स्वैच्छिक कार्बन बाजार से आमजन को लाभ नहीं : रिपोर्ट
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स्वैच्छिक कार्बन बाजार से लोगों को फायदा नहीं हो रहा है। बल्कि यह धरती पर अधिक उत्सर्जन का कारण बन सकता है। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ की छह माह की गहन जांच के बाद सामाने आया है। निष्कर्ष कहता है कि हमारी जलवायु-जोखिम वाली दुनिया को रचनात्मक कार्बन लेखांकन के इस व्यवसाय की आवश्यकता नहीं है।
ध्यान रहे कि दुनिया इस साल के अंत में दुबई में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप-28) में कार्बन बाजार को विनियमित करने के मुद्दे पर चर्चा का इंतजार कर रही है, ऐसे समय में सीएसई ने अपनी इस नई जांच इस बात का खुलासा कर दिया है कि स्वैक्षिक कार्बन बाजार से आमजन को लाभ नहीं पहुंच रहा है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्बन क्रेडिट की खरीद और बिक्री को एक महत्वपूर्ण तरीके के रूप में देखा जाता है। इसमें उन परियोजनाओं को क्रेडिट दिया जाता है जो ग्रीनहाउस गैसों को कम कर सकते हैं। लेकिन दुनिया में अभी तक कोई आधिकारिक कार्बन बाजार नहीं है।
वास्तव में इस पर दुबई में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के 28वें सम्मेलन में चर्चा की जाएगी। ध्यान रहे कि आधिकारिक तंत्र के अभाव में स्वैच्छिक कार्बन बाजार फल-फूल रहा है। यह खामियों से घिरा वह बाजार है जिस पर सीएसई और डाउन टू अर्थ ने पिछले छह महीने तक जांच की और उसका विश्लेषण कर उसकी सच्चाई जानी।
जांच रिपोर्ट जारी करते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “कार्बन बाजार में दक्षिण गोलार्ध के देशों के लिए अरबों डॉलर हासिल करने की क्षमता है, जिन्हें कम कार्बन ऊर्जा प्रणाली में सामाजिकता को सुनिश्चित करने के लिए धन की आवश्यकता है। लेकिन यहां सवाल है कि क्या आज का स्वैच्छिक कार्बन बाजार, लोगों और हमारे ग्रह के लिए काम कर रहा है? हमारी जांच से पता चलता है कि ऐसा नहीं है।”
नारायण कहती हैं कि इस बाजार का उद्देश्य परियोजना डेवलपर्स, लेखा परीक्षकों और अन्य लोगों के हितों की सेवा करना प्रतीत होता है जो आकर्षक कार्बन व्यवसाय से लाभ कमाते हैं। आज मौजूद कार्बन बाजार उत्सर्जन को कम करने के लिए नहीं बनाया गया है, इससे वास्तव में दुनिया भर में उत्सर्जन बढ़ सकता है। खरीदार अपने उत्सर्जन को जारी रख सकते हैं और बढ़ा सकते हैं, जबकि यह दावा करते हुए कि उन्होंने क्रेडिट खरीदा है।
जांच से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि हम दोहरे खतरे में हैं, ये क्रेडिट या तो अधिक अनुमानित हैं या उस परिवर्तन का कारण नहीं हैं, जिसका दावा किया गया है। हमारी जलवायु-जोखिम वाली दुनिया को रचनात्मक कार्बन लेखांकन की इस शैडो (गुप्त) दुनिया की आवश्यकता नहीं है।
सीएसई टीम का कहना है कि भारत दुनिया में कार्बन ऑफसेट का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और कार्बन निवेश में सबसे आगे है। भारत का स्वैच्छिक कार्बन बाजार 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का है और देश में 1,451 परियोजनाएं सूचीबद्ध हैं। 2022 में तीन भारतीय परियोजना डेवलपर कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने में दुनिया के शीर्ष 15 में शामिल थे। ये भारतीय संस्थाएं पहले ही उत्सर्जन की भरपाई के लिए उपयोग किए जाने वाले कार्बन क्रेडिट से लगभग 652 मिलियन अमेरिकी डॉलर कमा चुकी हैं।
नारायण कहती हैं कि हम यह पता लगाना चाहते थे कि क्या यह बाजार लोगों और हमारे इस ग्रह को लाभ पहुंचाने के लिए काम कर रहा है। हमने पाया कि अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। सीएसई और डाउन टू अर्थ के शोधकर्ताओं ने यह समझने के लिए कि बाजार कैसे काम करता है, भारत भर के 40 गांवों और कस्बों की यात्रा की।
प्रत्येक स्थान पर हमने पाया कि समुदाय, उनकी भूमि और उनका श्रम व्यवसाय के केंद्र में थे लेकिन समुदाय के सदस्यों को लगभग कभी पता नहीं था कि वे कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने के लिए काम कर रहे थे, लेकिन उन क्रेडिट पर उनका अपना कोई अधिकार नहीं था। नारायण कहती हैं कि कार्बन बाजार एक वास्तविक बाजार होना चाहिए, न कि खरीदार और विक्रेता के बीच कोई गुप्त समझौता।
क्रेडिट :�
downtoearth.
स्वैच्छिक कार्बन बाजार से लोगों को फायदा नहीं हो रहा है। बल्कि यह धरती पर अधिक उत्सर्जन का कारण बन सकता है। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ की छह माह की गहन जांच के बाद सामाने आया है। निष्कर्ष कहता है कि हमारी जलवायु-जोखिम वाली दुनिया को रचनात्मक कार्बन लेखांकन के इस व्यवसाय की आवश्यकता नहीं है।
ध्यान रहे कि दुनिया इस साल के अंत में दुबई में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप-28) में कार्बन बाजार को विनियमित करने के मुद्दे पर चर्चा का इंतजार कर रही है, ऐसे समय में सीएसई ने अपनी इस नई जांच इस बात का खुलासा कर दिया है कि स्वैक्षिक कार्बन बाजार से आमजन को लाभ नहीं पहुंच रहा है।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्बन क्रेडिट की खरीद और बिक्री को एक महत्वपूर्ण तरीके के रूप में देखा जाता है। इसमें उन परियोजनाओं को क्रेडिट दिया जाता है जो ग्रीनहाउस गैसों को कम कर सकते हैं। लेकिन दुनिया में अभी तक कोई आधिकारिक कार्बन बाजार नहीं है।
वास्तव में इस पर दुबई में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के 28वें सम्मेलन में चर्चा की जाएगी। ध्यान रहे कि आधिकारिक तंत्र के अभाव में स्वैच्छिक कार्बन बाजार फल-फूल रहा है। यह खामियों से घिरा वह बाजार है जिस पर सीएसई और डाउन टू अर्थ ने पिछले छह महीने तक जांच की और उसका विश्लेषण कर उसकी सच्चाई जानी।
जांच रिपोर्ट जारी करते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “कार्बन बाजार में दक्षिण गोलार्ध के देशों के लिए अरबों डॉलर हासिल करने की क्षमता है, जिन्हें कम कार्बन ऊर्जा प्रणाली में सामाजिकता को सुनिश्चित करने के लिए धन की आवश्यकता है। लेकिन यहां सवाल है कि क्या आज का स्वैच्छिक कार्बन बाजार, लोगों और हमारे ग्रह के लिए काम कर रहा है? हमारी जांच से पता चलता है कि ऐसा नहीं है।”
नारायण कहती हैं कि इस बाजार का उद्देश्य परियोजना डेवलपर्स, लेखा परीक्षकों और अन्य लोगों के हितों की सेवा करना प्रतीत होता है जो आकर्षक कार्बन व्यवसाय से लाभ कमाते हैं। आज मौजूद कार्बन बाजार उत्सर्जन को कम करने के लिए नहीं बनाया गया है, इससे वास्तव में दुनिया भर में उत्सर्जन बढ़ सकता है। खरीदार अपने उत्सर्जन को जारी रख सकते हैं और बढ़ा सकते हैं, जबकि यह दावा करते हुए कि उन्होंने क्रेडिट खरीदा है।
जांच से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि हम दोहरे खतरे में हैं, ये क्रेडिट या तो अधिक अनुमानित हैं या उस परिवर्तन का कारण नहीं हैं, जिसका दावा किया गया है। हमारी जलवायु-जोखिम वाली दुनिया को रचनात्मक कार्बन लेखांकन की इस शैडो (गुप्त) दुनिया की आवश्यकता नहीं है।
सीएसई टीम का कहना है कि भारत दुनिया में कार्बन ऑफसेट का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और कार्बन निवेश में सबसे आगे है। भारत का स्वैच्छिक कार्बन बाजार 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का है और देश में 1,451 परियोजनाएं सूचीबद्ध हैं। 2022 में तीन भारतीय परियोजना डेवलपर कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने में दुनिया के शीर्ष 15 में शामिल थे। ये भारतीय संस्थाएं पहले ही उत्सर्जन की भरपाई के लिए उपयोग किए जाने वाले कार्बन क्रेडिट से लगभग 652 मिलियन अमेरिकी डॉलर कमा चुकी हैं।
नारायण कहती हैं कि हम यह पता लगाना चाहते थे कि क्या यह बाजार लोगों और हमारे इस ग्रह को लाभ पहुंचाने के लिए काम कर रहा है। हमने पाया कि अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। सीएसई और डाउन टू अर्थ के शोधकर्ताओं ने यह समझने के लिए कि बाजार कैसे काम करता है, भारत भर के 40 गांवों और कस्बों की यात्रा की।
प्रत्येक स्थान पर हमने पाया कि समुदाय, उनकी भूमि और उनका श्रम व्यवसाय के केंद्र में थे लेकिन समुदाय के सदस्यों को लगभग कभी पता नहीं था कि वे कार्बन क्रेडिट उत्पन्न करने के लिए काम कर रहे थे, लेकिन उन क्रेडिट पर उनका अपना कोई अधिकार नहीं था। नारायण कहती हैं कि कार्बन बाजार एक वास्तविक बाजार होना चाहिए, न कि खरीदार और विक्रेता के बीच कोई गुप्त समझौता।
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