो पहिये होते हैं जिन पर यह व�?यवस�?था चलती है। अतः स�?वस�?थ लोकतन�?त�?र के लि�? मजबूत विपक�?ष का होना जरूरी माना जाता है। इस प�?रणाली में बेशक बह�?मत का शासन होता है परन�?त�? इसके अन�?तर�?निहित तत�?वों में सत�?ता में अल�?पमत की भागीदारी भी संसदीय प�?रणाली के माध�?यम से समाहित रहती है। इसकी प�?रम�?ख वजह यह है कि सत�?ता और विपक�?ष दोनों का च�?नाव देश की जनता ही अपने �?क वोट के संवैधानिक अधिकार से करती है और जो पक�?ष में अल�?पमत में रह जाता है वह भी जनता का ही प�?रतिनिधित�?व करता है। भारत में विभिन�?न प�?रत�?याशियों के बीच सर�?वाधिक वोट पाने वाला प�?रत�?याशी विजयी घोषित होता है। अतः पराजित ह�?�? प�?रत�?याशियों को प�?राप�?त वोटों की संख�?या भी सामान�?य परिस�?थितियों में विजयी प�?रत�?याशी को मिले वोटों से अधिक रहती है। इसलि�? वैयक�?तिक आधार पर बह�?मत व अल�?पमत की गणना सकल मतदाताओं की आवाज की सामूहिक रूप से प�?रतिनिधित�?व नहीं कर पाती है। इसलि�? वैयक�?तिक बह�?मत प�?रणाली के अन�?तर�?गत सबल या मजबूत विपक�?ष की परिकल�?पना संसदीय प�?रणाली को तेज धारदार बनाती है। इस पृष�?ठभूमि में कांग�?रेस नेता राह�?ल गांधी का यह मत ध�?यान देने योग�?य है कि विपक�?ष को जनता के समक�?ष अपना वैकल�?पिक सां�?ा विमर�?श प�?रस�?त�?त करके सत�?ता पक�?ष के समक�?ष ठोस च�?नौती पेश करनी चाहि�?।भारत की राजनैतिक परिस�?थितियों को देखते ह�?�? यह कार�?य सरल नहीं है क�?योंकि विपक�?ष के नाम पर देश में दर�?जनभर से अधिक क�?षेत�?रीय दल �?से हैं जो अपने-अपने राज�?यों में मजबूत हैं और इन सबका नजरिया भी अलग-अलग व क�?षेत�?र केन�?द�?रित है। इनमें से अधिसंख�?य क�?षेत�?रीय दलों की पहचान अपने-अपने राज�?यों से बाहर शून�?य है। अतः राष�?ट�?रीय स�?तर पर इनमें �?कता स�?थापित करने के लि�? राष�?ट�?रीय च�?नावों में �?से राष�?ट�?रीय नजरिये या विमर�?श की जरूरत होगी जिसके साये में बैठ कर ये सभी क�?षेत�?रीय दल स�?वयं को स�?रक�?षित और सामर�?थ�?यवान सम�? सकें। जाहिर है कि �?सा नजरिया केवल �?से दल के साये में ही ढूंढा जा सकता है जिसका वैचारिक केन�?द�?र क�?षेत�?र के स�?थान पर देश हो और उसकी नीतियां भी राष�?ट�?रपरक होने के साथ अन�?तर�?राष�?ट�?रीय स�?तर पर सर�?वग�?राही हों। यदि बारीकी से देखा जाये तो भारत में राष�?ट�?रमूलक दृष�?टिकोण को प�?रतिपादित करने वाली केवल दो पार�?टियां ही हैं। �?क भाजपा व दूसरी कांग�?रेस। इनमें से भाजपा सत�?ता में है, अतः कांग�?रेस की ही यह मूल जिम�?मेदारी बनती है कि वह भाजपा के वैचारिक दृष�?टिकोण के समक�?ष अपना �?सा ठोस वैकल�?पिक दृष�?टिकोण खड़ा करे जिसके दायरे में सभी विपक�?षी क�?षेत�?रीय दल स�?गमता के साथ आ सकें और जो भाजपा को कड़ी च�?नौती भी दे सके। कांग�?रेस की विचारधारा आजादी के पहले से ही �?सी राष�?ट�?रीय विचारधारा रही है। भाजपा भी राष�?ट�?र की परिकल�?पना इसी आधार पर करती है। विशेषकर 1947 में मजहब के आधार पर म�?सलमानों के लि�? अलग पाकिस�?तान देश बनाये जाने के बाद हिन�?द�?त�?व से ही भारत की पहचान म�?खर रूप से मानने का सिद�?धान�?त इस पार�?टी के जन�?मदाता स�?व. श�?यामा प�?रसाद म�?खर�?जी ने 1951 में जनसंघ की स�?थापना करते समय दिया और इसी के चलते उन�?होंने दिसम�?बर 1950 में पाकिस�?तान के तत�?कालीन प�?रधानमन�?त�?री लियाकत अली खां के साथ स�?व. प. जवाहर लाल नेहरू का दोनों देशों के अल�?पसंख�?यकों की स�?थिति के बारे में ह�?�? सम�?ौते के बाद प. नेहरू की राष�?ट�?रीय सरकार से इस�?तीफा दिया। अतः आजादी के बाद भारत में तीन विचारधारा�?ं प�?रम�?ख रूप से रहीं। पहली कांग�?रेस की गांधीवादी समाजवाद की विचारधारा और दूसरी कम�?य�?निस�?ट विचारधारा तथा तीसरी डा. म�?खर�?जी की राष�?ट�?रवादी विचारधारा। इसमें से गांधीवादी समाजवाद की विचारधारा से अलग ह�?ई कई विशिष�?ट समाजवादी विचारधारा�?ं विकसित ह�?ईं जिनमें डा. राम मनोहर लोहिया, आचार�?य नरेन�?द�?र देव व आचार�?य कृपलानी की पार�?टियों की विचारधारा�?ं। इसी प�?रकार जनसंघ की विचारधारा की राष�?ट�?रवादी विचारधारा के समानान�?तर भी क�?छ उग�?र धार�?मिक व हिन�?द�?त�?ववादी विचारधाराओं की पार�?टियां अस�?तित�?व में रहीं जिनमें स�?वामी करपात�?री जी महाराज की राम राज�?य परिषद और वीर सावरकर की हिन�?दू महासभा प�?रम�?ख थी। परन�?त�? जनसंघ के अस�?तित�?व में आने के बाद इन सभी पार�?टियों का वजूद हाशिये पर जाता रहा।संपादकीय :ब�?लडोजर से कांपता आतंकसब तरफ हो हर�?ष-अभिनंदन नववर�?षनये वर�?ष की नई मंजिलें?सू की को फिर सजासाक�?षात ईश�?वर का रूप होती है मां…अब ‘रिमोट’ ई वी �?म मशीन वर�?तमान समय में 90 के दशक में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद राजनीति में जमीनी परिवर�?तन आया और जिस प�?रकार जातिमूलक राजनीति ने पैर पसारे उसमें राष�?ट�?रीय दृष�?टिकोण नैपथ�?य में जाने लगा और क�?षेत�?रीय दलों ने सामाजिक गणित के आधार पर मतदाताओं का विभाजन करने में सफलता प�?राप�?त कर ली जिसकी वजह से कांग�?रेस के राष�?ट�?रीय दृष�?टिकोण का बंटवारा होता रहा और च�?नावी समीकरण बनते रहे। परन�?त�? भाजपा के हिन�?द�?त�?व मूलक राष�?ट�?रवादी दृष�?टिकोण का शिकार भी अन�?ततः क�?षेत�?रीय पार�?टियों को ही होना पड़ा बेशक क�?छ अपवाद इसमें रहे परन�?त�? यह काम क�?षेत�?रीय स�?तर पर ही असरदार तरीके से ह�?�? जिसकी वजह से कांग�?रेस पार�?टी का पतन होता रहा, मगर राष�?ट�?रीय स�?तर पर इन क�?षेत�?रीय दलों को हमेशा से ही भाजपा या कांग�?रेस की छत�?रछाया की जरूरत रही जिसकी वजह से आज देश में �?क भी �?सा प�?रम�?ख क�?षेत�?रीय दल नहीं है जो 90 के दशक के बाद से अभी तक कभी न कभी केन�?द�?र में सत�?ता में न रहा हो। �?सा तभी हो सका जब वैचारिक स�?तर पर इन�?होंने भाजपा या कांग�?रेस में से किसी �?क का दृष�?टिकोण स�?वीकार किया हो। राह�?ल गांधी की भारत जोड़ो यात�?रा से भी यही काम हो रहा है। अतः जो क�?षेत�?रीय दल स�?वयं को भाजपा विरोधी मानते हैं, उनके लि�? सिवाय कांग�?रेस की छत�?रछाया में जाने के दूसरा विकल�?प नहीं बचता है। हालांकि 2024 मेें अभी बह�?त समय शेष है और इससे पहले 2023 में नौ राज�?यों में जो विधानसभा च�?नाव होंगे उनमें से अधिसंख�?या में कांग�?रेस व भाजपा के बीच ही सीधी टक�?कर होगी जिनसे लोकसभा च�?नावों से पहले यह आभास हो जायेगा कि लोगों का र�?ख किस विचारधारा के प�?रति अधिक है। इतना तय है कि श�?री राह�?ल गांधी की यात�?रा के बाद इन च�?नावों में विचारधारा की लड़ाई ही प�?रम�?ख रहेगी।
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