भाजपा-कांग्रेस की उम्मीदों में गुटबाजी, भितरघात की बाधा

मध्यप्रदेश | प्रदेश के राजनीतिक इतिहास का बड़ा बदलाव लाने वाले ग्वालियर-चंबल से विधानसभा चुनाव में जितनी उम्मीद भाजपा लगाए बैठी है, उतनी ही अपेक्षाएं कांग्रेस को हैं. उम्मीदों के सामने कई चुनौतियां भी हैं, जो जीत में बाधा बन सकती हैं. बाधाओं ने भाजपा-कांग्रेस को चिंता में डाल रखा है. भाजपा निचले स्तर पर कार्यकर्र्ताओं की नाराजगी से जूझ रही है तो ऊपरी स्तर पर दिग्गजों के बीच अंदरूनी मतभेद उभरकर सामने आने लगे हैं. कांग्रेस की मुश्किल दावेदारों के बीच जिताऊ उम्मीदवार को तलाशने की है.
सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस छोड़ एकसाथ भाजपा का दामन थामने वाले 19 विधायकों सहित 22 विधायकों ने कांग्रेस सरकार को कुर्सी से उतरने को मजबूर कर दिया था. उपचुनाव में क्षेत्र की 16 सीटों में से सात पर कांग्रेस जीती. मंत्री पद छोड़ने वाले प्रद्युम्न सिंह जीते तो इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया को हार का सामना करना पड़ा.
शाह तक शिकवा-शिकायतें
ग्वालियर-चंबल में भाजपा के दो बड़े नेता नरेंद्र सिंह तोमर और सिंधिया हैं. दोनों केंद्र में मंत्री हैं. इनके बीच जितना एका नजर आता है उतना है नहीं. प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इनके बीच सामंजस्य बैठाने हिदायतें देनी पड़ीं. शाह तक जिस तरह शिकवा-शिकायतें की जा रही हैं उससे दिग्गजों को अपने समर्थकों को हद में रखने की नसीहत दी गई. भाजपा जानती है कि कार्यकर्ताओं की नाराजगी के बीच बड़े नेताओं और समर्थकों की गुटबाजी जीत की उम्मीदों पर पानी फेर सकती है. यही वजह है कि पार्टी नेतृत्व प्रदेश पर जितना ध्यान दे रहा है, उससे कहीं ज्यादा नजर ग्वालियर-चंबल पर नजर रखी जा रही है.
जातिगत समीकरण पर टिकी जीत की रणनीति
ग्वालियर-चंबल अंचल में जीत का सीधा समीकरण जातिगत आधार पर निकाला जाता है. यही कारण है कि इस क्षेत्र की कुछ विधानसभा में बसपा भी अपनी धमक दिखा चुकी है. ठाकुरों के साथ लोधी, कुशवाह, जाटव, रावत मतदाता जीत तय करते हैं, इसी को ध्यान में रख कांग्रेस अपना उम्मीदवार मैदान में उतारती थी. अब उसके सामने सबसे बड़ी परेशानी यह है कि भाजपा भी इसी समीकरण से अपना लक्ष्य साधने में जुटी है. हाल में घोषित 39 सीटों के उम्मीदवारों में अंचल के चार सबलगढ़, सुमावली, पिछोर और गोहद सीट पर जातिगत आधार पर ही नाम तय किए हैं.
गढ़ ढहाने आजमाएंगे पैंतरा
भाजपा कांग्रेस दिग्गजों के गढ़ ढहाने की रणनीति बना रही है. पिछोर में केपी सिंह छह बार से विधायक हैं. भाजपा ने यहां प्रीतम लोधी को उतारा है. जीतने पर पिछोर को जिला बनाने की घोषणा की है. लहार में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह का प्रभाव है. हाल ही में जनआशीर्वाद यात्रा के जरिए भाजपा ने चुनावी आगाज किया है.


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