एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने प्रेस एवं नियत कालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण के बारे में चिंता व्यक्त की

नई दिल्ली | एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने प्रेस एवं नियत कालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक में कुछ कठोर शक्तियों के बारे में रविवार को गहरी चिंता व्यक्त की, जो सरकार को समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के कामकाज में अधिक दखल देने की शक्तियां प्रदान करती है। गिल्ड ने यहां एक बयान में मांग की कि प्रेस एवं नियत कालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक को संसदीय प्रवर समिति को भेजा जाना चाहिए। यह विधेयक प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम-1867 की जगह लेगा। गिल्ड द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि वह प्रेस रजिस्ट्रार की शक्तियों के विस्तार, नागरिकों के पत्रिकाएं निकालने पर नयी पाबंदियां, समाचार प्रकाशनों के परिसर में प्रवेश करने की शक्ति के जारी रहने, कई प्रावधानों में अस्पष्टता और नियम बनाने की शक्ति के संबंध में अस्पष्टता को लेकर चिंतित है, जिसका प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है।
गिल्ड पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़, राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ-साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को पत्र लिखकर विधेयक पर अपनी चिंताओं को जाहिर कर चुका है। उसने कहा, ‘‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिये पत्रकारों तथा मीडिया संगठनों के खिलाफ यूएपीए-जो ‘आतंकवादी कृत्य’ और गैरकानूनी गतिविधि को परिभाषित करने का आधार है, के साथ-साथ राजद्रोह सहित अन्य आपराधिक कानून के मनमाने उपयोग को देखते हुए, गिल्ड इन नए प्रावधानों को लाये जाने और सरकारों के आलोचकों को समाचार प्रकाशन के अधिकार से वंचित करने के लिए जिस तरह से इनका दुरुपयोग किया जा सकता है, उसको लेकर काफी चिंतित है।’’
गिल्ड ने आग्रह किया कि इस अधिनियम के उद्देश्य के लिए केवल प्रेस रजिस्ट्रार प्रासंगिक प्राधिकारी होना चाहिए और किसी अन्य सरकारी एजेंसी को पत्रिकाओं के पंजीकरण के संबंध में कोई अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। गिल्ड ने कहा, ‘‘इस मुद्दे पर कानून को प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति अधिक सम्मानजनक होना चाहिए और नियामक अधिकारियों को अपनी इच्छानुसार प्रेस में हस्तक्षेप करने या उसे बंद करने की व्यापक शक्तियां देने से बचना चाहिए।’’ उसने कहा कि रजिस्ट्रार और पीआरपी का प्राथमिक जोर पंजीकरण है, विनियमन नहीं। पीआरपी विधेयक एक अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था और दो दिन बाद पारित कर दिया गया था।


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