थम नहीं रही किसानों की आत्महत्याएं

बाढ़ हो या सूखा इसका खामियाजा अन्नदाता किसान को ही भुगतना पड़ता है। अब अलनीनो ने कहर बरपा दिया है। 1901 के रिकार्ड के अनुसार भारत का अब तक का सबसे शुष्क अगस्त का महीना हो गया है। इस महीने में 33 प्रतिशत से अधिक बारिश की कमी हो चुकी है। अगस्त में देशभर में 108.3 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है जो सामान्य 241 मि.मी. के मुकाबले 33 प्रतिशत कम है। सितम्बर के महीने में भी बारिश की संभावना कम है। अब के वर्ष सावन में रूठे बदरा… पहले मानसून की असामान्य बारिश से कई राज्यों में भयंकर बाढ़ से नुक्सान पहुंचा। हिमाचल, उत्तराखंड में वर्षा ने अपना प्रकोप दिखाया। सैकड़ों जानें गईं और अरबों की सम्पत्ति का नुक्सान हुआ। अब स्थिति यह है कि कई राज्यों में सूखे की स्थिति है। दक्षिण भारतीय राज्य और महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति से अन्नदाता परेशान हो उठे। इससे पहले साल 2009 का अगस्त महीना भी गंभीर सूखा रहा था। उस वर्ष अगस्त माह में वर्षा 192.5 मिमी दर्ज हुई थी, जबकि 2005 में यह 190.1 मिमी थी। इस साल 1-19 अगस्त तक देश में कुल बारिश 106.2 मिमी (36{0feb938fab1f43e64ba3ac40e0064bd3d13bfedcd9d1f98b3c56a7ed40e2cfd0} कम) रही है, जबकि सामान्य बारिश का औसत 166 मिमी है।मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि मॉनसून के अपने सामान्य मार्ग से भटकने को प्रशांत महासागर में एक मजबूत अलनीनो घटना के उद्भव के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। अलनीनो का मॉनसून पैटर्न को बाधित करने और प्रत्याशित मौसमी वर्षा को बाधित करने का इतिहास रहा है। इससे मानसून गर्त अपनी नियमित स्थिति में बहाल हो जाता है, जो विराम के दौरान हिमालय की तलहटी में स्थित हो जाता है। हालांकि यह मॉनसून की ताकत को पूरी तरह से बहाल करने में विफल रहा है। जबकि भारत के अधिकांश हिस्सों में जल्द ही सामान्य से नीचे का एक और चरण शुरू होगा। सबसे ज्यादा हालत महाराष्ट्र में खराब है।
कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्याओं का ​िसलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। विदर्भ के चन्द्रपुर क्षेत्र में पिछले 7 महीनों में 73 किसानों ने आत्महत्या कर ली है। इस साल विदर्भ में 1567 किसानों ने अपनी जान दी है। यवतमाल में 83 दिन में 82 किसानों ने जान दी है।एनसीआरबी के डाटा के मुताबिक, 2021 में 5563 खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की। यह 2020 की तुलना में 9{0feb938fab1f43e64ba3ac40e0064bd3d13bfedcd9d1f98b3c56a7ed40e2cfd0} ज़्यादा था, वहीं 2019 की तुलना में 29{0feb938fab1f43e64ba3ac40e0064bd3d13bfedcd9d1f98b3c56a7ed40e2cfd0} ज़्यादा, सबसे ज़्यादा 1424 खेतिहर मज़दूरों ने महाराष्ट्र में जान दी। वहीं कर्नाटक में 999 खेतिहर मज़दूरों ने आत्महत्या की और आंध्र प्रदेश में 584 ने जान दी। दरअसल इसको समझने की ज़रूरत है कि ये खेतिहर मज़दूर कौन हैं। ये वही किसान हैं जिन्हें ज़मीन से जब मुनाफ़ा नहीं होता तो खेती छोड़कर मजदूरी करने लगते हैं, लेकिन वहां भी इन्हें बहुत कुछ नहीं मिलता है। महाराष्ट्र में 830 किसानों ने जनवरी से अप्रैल के बीच आत्महत्या की है। औसतन हर रोज सात किसानों ने जान दी है। सरकार एक लाख रुपए का मुआवजा देती है। 2006 के बाद मुआवजा राशि बढ़ाई ही नहीं गई। जिन किसानों पर तीन-तीन लाख का कर्ज था उनका मुआवजा लंबित था। मजबूर होकर उन्होंने मौत को गले लगा लिया। अन्नदाता का भूखा होकर आत्महत्या करना देश और समाज के लिए खतरे की घंटी है। कोई यूं ही नहीं मर जाता? मनुष्य जीवन परमात्मा की सबसे बेहतरीन कृति है। जो अन्नदाता देशभर के लोगों का पेट भरते हैं उनको खुद पेट पालना मुश्किल हो जाए, इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है? महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक, ओडिशा आदि राज्यों में सूखे की स्थिति है। दक्षिण भारत में सामान्य से 17 प्रतिशत कम बारिश हुई है। जबकि मध्य भारत में सामान्य से 8 प्रतिशत कम बारिश हुई है। पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से 17 प्रतिशत कम बारिश हुई है।
भारत में खेत, तालाब और जलस्रोतों को भरने के लिए जरूरी पानी का 70{0feb938fab1f43e64ba3ac40e0064bd3d13bfedcd9d1f98b3c56a7ed40e2cfd0} बारिश से पूरा होता है। अगस्त में दक्षिण, पश्चिम और मध्य भारत में बेहद कम बारिश हुई है। मानसून शुरू होने के बाद किसान धान, मक्का, सोयाबीन, गन्ना, मंूगफली वगैरह की बुआई करते हैं। लंबे समय तक सूखे की वजह से उर्वरा शक्ति मिट्टी में नहीं बची जिससे फसलों की ग्रोथ प्रभावित हुई है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि फसलें बारिश के लिए लालायित हैं, इसमें जरा भी देर उत्पादन को घटा सकती है। जिसका नतीजा खाद्यान्न में महंगाई के रूप में देखने को मिलेगा। कम से कम 9 राज्यों ने इस वर्ष अप्रैल और मई में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठकों से पूर्व ही केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि वर्ष 23-24 के लिए खरीफ फसलों की एमएसपी बढ़ाई जानी चाहिए। इन राज्यों ने कहा था कि केन्द्र द्वारा तय की गई एमएसपी पर्याप्त नहीं है। कभी किसानों को अपनी फसलों का उचित मूल्य नहीं ​मलता, कभी नुक्सान का पर्याप्त मुआवजा नहीं मिलता। ऐसे में अन्नदाता करे तो क्या करे। जरूरत है, कृषि केन्द्रित नीतियों को पुनः सही ढंग से तैयार करने और उन्हें लागू करने की।आदित्य नारायण चोपड़ाAdityachopra@punjabkesari.com


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