राजा जनक ने क्यों रखा था देवी का नाम सीता

इस तिथि को सीता नवमी मनाई जाती है। इस दिन पुष्य नक्षत्र में माता सीता का धरती पर प्राकट्य हुआ था। सीता नवमी पर माता सीता का श्रृंगार करके उन्हें सुहाग की सामग्री चढ़ाई जाती है। शुद्ध रोली मोली, चावल, धूप, दीप, लाल फूलों की माला, गेंदे के पुष्प और मिष्ठान आदि से माता सीता की पूजा अर्चना करें। तिल के तेल या गाय के घी का दीया जलाएं और एक आसन पर बैठकर लाल चंदन की माला से ॐ श्रीसीताये नमः मंत्र का एक माला जाप करें। अपनी माता के स्वास्थ्य की प्रार्थना करें। लाल या पीले फूलों से भगवान श्री राम की भी पूजा अर्चना करें।

आपको बता दे, त्रेता युग में इसी तिथि पर राजा जनक यज्ञ भूमि के लिए हल चला रहे थे, उस समय खेत में से उन्हें एक कन्या मिली थी, जिसका नाम सीता रखा गया। उस दिन भी मंगलवार ही था। हल की नोंक को सीत कहते हैं। हल की नोंक से देवी सीता प्राप्त हुई थीं, इसलिए राजा जनक ने कन्या का नाम सीता रखा था।

राजा जनक ने सीता को पुत्री माना था, इस कारण देवी का एक नाम जानकी भी प्रसिद्ध हुआ। जनक का एक नाम विदेह था, इस वजह से सीता को वैदेही भी कहते हैं। एक दिन बचपन में सीता ने खेलते-खेलते शिव जी का धनुष उठा लिया था। राजा जनक ने उस समय पहली बार समझ आया कि सीता दैवीय कन्या हैं। उस समय शिव धनुष को रावण, बाणासुर आदि कई वीर हिला तक भी नहीं सकते थे। इसलिए राजा जनक ने सीता का विवाह ऐसे व्यक्ति से करने का निश्चय किया था जो उस धनुष को उठा सके और तोड़ सके।


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